ओडिशा सरकार ने राज्य के आदिवासियों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं बनाई हैं, लेकिन मलकानगिरी ज़िले के कई आदिवासी परिवार इन योजनाओं के लाभ नहीं उठा पा रहे हैं.
मसलन वन अधिकार अधिनियम के तहत देशभर के कई आदिवासियों को ज़मीन के पट्टे दिए गए हैं. लेकिन मलकानगिरी के कई आदिवासी ज़मीन पर अधिकार से वंचित हैं, क्योंकि पट्टों और उनके आधार कार्डों में विसंगतियां हैं, जो उन्होंने इस योजना का फ़ायदा उठाने से रोकती हैं.
एक रिपोर्ट के मुताबिक़, चित्रकोंडा ब्लॉक के दुदामेटा पंचायत के डांगागुड़ा गांव में भी कुछ ऐसा ही हुआ है. यहां कई मामलों में, ज़मीन के पट्टे और आधार कार्ड में दिए गए जाति से जुड़ी जानकारी मेल नहीं खाती. ऐसे में प्रशासन इनके अधिकार देने से इनकार कर देता है.
इस गांव में कोया, बोंडा, दीदाई, गौड़ और हलबा जैसे आदिवासी समुदाय रहते हैं. यह लोग 60 साल से ज़्यादा समय से इसी गांव में रह रहे हैं.
प्रशासन ने एक सर्वे भी किया था ऐसे आदिवासियों की जानकारी लेने के लिए जो 1960 से 1962 के बीच यहां रह रहे थे. 1966 में इन आदिवासियों को भूमि के पट्टे प्रदान किए गए. लेकिन जब हलबा आदिवासियों को पट्टे जारी किए गए, तो उनकी जाति गौड़ बताई गई.
ग्रामीणों का कहना है कि अब तक इसका समाधान नहीं ढूंढा गया है. आधार कार्ड और वोटर कार्ड के हिसाब से वो लोग हलबा जनजाति के हैं, जबकि जमीन के पट्टों के हिसाब से गौड़.
इन दो प्रमाणों में इस तरह के बेमेल की वजह इन आदिवासियों को धान मंडियों से टोकन लेने में, पेंशन लेने में और बच्चों के लिए स्टाइपेंड लेने में दिक्कत आती है. यह लोग लंबे समय से प्रशासन से विनती कर रहे हैं कि मामले को सुलझाया जाए, लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ है.
नतीजा यह है कि सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में यह आदिवासी असमर्थ हैं.
एडीएम बिरसेन प्रधान ने ओडिसा पोस्ट को बताया कि मामला ज़मीन के सेटलमेंट से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि आदिवासियों को एडवोकेट के ज़रिए कलेक्टरेट में रिविज़न पटेशन डालनी होगी.
अब आप ही बताएं कि अधिकारियों की ग़लती का नुकसान यह आदिवासी कब तक झेलें.