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आदिवासियों ने मामला अपने हाथों में लिया, सड़क पर काम खुद ही शुरू किया

पिछले कई सालों से लोसिंगी पेडापुरुगु, पित्रगेड्डा और कोदा लोसिंगी आदिवासी गांवों के लोग अपने गांवों को रविकामटम मंडल के चीमलपाडु पंचायत के चालीसिंगी, सीके पाडु और कोठाकोटा से जोड़ने के लिए पक्की सड़क के निर्माण की मांग कर रहे हैं. पिछले तीन सालों में इन गांवों के चार आदिवासियों को डोलियों में डालकर अस्पताल ले जाते समय मौत हो चुकी है.

विशाखापत्तनम के चिंतापल्ली मंडल के वेदुरुपल्ली आदिवासी बस्ती में सोमवार रात एक गर्भवती महिला की मौत ने एक बार फिर इस इलाक़े तक सड़क संपर्क की कमी से होने वाली परेशानियों को उजागर किया है.

27 साल की दिव्या ने अपने घर में एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया, लेकिन थोड़ी देर बाद ज़्यादा खून बह जाने की वजह से उसकी मौत हो गई. दिव्या के गांव तक कोई सड़क नहीं जाती, इसलिए ‘108 आपातकालीन एम्बुलेंस’ सेवा उस तक नहीं पहुंच सकी. अगर उसे समय पर अस्पताल ले जाया जाता, तो उसकी जान बच सकती थी.

पिछले कई सालों से लोसिंगी पेडापुरुगु, पित्रगेड्डा और कोदा लोसिंगी आदिवासी गांवों के लोग अपने गांवों को रविकामटम मंडल के चीमलपाडु पंचायत के चालीसिंगी, सीके पाडु और कोठाकोटा से जोड़ने के लिए पक्की सड़क के निर्माण की मांग कर रहे हैं. पिछले तीन सालों में इन गांवों के चार आदिवासियों को डोलियों में डालकर अस्पताल ले जाते समय मौत हो चुकी है.

अब आदिवासियों ने सड़क निर्माण के लिए सरकार द्वारा फ़ंड सैंक्शन किए जाने तक का इंतज़ार न करने का फ़ैसला किया है. उन्होंने खुद ही संसाधनों को इकट्ठा कर सड़क पर काम शुरू कर दिया है, और सरकार पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं.

एजेंसी की ओर जाने वाले मैदानी इलाक़ों में रहने वाले किसान यह सोचकर सड़क पर आपत्ति जता रहे थे कि उन्हें बड़ी मात्रा में अपनी ज़मीन खोनी पड़ेगी. लेकिन जहां उन्हें मुश्किल से कुछ मीटर का नुकसान होगा, उनके लिए फ़ायदे ज़्यादा हैं क्योंकि वो अपनी उपज को लादने के लिए ट्रैक्टरों को खेतों के पास तक ला सकेंगे.

पडेरू की विधायक के. भाग्यलक्ष्मी ने द हिन्दू को बताया, “ज़िले के एजेंसी इलाक़े के 11 मंडलों में से 3,678 अधिसूचित गांवों की लगभग 1,000 बस्तियों में सड़क संपर्क नहीं है. अब चरणबद्ध तरीके से सड़कें उपलब्ध कराने पर काम चल रहा है.”

हाल ही में नरसीपट्टनम में आदिवासी लोगों ने जिला कलेक्टर ए. मल्लिकार्जुन को अपनी मुश्किलों से अवगत कराया था. कलेक्टर के निर्देश पर आरडीओ ने मंगलवार को गांव का दौरा कर मैदानी इलाकों के किसानों से बातचीत की और उन्हें आश्वासन दिया कि अगर उनकी ज़मीन का बड़ा हिस्सा सड़क बनाने में खो जाता है तो उन्हें दूसरी ज़मीन दी जाएगी. इसके बाद किसान इस काम के लिए राज़ी हो गए हैं.

किसानों की सहमति मिलने के तुरंत बाद ही आदिवासी लोगों ने बुधवार को सड़क निर्माण में मदद करने के लिए झाड़ियों को हटाना शुरू कर दिया.

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