लोकसभा चुनाव 2024 के बाद आरएसएस (RSS) के अध्यक्ष मोहन भागवत ने अपनी पहली टिप्पणी में मणिपुर हिंसा का ज़िक्र किया है. उन्होंने कहा है कि मणिपुर हिंसा का समाधान फ़िलहाल प्राथमिकता होनी चाहिए.
मणिपुर में पिछले एक साल में जिस स्तर पर हिंसा हुई और अभी चल रही है उसकी तुलना में इस हिंसा की मीडिया रिपोर्टिंग ना के बराबर रही है. मणिपुर में पिछले एक साल से गृहयुद्ध के स्थिति बनी हुई है. मैतई और कुकी समुदायों के बीच शुरु हुई हिंसा ने राज्य को इस कदर बांट दिया है कि दोनों ही समुदाय के लोगों को किसी भी सूरत में बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं.
केंद्र सरकार के आंकड़ों को ही माने तो मणिपुर में एक साल के भीतर यानि 3 मई 2023 से ले कर 3 मई 2024 के बीच कम से कम 221 लोगों की हत्या हुई हैं.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपेक्षा
मणिपुर हिंसा को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात किये हैं. लेकिन इस हिंसा को रोकने के लिए कोई राजनीतिक पहल कदमी नहीं की गई है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभी तक मणिपुर का दौरा नहीं किया है. विपक्षी दल संसद, संसद के बाहर और चुनाव प्रचार के दौरान लगातार नरेन्द्र मोदी से यह सवाल पूछते रहे हैं कि वे कब मणिपुर जाएंगे. लेकिन प्रधानमंत्री मणिपुर के मुद्दे पर चुप्प और निषक्रिय नज़र आते हैं.
राज्य में हिंसा के दौरान दो आदिवासी महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने और सताने के वायरल वीडियो के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह का बयान दिया था उसकी भी काफ़ी आलोचना हुई थी.
उन्होंने इस आपराधिक घटना को उस समय कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान की घटनाओं से जोड़ दिया था.
राहुल गांधी की राजनीतिक पहल
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भारत जोड़ा न्याय यात्रा की शुरुआत मणिपुर से की थी. लोकसभा चुनाव परिणाम में भी यह दिखाई दिया है कि लोग कांग्रेस पार्टी पर भरोसा कर रहे हैं. क्योंकि यहां पर दोनों ही सीटें कांग्रेस पार्टी ने जीत ली हैं.
इस बात में कोई शक नहीं है कि कांग्रेस के इन दो सांसदों पर यह दबाव रहेगा कि वे संसद में कुकी और मैतई दोनों ही समुदायों के पक्ष को मजबूती से रखें. लेकिन राज्य में शांति बहाल करने की ज़िम्मेदारी कांग्रेस पार्टी पर नहीं छोड़ी जा सकती है. क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें बीजेपी की हैं.
मणिपुर के मुख्यमंत्री का क्या होगा
मणिपुर संकट के बारे में यह कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह खुद एक समस्या बने हुए हैं. इसलिए कम से कम उनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे मणिपुर हिंसा का कोई समाधान निकाल सकते हैं.
लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक कोई ऐसा संकेत नहीं दिया है कि उन्हें पद से हटाया जा सकता है. जबकि यह सच सभी जानते हैं कि राज्य में हिंसा से पहले और हिंसा के दौरान यानि पिछले एक साल में उनका रैवया पक्षपाती रहा है.
साल 2022 के विधानसभा में बेशक एन बिरेन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी को मणिपुर में भारी सफलता मिली थी. शायद यह भी एक वजह है कि बीजेपी राज्य में नेतृत्व बदलाव से कतरा रही है. लेकिन यह बात तो तय है कि जब तक वे अपने पद पर कायम हैं मणिपुर को शात करना आसान नहीं होगा.
क्योंकि राज्य के आदिवासी संगठन ही नहीं आम कुकी नागरिक भी उन पर भरोसा करने को तैयार नहीं है.
दो दिन पहले ही यह ख़बर आई है कि एक बार फिर से हज़ारों लोग पलायन करने को मजबूर हुए हैं. ये लोग मणिपुर छोड़ कर असम में आ गए हैं. इसके अलावा जिरीबाम नाम की जगह पर पिछले सप्ताह हिंसा की घटनाएं हुई हैं. यह वो इलाका है जो अभी तक हिंसा से अछूता था.
नई मोदी सरकार से उम्मीद
केंद्र में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई सरकार का गठन किया है. इस सरकार में नया सिर्फ ये है कि अब यह गठबंधन की सरकार है. मणिपुर के संदर्भ में इस सरकार से यह उम्मीद की जानी चाहिए कि गृहमंत्री अमित शाह ज़मीन पर क़ानून व्यवस्था का जायज़ा लेकर प्रधानमंत्री को ब्रीफ़ करें.
इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अब कम से कम मणिपुर का दौरा करना चाहिए. इससे लोगों में यह संदेश जाएगा कि केंद्र सरकार मणिपुर के हालात पर संजीता हो रही है. इसके अलावा केंद्र में उत्तर-पूर्व के राज्यों के मंत्री को भी स्थिति को समझ कर प्रधानमंत्री को ब्रीफ़ करना चाहिए.
इसके साथ ही मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह पर बीजेपी को बोल्ड फैसला लेते हुए उन्हें पद से हटाना चाहिए.
अब जबकि बीजेपी के मातृ संगठन आरएसएस ने मणिपुर पर चिंता प्रकट की है तो यह उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी इस मामले को गंभीरता से लेगी.