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ओडिशा में बीजेपी ने आदिवासी मोहन चरण माँझी को मुख्यमंत्री क्यों चुना है

ओडिशा में एक आदिवासी यानि मोहन चरण मांझी को अगर मुख्यमंत्री बनाया गया है तो उसके ठोस राजनीतिक और सामाजिक कारण हैं. राज्य में देश के सबसे अधिक यानि कम से कम 62 आदिवासी समुदाय रहते हैं. आदिवासियों ने बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाई है. इसके अलावा लोकसभा चुनाव के परिणामों ने भी इस फ़ैसले में भूमिका निभाई है.

Mohan Caran Majhi: भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहन माझी को ओडिशा का अगला मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. राज्य के सीएम के चयन के लिए भाजपा आलाकमान ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पर्यवेक्षक नियुक्त किया था। 

मोहन माझी बुधवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. उनके साथ राज्य के डिप्टी सीएम के रूप में केवी सिंह देव और प्रवती परिदा भी शपथ लेंगे. मोहन चरण माझी ने इस बार विधानसभा चुनाव में क्योंझर विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

इससे पहले भी तीन बार वे क्योंझर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीते.  

कौन है मोहन चरण मांझी

मोहन चरण माझी का जन्म वर्ष 1972 ओडिशा के क्योंझर जिले के रायकलां में हुआ था. शुरुआती शिक्षा-दीक्षा लेने के बाद उन्होंने अपने सियासी सफरनामे की शुरुआत सरपंच के रूप में की थी. 

मोहन चरण मांझी संथाल आदिवासी समूह से हैं.

इसके बाद वे धीरे धीरे राजनीति से जुड़ते गए और भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया.  धीरे धीरे उनकी गिनती ओडिशा में भाजपा के कद्दावर आदिवासी नेता के रूप में होने लगी. उनकी एक तेज तर्रार आदिवासी नेता की छवि है.

मोहनचरण मांझी की जड़ें राष्ट्रीय स्यंव सेवक संघ (RSS) से जुड़ी हैं. 

विधान सभा में विपक्ष की आवाज़ बनते रहे

ओडिशा की पिछली विधान सभा यानि 2019-2024 में सत्ताधारी बीजू जनतादल के 112 विधायक थे. जबकि विपक्षी दल बीजेपी के सिर्फ 23 विधायक थे. ज़ाहिर है यह अनुपात विपक्ष को अपनी बात रखने का बहुत ज़्यादा अवसर नहीं देता था.

लेकिन इस अनुपात के बावजूद मोहनचरण मांझी ने पिछले पांच साल में एक सक्रिय विपक्षी विधायक की छवि बनाई. ओडिशा विधानसभा में मुख्य सचेतक रहते हुए उन्होंने साल 2019-2024 तक विधान सभा में हुई चर्चाओं में सबसे अधिक बार हिस्सा लिया.

मोहन चरण मांझी के विधानसभा क्षेत्र क्योंझर में सबसे ज़्यादा लोहे के भंडार हैं. वे विधान सभा में लगातार लौह अयस्क (Iron Ore) के खनन में गड़बड़ी का मुद्दा उठाते रहे हैं. साल 2019 से 2024 तक पांच साल के भीतर उन्होंने विधानसभा में कम से कम 7 प्राइवेट मेंबर बिल पेश किये थे.

इन 7 बिलों में व्हिसल ब्लोअर प्रोटक्शन बिल (Odisha Wisthle Blower Bill) भी शामिल था. 

मोहन चरण मांझी बीजेपी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव भी रहे

Out of 14 assembly seats from where the Congress

स्पीकर पर दाल फेंक कर हुए मशहूर

वह अपने क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है. वह क्योंझर से चार बार लगातार विधायक बने हैं, इसलिए शासन की उनको उच्छी समझ भी है. 2023 में सत्र के दौरान माझी पर आरोप लगा कि उन्होंने स्पीकर के पोडियम पर दाल फेंकी थी. स्पीकर ने उनको सस्पेंड कर इसकी सजा दी थी. उन्होंने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा था कि उन्होंने दाल भेंट की थी.

ओडिशा की जीत में रिजर्व सीटों का योगदान

भारतीय जनता पार्टी ने ओडिशा में कुल 78 सीटें जीती हैं. इनमें से 19 सीटें अनुसूचित जनजाति और 13 अनुसूचित जाति के लिए आरतक्षित हैं. यानि कुल 78 सीटों में से बीजेपी को 32 सीटें अनुसूचित जनजाति या अनुसूचित जाते के लिए आरक्षित सीटें मिली हैं. 

ओडिशा की कुल 147 विधानसभा सीटों में से 57 सीटें अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. ओडिशा के चुनाव परिणाम बताते हैं कि बीजेपी ने राज्य के उत्तरी भाग की लगभग सभी विधानसभा सीटें जीत ली हैं. यहां यह ध्यान रखने वाली बात है कि इसी इलाके में मोहन चरण मांझी का क्षेत्र भी पड़ता है. जबकि दक्षिण-पश्चिम ओडिशा में कांग्रेस ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कुल 6 सीटें जीती हैं. 

राज्य के तटीय इलाकों में बीजेडी को कुछ रिजर्व सीटों पर ज़रूर कामयाबी मिली है. 

आदिवासी क्षेत्रों में बीजेपी की चिंता

लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कुल 47 सीटों में से 25 सीटों पर जीत हासिल की है. इन सीटों पर उसकी जीत के अंतर का औसत 3 लाख 31 हज़ार रहा है. जबकि कांग्रेस पार्टी ने 4 लाख 29 हज़ार के औसत अंतर से 12 सीटें जीती हैं. 

साल 2019 के चुनाव परिणाम देखें तो बीजेपी ने  औसतन 1 लाख 63 हज़ार के अंतर से 31 सीटें जीत ली थीं. जबकि कांग्रस पार्टी ने 66 हज़ार 796 के औसत अंतर से सिर्फ 4 सीटें ही जीती थीं. इस लिहाज से देखें तो साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में अनुसूचित जनजाति की सीटों पर बीजेपी के जीत का अंतर दो गुना हुआ है जबकि कांग्रेस पार्टी ने अपने जीत के अंतर को 7 गुना तक बढ़ाया है.

बीजेपी ने छत्तीसगढ़ के बाद ओडिशा में एक आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाया है. उम्मीद की जानी चाहिए कि ये दोनों ही मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल भी पूरा कर पाएंगे. इन दोनों ही राज्यों से सटे झारखंड में किसी भी आदिवासी पृष्ठभूमि के आदिवासी नेता को मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया गया है. इस क्रम में हाल ही में हेमंत सोरेन का नाम भी जुड़ गया है. 

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