झारखंड के मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने कल एक उच्च स्तरीय बैठक में विभिन्न विभागों के कामकाज का जायज़ा लिया.
मंगलवार को हुई इस बैठक में चंपई सोरेन ने विभाग के अधिकारियों को आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा करने और विवादों के बाद उनके पक्ष में अदालती आदेश आने के बाद भूमि पर उनका अधिकार सुनिश्चित करने के लिए तीव्र कार्रवाई करने का निर्देश दिया है.
अनुसूचित जनजाति (एसटी) को वंचित आबादी बताते हुए और उनके हाशिए पर होने की बात पर जोर देते हुए अधिकारियों से यह भी कहा कि एससी-एसटी अधिनियम के तहत दर्ज सभी मामलों का निपटारा प्राथमिकता के अनुसार किया जाए.
उन्होंने कहा सुनिश्चित करें कि अनुसूचित जनजातियों से संबंधित जिन भूमि विवाद मामलों में अदालत द्वारा आदेश दिए जा चुके हैं, उससे संबंधित ज़मीनों पर आदिवासियों को जल्द से जल्द अधिकार दिया जाए. एससी एसटी अधिनियम के तहत दर्ज मामले लंबित नहीं रहने चाहिए. इसकी पूरी गंभीरता से निगरानी की जाए.
उन्होंने अधिकारियों को यह भी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ ड्यूटी के दौरान शहीद हुए सैनिकों के आश्रितों तक समय पर पहुंचाया जाए.
उन्होंने पुलिस को यह निर्देश भी दिया कि राज्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा शिविरों की स्थापना के कारण आम नागरिकों को किसी प्रकार की परेशानी न हो इस बात का खास ध्यान रखा जाए.
इसके साथ ही प्रदेश में अपराध नियंत्रण से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा हुई.
क्या हैं यहां के भूमि कानून और विवाद
झारखंड मे आदिवासियों की भूमि की रक्षा के लिए दो प्रमुख कानून हैं. इनमें एक
छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम , 1908 (CNT 1908) है और दूसरा संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (SPTA) है.
इन दोनों अधिनियमों का उद्देश्य आदिवासियों की भूमि को गैर-आदिवासियों द्वारा हड़पने से रोकना है.
दोनों अधिनियमों में यह प्रावधान है कि किसी भी आदिवासी भूमि का उपयोग किसी भी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि आदिवासी अपनी ज़मीन केवल आदिवासियों को ही बेच सकते हैं.
एक ही जनजाति के किसान आपस में जमीन खरीद-बेच सकते हैं. लेकिन इसके लिए उन्हें जिला कलेक्टर से अनुमति लेनी होगी.
इसके अलावा, अधिनियम के तहत छह वर्ष से अधिक समय के लिए भूमि पट्टे पर भी नहीं दी जा सकती है. इसके अलावा पट्टे पर दी गई भूमि पर कोई भी व्यावसायिक कार्य नहीं किया जा सकता.
इन दो अधिनियमों के बावजूद भी 70 प्रतिशत से अधिक आदिवासी भूमि अवैध रूप से खरीदी और बेची जा रही है.
अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम, 2006:
यह अधिनियम वनों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और वन भूमि पर कब्ज़े को मान्यता देने और पीढ़ियों से जंगलों में रह रहे आदिवासियों को उन्हें भूमि अधिकार देने का प्रयास करता है. और इस अधिनियम को संचालित करने की जिम्मेदारी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों की होती है.
झारखंड़ में इस अधिनियम पर कितना अमल किया जा रहा है यह जानने के लिए मुख्यमंत्री ने ये बैठक रखी थी. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि जिन भूमि विवादों पर कोर्ट का फैसला आ चुका है वहां इस नियम को लागू करने में देरी न की जाए.
झारखंड में इसी साल नवंबर-दिसबंर तक विधान सभा चुनाव होगा. लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड में इंडिया गठबंधन की पार्टी यानि जेएमम और कांग्रेस काफ़ी उत्साहित है.
लेकिन इस उत्साह के साथ साथ उसे ऐसे काम भी दिखाने होंगे जो चुनाव में उसके लिेए वोट भी ला सकें. इसलिए लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद चंपई सोरेन की सरकार काफी एक्टिव दिखाई दे रही है.