HomeIdentity & Lifeजनजातियों के नाम में मामूली त्रुटि दूर करने से बड़े फ़ायदे होंगे

जनजातियों के नाम में मामूली त्रुटि दूर करने से बड़े फ़ायदे होंगे

किसी समुदाय के नाम के उच्चारण में मामूली फ़र्क से उसे अनुसूचित जनजाति की श्रेणी से बाहर रखा जा सकता है. इससे उसे आरक्षण और दूसरी कई सुरक्षा से महरूम रहना पड़ता है.

एक पुरानी कहावत है, ‘नुक्‍ते के हेरफेर में ख़ुदा से जुदा हुए’ यानि शब्दों या के मामूली से हेरफेर से कई बार बड़ा अंतर आ जाता है. आदिवासी समुदायों के बारे में तो यह बात बहुत अहमियत रखती है. क्योंकि अगर एक ही समुदाय के नाम की स्पेलिंग में एक वर्तनी का भी अगर फ़र्क है तो वह समुदाय जनजाति की सूचि से बाहर हो सकता है.

MBB को ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में कई लोग मिले जिन्होंने इस तरह की शिकायत हम से की थी. हाल ही में केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ की कई जनजातियों के बारे में इस तरह की त्रुटि को दूर किया है.

किसी समुदाय के नाम के शब्दों या उच्चारण में हेरफेर से क्या फर्क पड़ सकता है यह शिवप्रसाद की कहानी से पता चलता है.

2010 में छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar) में एक सरकारी टीचर की नौकरी लगने के तुरंत बाद, शिवप्रसाद भोई को अपना अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र (Scheduled Tribe certificate) सत्यापित करने के लिए कहा गया. फिर जो हुआ वो शिवप्रसाद ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. शिवप्रसाद अब 39 साल को हो चुके हैं. लेकिन उनके साथ जो हुआ वह वो आज तक नहीं भूल पाए हैं और शायद ज़िंदगी भर भूल भी नहीं पाएंगे.

दरअसल, शिवप्रसाद को उनकी जनजाति सावर (Sawar) के नाम में वर्तनी भिन्नता के चलते आख़िरकार 15 महीने बाद नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. इतना ही नहीं इस अवधि के दौरान उन्हें अपनी सेवाओं के लिए सैलरी भी नहीं मिली. उसके बाद आज तक उन्हें दूसरी नौकरी नहीं मिली.

शिवप्रसाद भोई कहते हैं, “मेरा एसटी प्रमाणपत्र न होना एक बड़ी बाधा बन गया. सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों से मदद मांगना बेकार साबित हुआ. मैं बार-बार कहता रहा कि मैं सावर जनजाति से हूं, लेकिन वर्तनी भिन्नता का मतलब था कि कुछ भी नहीं किया जा सकता. इसके बाद मेरे पास खेती में लौटने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था.”  

पिछले हफ्ते, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने छत्तीसगढ़ की अनुसूचित जनजातियों की सूची में 11 जनजातियों के लिए वर्तनी भिन्नताओं को शामिल करने को मंजूरी दी और उनमें से ‘सावर’ या ‘सावरा’ एक था. अनुसूचित जनजाति विकास विभाग के आयुक्त और आदिवासी अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (Tribal Research and Training Institute) के निदेशक शम्मी आबिदी के मुताबिक, इस फैसले से पूरे छत्तीसगढ़ में लगभग एक लाख लोगों को लाभ मिलेगा.  

शिवप्रसाद भोई अपने मामले में वैसे राहत की उम्मीद कर रहे हैं.  उन्हें लगता है कि जब प्रस्ताव को संसदीय मंजूरी और राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाएगी तो हो सकता है कि उन्हें नौकरी वापस मिल जाए. हांलाकि इसकी संभावना बहुत अधिक नहीं नज़र आती है. लेकिन उन्हें लगता है कि कम से कम उनके परिवार और समुदाय के बाकी लोगों को भविष्य में दिक्कत नहीं होगी.  

एक लंबी लड़ाई

छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ कांग्रेस और केंद्र पर शासन करने वाली बीजेपी दोनों ही ताज़ा मंजूरी का श्रेय लेने का दावा कर रहे हैं. हालांकि, पिछले डेढ़ दशक में इन जनजातियों के साथ मिलकर काम करने वाले समुदाय के नेताओं और अन्य लोगों का कहना है कि यह फैसला चुनौतियों से भरी एक लंबी प्रक्रिया के बाद आया है.

इस सिलसिले में MBB से बात करते हुए सरगुजा के पंडो समुदाय के उदय पंडो ने इस कदम का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से भ्रम दूर हो गया है. वो कहते हैं, “हमारे समुदाय के लोगों में कुछ पंडो, पन्डो या पांडो सरनेम लिखते रहे हैं. इससे भ्रम की स्थिति बनी रहती थी. लेकिन अब स्थिति स्पष्ट हो गई है.”

वो आगे कहते हैं कि सरकार के इस फैसले से सौंरा और संवरा को सावर के पर्यायवाची के रूप में स्वीकृत किया गया है. ये एक जनजाति हैं जो रायगढ़ या महासमुंद जैसे पूर्वी ज़िलों के मूल निवासी हैं. उन्होनें कहा कि उनकी जमीनें महत्वपूर्ण ट्रेन और बस मार्गों पर पड़ने के चलते शिक्षा के क्षेत्र में  उनका बेहतरीन प्रदर्शन रहा है. 

इस समुदाय की आबादी लगभग 3 लाख सावर हैं और हम गोंडों के बाद संख्यात्मक रूप से दूसरे सबसे बड़े समूह हैं. हालांकि, हम सबसे ज्यादा प्रभावित हैं.

सर्व विशेष पिछड़ी जाति समाज, छत्तीसगढ़ प्रदेश के क्षेत्रीय अध्यक्ष उदय पंडो कहते हैं कि समुदाय के नेताओं ने 2000 के दशक के मध्य में इस समस्या को पहचानना शुरू कर दिया और राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से संपर्क किया और नियमित रूप से मंत्रियों और सांसदों के साथ बातचीत की कि वो इसे हाइलाइट करें.

उदय पंडो का कहना है कि 11 ऐसी जनजाति हैं जिनकी वर्तनी भिन्नताओं को हाल ही में केंद्र द्वारा सूचीबद्ध किया गया था. उदय पंडो का कहना है कि इस सिलसिले में पहले भी दो बार कैबिनेट नोट तैयार हुआ था. लेकिन उसे संसद में पेश नहीं किया जा सका था. उन्होंने कहा कि सरकार ने इस त्रुटि को दूर कर एक महत्वपूर्ण काम किया है. 

इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अभी भी इस तरह के कई मामले हैं जिनमें सुधार की ज़रूरत है. 

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