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आदिवासी समुदाय के लिए आनुवंशिक जानकारी का महत्व

राज्यसभा में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि 'Genome India' परियोजना के तहत 36.7% नमूने ग्रामीण क्षेत्रों से, 32.2% शहरी क्षेत्रों से और 31.1% आदिवासी समुदायों से लिए गए हैं.

भारत सरकार का ‘जीनोम इंडिया’ (Genome India) प्रोजेक्ट एक बड़ा वैज्ञानिक अभियान है. इस अभियान का मकसद देश के अलग-अलग समुदायों की आनुवंशिक जानकारी (DNA से जुड़ी जानकारियां) इकट्ठा करना है.

इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि कौन-से रोग, शारीरिक और स्वास्थ्य समस्याएँ आनुवंशिक कारणों (Genetic causes) से होती हैं. यह जानकारी भविष्य में बीमारियों की रोकथाम और इलाज के बेहतर तरीके तैयार करने में मदद करेगी.

यह प्रोजेक्ट जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology) के तहत चलाया जा रहा है और इसमें देश के ग्रामीण, शहरी और खासतौर पर आदिवासी समुदायों की आनुवंशिक जानकारी को शामिल किया गया है. यह आदिवासी समुदायों की सेहत को बेहतर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है.

आदिवासी समुदायों की भागीदारी

राज्यसभा में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि इस परियोजना के तहत 36.7% नमूने ग्रामीण क्षेत्रों से, 32.2% शहरी क्षेत्रों से और 31.1% आदिवासी समुदायों से लिए गए हैं.

सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि हर तबके की बराबर भागीदारी हो ताकि किसी भी समुदाय को नज़रअंदाज़ न किया जाए.

उन्होंने यह भी बताया कि आदिवासी समुदायों का सैंपल इकट्ठा करने में उन्हें अधिक समस्या हुई.

आदिवासी क्षेत्रों से नमूने लेना क्यों मुश्किल था?

1. दूर-दराज के इलाके – आदिवासी गाँव आमतौर पर शहरों से बहुत दूर होते हैं, जहाँ पहुँचना आसान नहीं होता.

2. कम जानकारी – केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि कई आदिवासी इलाकों के लोग DNA और जीन अनुसंधान के बारे में नहीं जानते थे, जिससे वे इसमें हिस्सा लेने से हिचक रहे थे.

3. संस्कृति और परंपराएँ – कई समुदायों को यह डर था कि उनके शरीर से लिया गया नमूना किसी गलत काम में इस्तेमाल हो सकता है.

4. स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी – इन इलाकों में अच्छे अस्पताल और लैब नहीं हैं, जिससे वैज्ञानिकों के लिए सैंपल इकट्ठा करना कठिन हो गया.

सरकार ने क्या हल निकाला?

सरकार और वैज्ञानिकों ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई कदम उठाए –

इन समस्याओं का हल निकालने के लिए आदिवासी इलाकों में काम करने वाले स्वास्थ्य केंद्रों से संपर्क किया गया.

जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को समझाया गया कि इस शोध से उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा, बल्कि भविष्य में उनके लिए बेहतर इलाज तैयार किया जाएगा.

दूरदराज के इलाकों में नमूने इकट्ठा करने और सुरक्षित भेजने के लिए लॉजिस्टिक्स हब बनाए गए.

इसके साथ ही आदिवासी समुदायों को भरोसा दिलाया गया कि उनकी जानकारी पूरी तरह गोपनीय रखी जाएगी.

आदिवासियों के लिए क्यों ज़रूरी है?

आदिवासी समुदायों की खास आनुवंशिक पहचान होती है. इनके शरीर की बनावट, रोगों से लड़ने की क्षमता और बीमारियों की संभावनाएँ अन्य समुदायों से अलग हो सकती हैं.

अगर इनके DNA का अध्ययन सही तरीके से किया जाए, तो इनके लिए खासतौर पर दवाइयाँ तैयार की जा सकती हैं. बेहतर उपचार सुविधाओं का उपयोग किया जाएगा.

इससे यह पता चल जाएगा कि आदिवासी समुदायों में कौन-सी बीमारियाँ ज्यादा होती हैं और क्यों होती हैं, जिससे समय रहते इन बीमारियों का इलाज किया जा सकेगा. अगर किसी आनुवंशिक बीमारी का पता पहले ही चल जाए तो उसे बढ़ने से रोका जा सकता है.

इससे सरकार आदिवासी समुदायों के स्वास्थ्य से जुड़े खास कार्यक्रम बना सकेगी.

यह परियोजना आदिवासी समुदायों के लिए एक उम्मीद की किरण साबित हो सकती है, बशर्ते इसे सही दिशा में आगे बढ़ाया जाए.

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