पश्चिम राजस्थान (West Rajasthan) के जोधुपर, बाड़मेर, जैसलमेर और जालौर जिलों में रहने वाले आदिवासी समूहों की मांग है कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों को रेगिस्तान जनजातीय विशेष क्षेत्र(Desert Tribal Area) बनाया जाए.
इन आदिवासी समूहों ने 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए कहा कि जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर और जालौर ज़िलों के राजस्व गांव में 50 प्रतिशत से भी ज्यादा आदिवासी रहते हैं. इसलिए यह इलाके रेगिस्तान जनजातीय विशेष क्षेत्र के लिए उपयुक्त हैं.
इन ज़िलों के ग्राम पंचायत में ज्यादातर भील, मीना और खैरवा जैसे आदिवासी समूह रहते हैं. यह आदिवासी न्यूनतम आय के साथ अपना गुज़ारा कर रहे हैं.
अगर जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर और जालौर ज़िलों में स्थित ग्राम पंचायत को आरक्षित कर दिया गया, तो यहां रहने वाले आदिवासियों को स्थानीय शैक्षणिक संस्थानों और भर्ती परीक्षाओं में 45 प्रतिशत आरक्षण मिल जाएगा.
2011 की जनगणना के अनुसार जोधपुर में 3.23 प्रतिशत आबादी आदिवासी हैं.
भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के अध्यक्ष वेला राम घोगरा ने कहा, “पश्चिम राजस्थान के कुछ इलाके टीएसपी दर्जे के लिए योग्य हैं. 2021 में होने वाली जनगणना में देरी की वज़ह से आदिवासी समुदाय को नुकसान नहीं होना चाहिए.”
राजस्थान में ज्यादातर आदिवासी आबादी दक्षिण राजस्थान में रहते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में 6 करोड़ आबादी है, इनमें से अनुसूचित जनजाति की आबादी 90 लाख है. जो कुल जनसंख्या का 14 प्रतिशत होता है.
दक्षिण राजस्थान में ज्यादातर क्षेत्रों को ट्राइबल सब प्लान के तहत रखा गया है. ट्राइबल सब प्लान के तहत आदिवासी इलाकों के विकास के लिए बजट में विशेष प्रावधान किया जाता है.
इस व्यवस्था के तहत भारत सरकार के हर मंत्रालय को अपने बजट में से एक निश्चित धन राशी आदिवासी इलाकों के विकास पर ख़र्च करनी होती है.