छत्तीसगढ़ के नारायणपुर और बीजापुर जिलों की सीमा पर स्थित अबूझमाड़ के कुम्मम-लेकावड़ा गांवों में 11 और 12 दिसंबर को सुरक्षा बलों ने सात माओवादियों को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था.
लेकिन स्थानीय लोग और आदिवासी कार्यकर्ता दावा कर रहे हैं कि उनमें से पांच माओवादी नहीं बल्कि ग्रामीण थे. इसके अलावा कम से कम चार नाबालिग ग्रामीण भी घायल हुए हैं.
वहीं अब कांग्रेस पार्टी ने भी छत्तीसगढ़ सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए दावा किया है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे से पहले अबूझमाड़ क्षेत्र में हाल ही में हुई एक “फर्जी” मुठभेड़ में पांच निर्दोष लोग मारे गए.
पार्टी ने आगे आरोप लगाया कि गृह मंत्री के दौरे के दौरान इन विवरणों को जानबूझकर उनसे छिपाया गया.
बुधवार को राज्य की राजधानी के एक अस्पताल में मीडिया से बातचीत के दौरान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने खुलासा किया कि ग्रामीणों ने बताया कि पांच निर्दोष आदिवासियों को गोली मारी गई, जिनका माओवादियों से कोई संबंध नहीं था.
वह कथित घटना के दौरान गोली लगने से घायल हुई एक लड़की को देखने के लिए अस्पताल गए थे.
बैज ने कहा, “डॉक्टर से बात करके पता चला है कि लड़की स्थिर है, लेकिन उसकी हालत गंभीर बनी हुई है. हम निर्दोष आदिवासियों के हताहत होने को लेकर चिंतित थे. माओवादियों ने अपने दो लोगों के मारे जाने की बात स्वीकार की है. इस घटना की जांच की जरूरत है. केंद्रीय गृह मंत्री को इस फर्जी मुठभेड़ के बारे में जानकारी नहीं दी गई.”
उन्होंने मुख्यमंत्री और गृह मंत्री से जवाबदेही की मांग की और एक जांच समिति की मांग की.
बैज ने आदिवासी समुदायों के प्रति सरकार के रवैये पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने बताया कि रायपुर के डीकेएस अस्पताल में भर्ती बच्ची समेत चार बच्चों को गोली लगी है. तीन अन्य का जगदलपुर और दंतेवाड़ा के अस्पतालों में इलाज चल रहा है.
बैज ने रायपुर के अस्पताल में भर्ती लड़की से उसकी स्थानीय बोली में बात करने के बाद बताया कि लड़की को अपने घर के बाहर काम करते समय गर्दन में चोट लगी थी और बाकी तीन बच्चे खेतों में काम करते समय घायल हुए थे.
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जताया संदेह
वहीं वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुठभेड़ पर संदेह जताया.
उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “जब सुरक्षा बल नक्सलियों से लड़ रहे थे, तो ये बच्चे कैसे घायल हो गए? क्या यह वाकई मुठभेड़ थी या निर्दोष लोगों की हत्या? फर्जी मुठभेड़ों के मामले में भाजपा सरकार का रिकॉर्ड खराब है. यहां तक कि इसके पिछले कार्यकाल में भी ऐसी कई घटनाएं हुई थीं.”
बघेल ने केंद्र को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और राज्य सरकार को सावधानी बरतने का निर्देश देना चाहिए. अनुचित समय सीमा के भीतर माओवादियों को खत्म करने की अति महत्वाकांक्षी योजनाओं के चलते निर्दोष आदिवासी लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और छत्तीसगढ़ के पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने इस घटना पर चिंता व्यक्त की है.
एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने कहा, ‘लक्ष्यों को निर्धारित करने से ऐसे खतरों का जन्म होता है…. नक्सल समस्या का समाधान ज़रूरी है, लेकिन यह आम नागरिकों की जान की कीमत पर नहीं हो सकता… निर्दोष नागरिकों को किसी भी सूरत में कोलेटरल डैमेज नहीं बनने दिया जा सकता….. यह अत्यंत दुखद है कि 11 तारीख को गंभीर रूप से घायल हुए लोग केवल कल ही रायपुर पहुंच पाए.’
क्या है पूरा मामला?
12 दिसंबर 2024 को पुलिस ने दावा किया था कि नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिलों की सीमा पर दक्षिण अबूझमाड़ के कल्हाजा-दोंदरबेड़ा गांव की पहाड़ियों पर मुठभेड़ हुई थी. सुरक्षाकर्मियों की एक संयुक्त टीम के साथ मुठभेड़ में दो महिलाओं सहित सात नक्सली मारे गए थे.
पुलिस ने 14 दिसंबर को जो बयान जारी किया था, उसमें इन पांच मृतकों के नाम– रैनू, सोमारू उर्फ मोटू, सोमारी, गुडसा, कमलेश उर्फ कोहला बताये गए थे. पुलिस के मुताबिक इनका पद ‘पी.एम.’ था, जिसे स्थानीय संदर्भ में माओवादी कहा जाता है.
पुलिस के मुताबिक इन सब पर दो-दो लाख रुपये का इनाम भी था.
पुलिस का बयान कहता है कि रैनू, कोहला, सोमारू और सोमारी कुम्मम गांव से थे और गुडसा दिवालूर गांव के निवासी था.
लेकिन ग्रामीणों के मुताबिक मारे गए 7 कथित माओवादियों में 5 ग्रामीण थे.
स्थानीय लोगों के मुताबिक, 11 दिसंबर को सुबह करीब 9 बजे सुरक्षाकर्मियों ने उन पर तब गोलियां चलाईं, जब वे नारायणपुर जिले के रेखावाया पंचायत के अंतर्गत कुम्माम और लेकावाड़ा गांवों के पास पहाड़ियों पर खेतों में काम कर रहे थे. उनमें से कुछ घायल हो गए जबकि कई बच गए.
फिर 17 दिसंबर की शाम को पुलिस ने एक प्रेस नोट जारी कर दावा किया कि वरिष्ठ नक्सल कैडर कार्तिक की जान बचाने के लिए माओवादियों ने नाबालिगों और ग्रामीणों का उपयोग मानव ढाल के रूप में किया है.
बयान में यह भी कहा गया, ‘ग्रामीणों को नक्सलियों का सामान ढोने के लिए साथ में रखा गया था और मुठभेड़ के दौरान उन्हीं ग्रामीणों की आड़ लेकर सुरक्षा बलों पर फायरिंग की गई थी जिसमें नक्सलियों की फायरिंग में चार ग्रामीणों के घायल होने की सूचना मिली थी.’
वहीं इंडियन एक्सप्रेस में 18 दिसंबर को छपी रिपोर्ट में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के हवाले से लिखा गया है कि ‘मुठभेड़ में चार नाबालिग छर्रे लगने से घायल हुए हैं. माओवादियों के द्वारा उपयोग किए गए बैरल ग्रेनेड लॉन्चर के छर्रों से वो घायल हुए हैं. उनमें से एक बच्ची को गले में चोट लगी, इसलिए उसे रायपुर रेफर किया गया.’
नक्सलवाद को खत्म करने का दावा
दरअसल, करीब दो महीने पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक माओवाद का उन्मूलन करने का लक्ष्य रखा है.
अमित शाह ने रविवार को अपने छत्तीसगढ़ दौरे के बीच भी कहा था कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने इस साल नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है. इस दौरान राज्य में 287 नक्सलियों को ढेर किया गया और करीब 1,000 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया, जबकि 837 अन्य ने आत्मसमर्पण किया है.
उन्होंने कहा कि केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार 31 मार्च 2026 से पहले राज्य से नक्सलवाद की समस्या को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024 में बस्तर क्षेत्र में अब तक हुई मुठभेड़ों में 220 से ज्यादा माओवादी मारे गए हैं, जो पिछले कई वर्षों का सबसे बड़ा सालाना आंकड़ा है. बीबीसी की एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय के हवाले से कहती है कि 2018 में 125, 2019 में 79, 2020 में 44, 2021 में 48, 2022 में 31 माओवादी मारे गए थे.
ऐसे में कहीं लक्ष्य को हासिल को करने के चक्कर में फर्जी मुठभेड़ तो नहीं हो रहे हैं न.