केंद्र सरकार ने सोमवार यानि 28 जुलाई को लोकसभा में बताया कि अंडमान और निकोबार में निकोबार द्वीप के समग्र विकास से प्रभावित आदिवासियों के हितों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी अंडमान प्रशासन को दी गई है.
लिटिल और ग्रेट निकोबार की जनजातीय परिषद ने नवंबर 2022 में विवादास्पद ग्रेट निकोबार टाउनशिप और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए उस वर्ष अगस्त में भूमि के डायवर्जन के लिए दिए गए अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) को वापस ले लिया था.
20 अगस्त, 2022 को लिखे गए एक अन्य पत्र में परिषद ने यूटी प्रशासन से ग्रेट निकोबार द्वीप के निकोबारियों को जल्द से जल्द उनके 2004 की सुनामी से पहले के गांवों में स्थानांतरित करने की सुविधा प्रदान करने का भी अनुरोध किया था.
जनजातीय परिषद के सदस्यों ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा कि उन्हें एनओसी वापस लेने के साथ-साथ स्थानांतरण के अनुरोध पर सरकार से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
उनमें से एक ने कहा, “ग्रेट निकोबार परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए एनओसी वापस लेने के बारे में हमें सरकार से अभी तक कोई जानकारी नहीं मिली है. हम अपनी पुश्तैनी ज़मीन नहीं छोड़ सकते. हमें किसी ऐसे सार्वजनिक दस्तावेज़ की भी जानकारी नहीं है जिसमें सरकार ने इन मुद्दों पर कोई प्रतिक्रिया दी हो.”
परिषद ने कहा कि उसे यह नहीं बताया गया कि विकास के लिए चिह्नित की जा रही भूमि में वे क्षेत्र और गांव शामिल हैं, जहां समुदाय 2004 की सुनामी से पहले रहते थे.
सोमवार को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में कहा, “केंद्र सरकार द्वारा दी गई मंजूरी की शर्तों में आदिवासियों के हितों की सुरक्षा अंतर्निहित है और यूटी प्रशासन को ऐसी जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं.”
सरकार से यह पूछा गया था कि पर्यटन आदि के लिए क्या ग्रेट निकोबार द्वीप को विकसित करने की सरकारी परियोजना के तहत ग्रेट निकोबार द्वीप में लगभग 10 मिलियन पेड़ काटे जाने हैं और स्थानीय जनजातियों को विस्थापित किया जाना है.
उन्होंने यह भी पूछा कि क्या ऐसी परियोजना पर्यावरण की रक्षा के लिए देश के घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप है.
सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि परियोजना में पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के उपाय शामिल हैं.
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने अपने जवाब में कहा, “केंद्र सरकार द्वारा दी गई मंजूरी में निर्धारित शर्तों के मुताबिक, वनस्पतियों और जीव-जंतुओं पर विकास के प्रभाव की भरपाई के लिए पर्याप्त निवारण उपाय पर्यावरण/वन मंजूरी की शर्तों का हिस्सा हैं.”
मंत्री ने कहा कि केंद्र ने 27 अक्टूबर, 2022 के पत्र के माध्यम से ग्रेट निकोबार द्वीप में सतत विकास के लिए 130.75 वर्ग किलोमीटर वन भूमि के डायवर्जन के लिए सैद्धांतिक/स्टेज-1 की मंजूरी दी है.
मंत्रालय के जवाब में कहा गया है, “यह परियोजना महत्वपूर्ण रणनीतिक और राष्ट्रीय महत्व की है. प्रभावित होने वाले पेड़ों की अनुमानित संख्या 9.64 लाख (964,000) है. हालांकि, डायवर्जन के लिए प्रस्तावित क्षेत्र का 50 फीसदी से अधिक यानी 65.99 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र हरित विकास के लिए आरक्षित है, जहां किसी भी पेड़ की कटाई की परिकल्पना नहीं की गई है. यह उम्मीद की जाती है कि विकास क्षेत्र का करीब 15 फीसदी हिस्सा हरा और खुला स्थान बना रहेगा और इसलिए प्रभावित होने वाले पेड़ों की संख्या 9.64 लाख से कम होने वाली है.”
मंत्री ने वन्यजीवों पर परियोजना के प्रभाव के बारे में चिंताओं को भी संबोधित किया. उन्होंने कहा, “परियोजना के कारण लैदरबैक कछुए के प्रजनन स्थलों में किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया जा रहा है. कछुओं के घोंसले के लिए बड़े घोंसले के क्षेत्रों (पश्चिमी भाग) को वैसे ही बनाए रखा गया है.”
ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की निष्पक्ष समीक्षा हो – कांग्रेस
वहीं कांग्रेस ने रविवार को प्रस्तावित ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को ‘‘पर्यावरणीय और मानवीय आपदा’’ करार दिया और संबंधित संसदीय समितियों द्वारा इसकी पूरी तरह निष्पक्ष समीक्षा किये जाने की मांग की है.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर मीडिया की रिपोर्ट साझा की, जिसमें दावा किया गया है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा नियुक्त उच्चस्तरीय समिति (HPC) को ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए हरित मंजूरी की समीक्षा करने का काम सौंपा गया था.
इस समिति ने निष्कर्ष निकाला कि प्रस्तावित बंदरगाह द्वीप तटीय विनियमन क्षेत्र-आईए (ICRZ-IA) में नहीं आता है, जहां बंदरगाहों पर प्रतिबंध है बल्कि आईसीआरजेड-आईबी में है, जहां इनकी अनुमति है.
रमेश ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘ये केवल सूत्रधार के इशारे पर खेले जा रहे खेल हैं, जो ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के नाम पर पर्यावरणीय और मानवीय आपदा को बढ़ावा दे रहे हैं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘इससे कई सवाल उठते हैं भूमि वर्गीकरण इस तरह कैसे बदल सकता है? जमीनी स्तर की वास्तविकताओं के बारे में ज्यादा वाकिफ स्थानीय प्राधिकार अंडमान और निकोबार तटीय प्रबंधन प्राधिकरण को कुछ एक्सपर्ट संगठन की तुलना में ज्यादा तवज्जो देना चाहिए, जिसे प्रभावित किया जा सकता है.’’
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सवाल किया कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एकीकृत विकास निगम (ANIIDCO) और नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट (NCSCM) के पास कौन सी नयी जानकारी उपलब्ध है, जिससे वे अब तक कही गई सभी बातों को पलटने और भूमि के वर्गीकरण को बदलने में कामयाब हो गए हैं. उन्होंने इस तरह के पुनर्वर्गीकरण के लिए उचित प्रक्रिया के बारे में भी पूछा है.
उन्होंने कहा, ‘‘एनसीएससीएम (NCSCM) की गतिविधियों के बारे में और अधिक विवरण उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है. उन्होंने निकोबार द्वीप समूह का दौरा कब किया? उन्होंने जानकारी एकत्र करने के लिए कौन से तरीके अपनाए? एनएससीएसएम की रिपोर्ट कब सार्वजनिक की जाएगी?’’
रमेश ने सवाल किया कि एनजीटी को सौंपी गई एचपीसी रिपोर्ट कब सार्वजनिक की जाएगी. कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘इस प्रस्तावित परियोजना की संबंधित संसदीय समितियों द्वारा निष्पक्ष समीक्षा की जानी चाहिए.’’
ग्रेट निकोबार में पर्यटन को बढ़ावा देने की सरकार की योजना के बारे में कई तरह की चिंताएं प्रकट की जा रही हैं. ये चिंताएं पर्यावरण के साथ साथ इस द्वीप में रहने वाले आदिवासी समुदाय से भी जुड़ी हैं.
अंडमान निकोबार द्वीप समूह के आदिवासी समुदायों पर काम करने वाले कई एंथ्रोपोलोजिस्ट भी इन चिंताओं में शामिल हैं.