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आदिवासी और दलितों पर अत्याचार के मामले सूचीबद्ध करने के लिए बने राष्ट्रीय पोर्टल – संसदीय समिति

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक वर्ष 2019 में आदिवासियों पर अत्याचार (Atrocitites against Tribals) के 7570 मामले दर्ज किए गए थे, जो 2020 में बढ़कर 8272 और 2021 में 8802 हो गए. इस प्रकार 2019-2021 की अवधि के दौरान दर्ज मामलों की संख्या में वृद्धि देखी गई.

देश में अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC ST Prevention of Atrocities Act) वर्ष 1989 में पारित किया गया था. लेकिन इसके बावजूद देश में आदिवासियों (Tribals) और दलितों (Dalits) के खिलाफ दर्ज अपराधों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है.

देश के हर कोने से लगभग हर रोज आदिवासियों और दलितों के खिलाफ अपराध और अत्याचार की खबरें पढ़ने सुनने को मिलती है.

अब संसद की एक समिति ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों से संबद्धित लोगों के खिलाफ अत्याचार के सभी मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए सरकार से एक राष्ट्रीय पोर्टल तैयार करने को कहा है.

भारतीय जनता पार्टी सांसद किरीट प्रेमजीभाई सोलंकी की अध्यक्षता वाली अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में ये बात कही.

इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में समिति ने राष्ट्रिय अनुसूचित जनजाति आयोग की वित्तीय स्वतंत्रता पर भी ज़ोर दिया.

समिति ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए वित्त मंत्रालय से समन्वय करने का प्रयास करने को कहा है.

दलित ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स नेटवर्क में खुलासा

हाल ही में 1,000 से अधिक दलितों के गठबंधन, दलित ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स नेटवर्क ने एक रिपोर्ट जारी कि थी. इसके मुताबिक साल 1991 से 2021 तक यानी तीस साल की अवधि में, अनुसूचित जाति समुदायों के खिलाफ अपराधों की संख्या में 177.6% की वृद्धि हुई है. वहीं इसी अवधी में एसटी समुदायों के खिलाफ अपराधों में 111.2% की वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट के मुताबिक देश में इन दोनों वर्गों की जनसंख्या की तुलना में ये अपराध तेज़ी से बढ़े है.

बता दें, ये रिपोर्ट आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना सहित देश 15 राज्यों से एकत्रित आंकड़ों पर बनाई गई है. राज्यों की बात करें तो इन 30 सालों में आदिवासियों के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध मध्य प्रदेश में दर्ज किए गए. यहां 28.2 प्रतिशत मामले दर्ज हुए.

इसके बाद राजस्थान में 20.22%, ओडिशा में 8.50%, महाराष्ट्र में 7.23% और तेलंगाना में 6.34% प्रतिशत मामले दर्ज किए गए.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इन मामलों में पुलिस ने चार्जशीट भी देरी से दायर की. sc st अधिनियम के तहत FIR दर्ज होने के 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दायर की जानी चाहिए. लेकिन अक्सर ऐसा होता नहीं है.

रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2020 के बीच लगभग 46.8% अत्याचार के मामलों में चार्जशीट 60 दिनों के बाद दायर की गई. इस मामले में तेलंगाना का सबसे खराब रिकॉर्ड है. चार्जशीट दाखिल करने में लगने वाला औसत समय 100 दिन या साढ़े महीने था.

सरकारी आंकड़ें भी चिंताजनक

आदिवासियों पर अत्याचार के मामले में सरकारी आंकड़ें भी कुछ अलग स्थिति बयां नहीं करते है. बजट सत्र के पहले चरण के दौरान यानी फरवरी 2023 में जनजातीय मामलों के मंत्री बिश्वेश्वर टुडू ने पिछले तीन सालों में देश में आदिवासियों के खिलाफ हुए अत्याचारों और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) द्वारा की गई कार्यवाही यानी निपटाए गए मामलों से जुड़े आंकड़ों को सदन में रखा.

इन आंकड़ों के तहत वर्ष 2019 में कुल 7570 मामले दर्ज किए गए थे, जो 2020 में बढ़कर 8272 और 2021 में 8802 हो गए. इस प्रकार 2019-2021 की अवधि के दौरान दर्ज मामलों की संख्या में वृद्धि देखी गई.

इसमें से 2019 में केवल 741 मामले, 2020 में 347 मामले और 2021 में 548 मामलों में ही आरोप तय किए गए.

महत्वपूर्ण यह भी है कि 2019 में 1148 लोगों, 2020 में 605 और 2021 में 824 लोगों को दोषी ठहराया गया. खास है कि इन सालों में सबसे ज्यादा मामले राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों से ही रिपोर्ट हुए हैं.

जहां एक तरफ मामलों की बढ़ती संख्या बताती है कि भारत का आदिवासी समुदाय जिस असुरक्षित वातावरण में रह रहा है, वह चिंताजनक है. तो दूसरी तरफ पिछले 3 सालों में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचारों को लेकर NCST द्वारा की गई कार्यवाही में साल दर साल काफी कमी आई है.

2019-2020 की अवधि के दौरान निपटाए गए मामलों की कुल संख्या 1558 थी, जो 2020-2021 की अवधि के दौरान घटकर 533 हो गई. इसमें और भी कमी आ सकती है क्योंकि 2020-21 में रिपोर्ट हुए 533 मामलों की तुलना में 2021-22 के दौरान केवल 368 मामलों का ही निपटारा किया जा सका है.

ध्यान देने वाली बात यह है कि 2021-22 की अवधि के दौरान आयोग ने जिन मामलों पर कार्रवाई की उनमें सबसे ज्यादा मामले राजस्थान में (72) रिपोर्ट किए गए थे. दूसरे और तीसरे सबसे ज्यादा मामले क्रमशः मध्य प्रदेश (46) और झारखंड से (35) थे.

देश में आदिवासियों के ख़िलाफ़ अत्याचार को रोकने के लिए कड़े क़ानून मौजूद हैं. लेकिन इन क़ानूनों का भय लोगों के मन में नहीं है. इसकी एक वजह है कि अदालतों का भारी ख़र्च उठाना आदिवासियों के बस की बात नहीं है.

इसके अलावा पुलिस प्रशासन और न्याय व्यवस्था भी आदिवासी मसलों के प्रति बहुत संवेदनशील नहीं हैं.

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