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आंध्र प्रदेश: वाल्मीकि बोया को ST सूची में शामिल करने के लिए केंद्र से सिफारिश

वर्तमान में दो तेलुगु राज्यों के 45 लाख बोयाओं (Boya) में से एक लाख से भी कम आदिवासी विकास एजेंसी (ITDA) क्षेत्रों में रहते हैं. बोया समुदाय की एसटी दर्जे (ST list) में शामिल होने की मांग 60 साल पुरानी है. इसे लेकर बोया ज्वाइंट एक्शन कमेटी (JAC) ने साल 2022 में कई बार आंदोलन किए. कमेटी के नेतृत्व में ये आंदोलन न सिर्फ तेलंगाना (Telangana) बल्कि आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) में भी बड़े प्रदर्शन पर फैल गया था.

तेलंगाना (Telangana) के बाद अब आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) सरकार ने भी बोया वाल्मीकि (Boya Valmiki) समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची (Scheduled Tribes List) में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया है.

समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार केंद्र को सिफारिश भेजेगी. शुक्रवार को आंध्र प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने दो प्रस्ताव पेश किए . जिन्हें सदन से पारित करा लिया गया.

पहले प्रस्ताव के मुताबिक बोया/वाल्मीकि समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार केंद्र से अनुरोध करेगी तो वहीं दूसरे प्रस्ताव के मुताबिक वाल्मिकी बोया समुदाय के ईसाई धर्म अपनाने वाले सदस्यों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के लिए भी केंद्र को सिफारिश भेजी जाएगी.

प्रस्ताव पेश करने के दौरान मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी (Y. S. Jagan Mohan Reddy) ने सदन को आश्वासन दिया कि एसटी सूची में बोया/वाल्मीकि समुदाय को शामिल करने से दक्षिणी राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों में पहले से रहने वाले मौजूदा आदिवासी प्रभावित नहीं होंगे.

इसके साथ ही उन्होंने इस आशंका को भी दूर किया कि कुर्नूल, कडप्पा, अनंतपुर और चित्तूर जिलों में रहने वाले इन समुदायों के लोगों को एसटी सूची में शामिल करने से आदिवासी बहुल इलाकों में सरकारी नौकरियों या शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जनजाति का कोटा कम नहीं होगा. क्योंकि राज्य में छह सूत्रीय फॉर्मूला के तहत आरक्षण के लिए जोनिंग सिस्टम लागू है.

मुख्यमंत्री ने साफ किया कि बोया वाल्मिकी के एसटी सूची में शामिल होने से राज्य की गैर-ज़ोनिंग श्रेणी में आने वाले ग्रुप -1 नौकरियों पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

शुक्रवार रात को एक बयान में उन्होंने कहा कि जैसा कि पिछले 10 सालों में ग्रुप -1 नौकरियों के लिए सिर्फ 386 पोस्ट को छह प्रतिशत आरक्षण के साथ अधिसूचित किया गया था. यानी अनुसूचित जनजाति के लिए 21 या 22 पद रहे. ऐसे में इन पर नगण्य प्रभाव ही पड़ेगा.

खबरों के मुताबि सैमुअल आनंद कुमार द्वारा संचालित एक सदस्यीय आयोग जिसने इन चार जिलों में बोयाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का अध्ययन किया था और एसटी आयोग भी इस आकलन से सहमत है.

वहीं बोया वाल्मीकि समुदाय के जो सदस्य ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे, उन्हें अनुसूचित जाति समुदाय का दर्जा देने के लिए भारत सरकार से अनुरोध करने पर भी मुख्यमंत्री ने आयोग से विचार विमर्श किया था. विधानसभा में इससे जुड़ा प्रस्ताव पारित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि दूसरे धर्म में परिवर्तित होने से उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में स्वतः परिवर्तन नहीं होता है.

फरवरी महीने में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने भी ऐसा ही एक प्रस्ताव पेश किया था. जिसके मुताबिक सरकार ने वाल्मीकि बोया समेत कई अन्य समुदायों को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) सूची में शामिल करने की सिफारिश की है. इनमें वाल्मीकि बोया, पेड्डा बोया, खैती लंबादास, माली साहा बेदार, किराटक, निषादी, भट मथुरा, चमार मथुरा, चंदावल और थलयारी समुदाय शामिल है. इन सभी समुदायों को एसटी सूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार केंद्र को सिफारिश भेजेगी.

क्या कहता है इतिहास?

आजादी से कई दशक पहले, बोया/वाल्मीकि जंगलों में रहते थे और उनका पारंपरिक पेशा शिकार था. जब अंग्रेजों ने जंगलों को नष्ट करने की कोशिश की, तो समुदाय ने औपनिवेशिक शासकों का विरोध किया और उनसे युद्ध किया. उपनिवेशवादियों ने उनके खिलाफ मामले दर्ज किए और उन्हें क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट, 1871 के तहत कैद कर दिया. जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वाली जनजातियों के खिलाफ किया गया था.

स्वतंत्रता के बाद भी इस कानून को 1952 में कठोर आदतन अपराधी अधिनियम द्वारा प्रतिस्थापित किया गया, जिसके तहत जनजातियों का उत्पीड़न जारी रहा.

1952 से 1976 के बीच जब आपराधिक जनजाति अधिनियम को निरस्त कर दिया गया तब तत्कालीन आंध्र प्रदेश में बोया वाल्मिकी को अनुसूचित जाति (एससी) के रूप में मान्यता दी गई थी.

1976 में, अनुसूचित जनजाति संशोधन अधिनियम ने संयुक्त आंध्र प्रदेश के उन विशेष क्षेत्रों में बोया को एसटी के रूप में फिर से वर्गीकृत किया जो आदिवासी विकास एजेंसी (आईटीडीए) के अधीन थे. हालांकि राज्य के अन्य हिस्सों में, उन्हें पिछड़ा वर्ग श्रेणी में शामिल किया गया.

वर्तमान में दो तेलुगु राज्यों के 45 लाख बोयाओं में से एक लाख से भी कम आदिवासी विकास एजेंसी (ITDA) क्षेत्रों में रहते हैं.

बोया समुदाय की एसटी दर्जे में शामिल होने की मांग 60 साल पुरानी है. इसे लेकर बोया ज्वाइंट एक्शन कमेटी (JAC) ने साल 2022 में कई बार आंदोलन किए. कमेटी के नेतृत्व में ये आंदोलन न सिर्फ तेलंगाना बल्कि आंध्र प्रदेश में भी बड़े प्रदर्शन पर फैल गया था.

साल 2019 में इस मांग को भाजपा के आंध्र प्रदेश घोषणापत्र में शामिल किया गया था. उस वर्ष आम चुनावों से पहले, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कुरनूल जिले का दौरा किया और एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया. इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा, “मैं वाल्मीकि समुदाय के दर्द को भी समझता हूं जिन्हें यहां बोया भी कहा जाता है. मुझ पर अपना विश्वास रखो. एक नया भारत बनेगा जहां हर किसी को उसकी जरूरत के मुताबिक उचित अवसर मिलेंगे.”

अन्य राज्यों में दर्जा

तेलंगाना में इस समुदाय की आबादी लगभग 5 लाख है और आंध्र प्रदेश में 40 लाख हैं. आंध्र प्रदेश के 4 ज़िलों- कुर्नूल, कडप्पा, अनंतपुर और चित्तूर को इनका गढ़ माना जाता है. इस समुदाय से अब तक एक विधायक और एक सांसद चुने गए है, जो आंध्र प्रदेश की राजनीति में रेड्डी-कम्मा के वर्चस्व को देखते हुए महत्वपूर्ण है.

समुदाय को कर्नाटक और तमिलनाडु में अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है. कर्नाटक और महाराष्ट्र में इन्हे बेदास/बेदार/बेदागर भी कहा जाता है.

कर्नाटक-आंध्र प्रदेश की सीमा क्षेत्रों में रहने वाले बोया वाल्मिकी एक दूसरे राज्य में प्रवास करते रहते है. यहां तक ​​कि दूसरी तरफ रहने वाले लोगों के साथ वैवाहिक संबंध भी स्थापित करते हैं. लेकिन अलग-अलग राज्य में अलग दर्जे के चलते उन्हें कानूनी मुश्किलें उठानी पड़ती है.

कई समितियों का गठन

साल 2016 में इस मामले का अध्ययन करने के लिए आंध्र विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ सत्य पाल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था. समिति ने इस समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी.

जिसके बाद साल 2017 में सत्य पाल रिपोर्ट की सिफारिशों का अध्ययन करने के लिए आंध्र प्रदेश के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा एक और समिति का गठन किया गया. अपने निष्कर्ष में, प्रदेश एससी एसटी आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है, “1956 में आंध्र प्रदेश के गठन के बाद, समुदाय को पूरे राज्य में अनुसूचित जाति के रूप में माना गया और बाद में अज्ञात कारणों से हटा दिया गया. उनमें से अधिकांश सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं और पूर्व-अपराधी होने का सामाजिक कलंक है जो अभी भी जारी है. उनकी अपनी आदिवासी विशेषताएं हैं. ”

इसके आधार पर आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू द्वारा विधान सभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया था. लेकिन यह अमल में नहीं आया क्योंकि अंतिम निर्णय राष्ट्रपति के पास रहता है.

साल 2022 में अक्टूबर मे YSRCP सरकार ने समुदाय के मुद्दों का अध्ययन करने और उन्हें एसटी श्रेणी में शामिल करने के लिए एक सदस्यीय आयोग का गठन किया. लेकिन तब बोया बहुत खुश नहीं हुए. तब समुदाय का कहना था कि पहले भी कई समितियों का गठन किया गया है, उन सभी ने समावेश के पक्ष में सिफारिश की है. इसके बावजूद उन्हें एसटी दर्जा नहीं मिल रहा है.

वहीं साल 2016 में, ज्वाइंट एक्शन कमेटी (JAC) के एक सदस्य वेंकटेश्वरलू ने व्यापक विवरण और पृष्ठभूमि के साथ, चेंज डॉट ओआरजी पर समुदाय को एसटी का दर्जा देने की मांग वाली एक याचिका डाली, जिसमें जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा को संबोधित किया गया था. हालांकि यह एक असफल प्रयास था, लेकिन उन्हें देश भर के लोगों से कॉल और मेल के माध्यम से समर्थन मिला.

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