महाराष्ट्र की राजनीति में धनगर समुदाय की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण मानी जाती रही है. लेकिन 2024 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में यह समुदाय एक जटिल सामाजिक समीकरण बना रहा है.
धनगर समुदाय की सबसे बड़ी मांग है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) की सूचि में शामिल किया जाए. जनसंख्या के आधार पर राज्य के कुल 288 विधानसभा क्षेत्रों में करीब 40-50 सीटें ऐसी हैं जहां धनगर समुदाय का प्रभाव निर्णायक साबित हो सकता है.
लेकिन राजनीतिक दलों के लिए यह एक बड़ा जटिल समिकरण पैदा करता है. क्योंकि जो समुदाय पहले से अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल हैं, वे धनगर को इस सूचि में स्थान नहीं देना चाहते हैं.
ST आरक्षण की मांग को लेकर सरकारें अब तक ठोस कदम नहीं उठा पाई हैं, क्योंकि यह एक संवैधानिक मामला भी है, और इसके लिए केंद्र सरकार की स्वीकृति आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले पर सुनवाई हो रही है, जिससे यह मुद्दा और अधिक जटिल हो गया है।
धनगर समुदाय महाराष्ट्र की कुल जनसंख्या का लगभग 8-9% है. ज़ाहिर है कि यह समुदाय राज्य में एक बड़ा वोट बैंक बनाता है. इस समुदाय की उपस्थिति मुख्य रूप से पश्चिमी महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, विदर्भ और उत्तर महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में है.
फ़िलहाल यह समुदाय अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के तहत आता है. यह समुदाय दावा करता है कि वह दरअसल धनगड़ या धंगड़ समुदाय है. लेकिन उनके नाम को लिखने में त्रुटि हुई, जिसकी वजह से उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूचि से बाहर कर दिया गया.
महाराष्ट्र के सोलापुर, पुणे, सांगली-सतारा, उस्मानाबाद, लातूर, अहमदनगर और नासिक ज़िले में प्रभाव माना जाता है.
भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने आरक्षण का वादा किया
बीजेपी ने पिछले चुनावों में धनगर समुदाय के समर्थन को अपनी ओर आकर्षित करने में सफलता हासिल की थी. इस पार्टी ने 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में धनगरों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का वादा किया था.
BJP ने राज्य और केंद्र सरकार में कुछ धनगर नेताओं को प्रमुख पदों पर बिठाकर भी इस समुदाय को संतुष्ट करने की कोशिश की है. लेकिन केंद्र और राज्य में सरकार होने के बाद भी बीजेपी ने धनगर को किया वादा पूरा नहीं किया है.
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने यह घोषणा की थी कि वह जल्दी ही एक सरकारी आदेश (Government Order) के ज़रिए धनगर को अनुसूचित जनजाति का हिस्सा घोषित कर देगी. लेकिन सरकार इस घोषणा को भी लागू नहीं कर पाई है.
अनुसूचित जनजाति घोषित करना आसान नहीं
महाराष्ट्र में धनगर समुदाय एक प्रभावशाली जातीय समूह है. यह मूलत: चरवाह समुदाय है. फ़िलहाल महाराष्ट्र मे इस समुदाय को घुमंतु जनजाति माना जाता है. धनगर समुदाय को अनसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का समर्थन सभी राजनीतिक दल करते रहे हैं.
लेकिन किसी भी पार्टी की सरकार के लिए यह फैसला करना बेहद मुश्किल काम है. क्योंकि यह फ़ैसला राज्य के मौजूदा अनसूचित जनजाति समुदायों को नाराज़ कर सकता है. महाराष्ट्र में फ़िलहाल अनुसूचित जनजाति के लिए 25 विधान सभा सीटें आरक्षित हैं.
2014 के विधान सभा चुनाव में धनगर समुदाय के लिए आरक्षण का आंदोलन चलाने वाली पार्टी राष्ट्रीय समाज पक्ष ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था. राज्य में बीजेपी की सरकार बनी और देवेंद्र फडनंवीस राज्य के मुख्यमंत्री बन गए.
उन्होने धनगर समुदाय को आश्वसन दिया कि जल्दी ही धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाएगा. इस सिलसिले में तत्कालीन बीजेपी सरकार ने टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साईंस (TISS) ुको धनगर समुदाय पर शोध करने की ज़िम्मेदारी दे दी.
लेकिन इस स्टडी में धनगर समुदाय के बारे में क्या कहा गया यह कभी सार्वजनिक नहीं किया गया. इस बीच में विपक्ष के दलों ने यह दावा किया कि केंद्र सरकार धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के पक्ष में नहीं है.
बीजेपी दो बार धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का आश्वासन दे कर चुनवा में उसका समर्थन हासिल कर चुकी है. अब राज्य में एक और चुनाव हो रहा है, और धनगर समुदाय फिर आंदोलन की राह पर है.
राज्य में बीजेपी की सरकार है और उसके पास फिर धनगर समुदाय को यह आश्वासन देने का विकल्प नहीं है कि वह धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि मे शामिल करने का काम करेगी. इसलिए सरकार ने एक सराकरी आदेश के ज़रिए धनगर को धांगड़ घोषित करने की योजना बनाई थी.
लेकिन यह सरकारी आदेश भी अभी तक जारी नहीं हो पाया है.
वैसे यह माना जाता है कि सरकार अगर ऐसा कोई आदेश पारित भी कर दे तो धनगर समुदाय को आरक्षण का लाभ मिलने आसान नहीं होगा. क्योंकि यह लड़ाई यहां से अदलात जा सकती है.
हिमाचल प्रदेश के हाटी जैसा मामला है
बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश में ट्रांसगिरी के इलाके में रहने वाले हाटी समुदाय को भी चुनाव में यह वादा किया था कि वह उसे अनुसूचित जनजाति का दर्जा देगी. हिमाचल प्रदेश में बीजेपी ने यह वादा पूरा भी कर दिया था.
लेकिन इस फ़ैसले को अदालत में चुनौती मिली और सरकार के फ़ैसले पर रोक लगा दी गई. दरअसल हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग भी लगभग उतनी ही पुरानी है जितनी धनगर समुदाय की है.
हाटी समुदाय के अनुसूचित जनजाति होने के दावे को भी रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया ने ख़ारिज कर दिया था.
अनुच्छेद 342: अनुसूचित जनजातियों की सूची
भारतीय संविधान में अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) की पहचान और सूचीकरण से संबंधित प्रावधान अनुच्छेद 342 में दिए गए हैं. यह अनुच्छेद अनुसूचित जनजातियों की सूची तैयार करने की रूपरेखा देता है.
संविधान के अनुच्छेद 342(1) के तहत, राष्ट्रपति एक अधिसूचना (Notification) के माध्यम से यह घोषणा कर सकते हैं कि कौन से जनजातीय समुदाय को किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दी जाएगी.
अनुच्छेद 342(2) के अनुसार, संसद को यह अधिकार है कि वह कानून बनाकर इस सूची में बदलाव कर सकती है. इसका मतलब है कि संसद अधिसूचित सूची में कोई भी परिवर्तन कर सकती है – नए जनजातीय समुदाय को जोड़ सकती है, किसी मौजूदा जनजाति को हटा सकती है, या नामांकित समुदायों के क्षेत्रों में बदलाव कर सकती है.
राज्य सरकार की भूमिका:
राज्य सरकारें भी जनजातियों की सूची में संशोधन की सिफारिश कर सकती हैं, लेकिन अंतिम निर्णय केंद्र सरकार और राष्ट्रपति के स्तर पर लिया जाता है. राज्यों से प्राप्त सिफारिशों को केंद्र सरकार जांच के बाद अधिसूचना जारी करने के लिए राष्ट्रपति के पास भेजती है.
मोटेतौर पर किसी जातीय समूह को अनसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का पूरा अधिकार केंद्र सरकार के पास ही है.
अनसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का आधार
भारत का सविधान सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े समुदायों को विशेष सहायता और सुरक्षा देता है. लेकिन संविधान लागू होने के कुछ साल बाद से ही यह शिकायतें आती रही कि कई समुदाय अनसूचित जाति या अनसूचित जनजाति की सूचि से बाहर रह गए.
अनसूचित जनजाति के संदर्भ में आ रही शिकायतों को दूर करने के लिए 1965 में लोकुर समिति का गठन किया गया. इस समिति ने किसी समुदाय को जनजाति की सूचि में शामिल करने के लिए कुछ मापदंड सुझाए थे, जो मोटेतौर पर स्वीकार कर लिए गए हैं. समिति ने यह सिफारिश की कि अनुसूचित जनजातियों की पहचान के लिए चार मुख्य मापदंड होने चाहिए:
- आदिम लक्षण: जो आदिवासी समाज की विशेषताओं को दर्शाते हैं
- विशिष्ट संस्कृति: जनजाति की अपनी अलग और विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान
- भौगोलिक पृथकता: जो अन्य समाज से भौगोलिक रूप से अलग रहती हो
- समाज के अन्य वर्गों के साथ कम संपर्क: बाहरी समाज से न्यूनतम संपर्क रखने वाले समूह
सरकार जब किसी जातीय समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करना चाहती है तो उसके लिए इन चार मापदंडों को आधार बना कर उस जाति विशेष के बारे में एक विश्वसनीय शोध (Study) सबसे ज़रूरी शर्त है.