HomeGround Reportपहाड़िया: ख़तरों से घिरा एक आदिम जनजाति समुदाय

पहाड़िया: ख़तरों से घिरा एक आदिम जनजाति समुदाय

इस पूरी कहानी में हमने पहाड़िया आदिवासियों से जुड़े दो अहम सवालों के जवाब तलाश करने की कोशिश की है. पहला सवाल है कि क्या कारण है कि पहाड़िया आदिवासी पहाड़ छोड़कर नीचे नहीं बसना चाहते हैं. दूसरा सवाल है कि इनकी आबादी लगातार कम क्यों हो रही है.

MBB की टीम झारखंड के संताल परगना के आदिवासियों से मिलने गई तो यहाँ पर पहाड़िया आदिवासी समुदाय से भी मुलाक़ात हुई. यह मुलाक़ात आसान नहीं होनी थी. इसकी दो वजह थीं एक यह कि ये आदिवासी पहाड़ी जंगलों में रहते हैं और वहाँ के ज़्यादातर गाँवों तक सड़क नहीं जाती है. इसके अलावा ये आदिवासी आमतौर पर बाहर से आए लोगों से मिलने के लिए उत्साहित नहीं होते हैं, यह दूसरी वजह थी.

लेकिन स्थानीय पत्रकारों और कुछ दोस्तों की मदद से हम लोग इन आदिवासियों से मिल पाए थे. पहले दिन हम लोग ज़िला मुख्यालय से क़रीब 50 किलोमीटर दूर तालझारी ब्लॉक के एक छोटे से गाँव बथानी पहाड़ गए थे.

पहाड़िया के तीन समूहों में से एक सौरिया पहाड़िया इस गाँव में रहते हैं. दरअसल पहाड़िया जनजाति को तीन समूहों में पहचाना जाता है – माल पहाड़िया, कुमारभाग पहाड़िया और सौरिया पहाड़िया. पहाड़िया जनजाति को आदिम जनजाति यानि पीवीटीजी की श्रेणी में रखा गया है. इस आदिवासी समुदाय के नाम से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ये लोग पहाड़ों के जंगल में बसते हैं.

हम सुबह के क़रीब 11 बजे बथानी पहाड़ गाँव में पहुँचे,  तो गाँव के बाहर ही लोग जमा थे. दरअसल शुक्रवार को इस इलाक़े में एक हाट लगता है जहां महुआ की शराब और हंडिया बिकती है. वहाँ की बची हुई शराब ले कर कुछ महिलाएँ इस गाँव में उसे बेचने आ गई थीं.

जब हम वहाँ पहुँचे तो लगा कि वो हमारी वहाँ मौजूदगी की ना तो उम्मीद कर रहे थे और ना ही पसंद. जब एक दो लोग हमसे कुछ बातचीत करने लगे तो वहाँ के कुछ लोग भड़क गए. उन्होंने कहा कि जब तक गुणित नहीं आ जाता हैं गाँव का कोई भी आदमी या औरत हम से बात नहीं कर सकती है.

अंततः हम लोग गाँव के लोगों को यह समझाने में कामयाब रहे कि हमें गुणित से मिलवा दिया जाए. उसके बाद जैसा वे कहेंगे वैसा ही होगा. जब ये लोग तैयार हो गए और हमें गाँव के भीतर ले जा रहे थे उन्होंने साफ़ कर दिया था कि अगर गुणित ने बातचीत की अनुमित नहीं दी तो हमें बिना बहस के गाँव छोड़ना पड़ेगा.

उनकी इस बातचीत से हमें इस बात का अहसास हो रहा था कि इन गाँवों में अभी भी आदिवासियों की परंपरागत सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था काम कर रही है. इसके अलावा हमें यह भी पता चला कि इन आदिवासियों के पुनर्वास की सभी कोशिशें आख़िर नाकाम क्यों हो गईं.

इस पूरी कहानी में हमने पहाड़िया आदिवासियों से जुड़े दो अहम सवालों के जवाब तलाश करने की कोशिश की है. पहला सवाल है कि क्या कारण है कि पहाड़िया आदिवासी पहाड़ छोड़कर नीचे नहीं बसना चाहते हैं. दूसरा सवाल है कि इनकी आबादी लगातार कम क्यों हो रही है.

पूरी रिपोर्ट के लिए उपर के वीडियो लिंक को क्लिक करें.  

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