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लम्बाड़ा आरक्षण पर तेलंगाना में जंग, बीजेपी पर आदिवासियों के हितों से खिलवाड़ का आरोप

आदिवासी भारत महासभा के अध्यक्ष ने राव पर लम्बाड़ा समुदाय के ख़िलाफ़ कभी आवाज़ न उठाने का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि वादों के विपरीत बापू राव ने लम्बाड़ा समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने के लिए कोई कोशिश नहीं की.

तेलंगाना में लम्बाड़ा समुदाय को जनजाति का दर्जा एक पुराना मसला है. लेकिन अब वहां के आदिवासी संगठन इस मांग को जीवित कर रहे हैं. इस मसले पर आदिवासी संगठनों ने बीजेपी के सांसद सोयम बापू राव पर आदिवासी हितों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया है.

राज्य के आदिलाबाद ज़िले में यह मसला आदिवासी समुदायों के लिए बड़ा मसला बन कर उभर रहा है. इस मसले के ज़ोर पकड़ने से प्रशासन भी परेशान है.

आदिवासी संघों की जॉइन्ट एक्शन कमेटी (JAC) ने भाजपा सांसद सोयम बापू राव पर गंभीर आरोप लगाए हैं. कमेटी का कहना है कि बापू राव तुडुम डेब्बा आदिवासी संगठन को भारतीय जनता पार्टी की विचारधाराओं का प्रचार के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.

इसके अलावा उन पर आरोप लग रहा है कि वो अलग अलग राजनीतिक दलों के निर्वाचित प्रतिनिधियों की आलोचना करने के लिए इस मंच का इस्तेमालकर रहे हैं. जेएसी के संयोजक कनक सुरेश का कहना है कि बापू राव आदिवासी अधिकारों की आड़ में ऐसा कर रहे हैं.

बीजेपी नेता सोयम बापू राव

कई सरपंचों और तुडुम डेब्बा के नेताओं के साथ सुरेश ने एक प्रेस कॉन्फ़रेंस कर राव पर यह आरोप लगाए. उनका कहना है कि बापू राव तुडुम डेब्बा को एक स्वतंत्र संगठन के रूप में देखने के बजाय, भाजपा के एजेंट की तरह देख रहे हैं.

कनक सुरेश ने कहा कि तुडुम डेब्बा में कई राजनीतिक दलों के लोग सदस्य हैं, इसलिए इस आदिवासी अधिकार संगठन का भगवाकरण ग़लत है.

जेएसी ने तुडुम डेब्बा के नेताओं से भी अनुरोध किया है कि वह साथ मिलकर काम करें, और ऐसे लोगों के प्रयासों का विरोध करें जो संगठन का उपयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए करते हैं.

जेएसी ने आदिवासियों के लिए बनाए गए कई अधिनियमों के ख़त्म करने के केंद्र सरकार के फ़ैसलों पर बापू राव की चुप्पी पर भी सवाल उठाए.

आदिवासी भारत महासभा के अध्यक्ष ने राव पर लम्बाड़ा समुदाय के ख़िलाफ़ कभी आवाज़ न उठाने का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि वादों के विपरीत बापू राव ने लम्बाड़ा समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने के लिए कोई कोशिश नहीं की.

दरअसल, तेलंगाना में लम्बाड़ा और आदिवासी समुदायों के बीच का संघर्ष पुराना है. सरकारी लाभ में भागेदारी को लेकर दोनों समुदाय लंबे समय से झगड़ रहे हैं.

आदिवासियों का दावा है कि लम्बाड़ा अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल होने के योग्य ही नहीं हैं, क्योंकि 1976 में इस सूची में उनके शामिल होने की प्रक्रिया अधूरी रह गई थी.

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