HomeAdivasi Dailyमंगला मुदली: दुर्गम आदिम जनजाति बस्ती से मेडिकल कॉलेज तक का सफ़र

मंगला मुदली: दुर्गम आदिम जनजाति बस्ती से मेडिकल कॉलेज तक का सफ़र

19 वर्षीय मंगला ने राज्य के मलकानगिरी जिले के पूर्वी घाट के अपने बडबेल ​​गांव से बेहरामपुर के एमकेसीजी मेडिकल कॉलेज में मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए 420 किलोमीटर की यात्रा की है.

ओडिशा के मंगला मुदुली (Mangala Muduli) ने यह सच कर दिखाया है कि अगर इरादे मजबूत हो तो इंसान कुछ भी कर सकता है.

ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मंगला जिस आदिवासी समुदाय से आते हैं उसकी साक्षरता दर ओडिशा के 62 आदिवासी समूहों में सबसे कम है. बावजूद इसके उन्होंने NEET परीक्षा पास की है.

दरअसल, मंगला ओडिशा के बोंडा जनजाति, जो एक विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह और भारत की सबसे पुरानी जनजातियों में से एक है. जो कुछ दशक पहले अलगाव में रह रही थी और बाहरी दुनिया से बहुत कम संपर्क रखती थी, से ताल्लुक रखते हैं.

2011 की जनगणना के मुताबिक, बोंडा जनजाति की साक्षरता दर 36.61 फीसदी थी, जो कि उस समय ओडिशा के सभी जनजातीय समूहों में सबसे कम थी. लेकिन फिर भी इन सभी बाधाओं को तोड़ते हुए इस लड़के ने कमाल कर दिखाया.

19 वर्षीय मंगला ने राज्य के मलकानगिरी जिले के पूर्वी घाट के अपने बडबेल ​​गांव से बेहरामपुर के एमकेसीजी मेडिकल कॉलेज में मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए 420 किलोमीटर की यात्रा की है.

क्योंकि उन्होंने अपने घर से 420 किलोमीटर दूर गंजम जिले के बेहरामपुर शहर के MKCG मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में MBBS कोर्स में एडमिशन लिया है.

इस साल NEET की परीक्षा में सफल होने के बाद मंगला ऐसा करने वाले अपनी जनजाति के पहले व्यक्ति बन गए हैं. इतना ही नहीं इस साल नीट परीक्षा में उन्होंने जनजातीय समूह के कैंडिडेट के बीच में अपने पहले ही प्रयास में 261वीं रैक हासिल की है.

मंगला ने बताया कि कैसे उनके सपने का साकार होना बेहद चुनौतीपूर्ण था. उन्होंने कहा, “मैं अपने भाई-बहनों के साथ जंगल और अन्य छोटे वन उत्पादों से मिलने वाले भोजन पर निर्भर रहने वाले परिवार से पहली पीढ़ी का शिक्षार्थी था. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं शिक्षा के माध्यम से आजीविका कमा सकता हूं और न ही अधिकांश बोंडाओं ने ऐसा सोचा था. हमारे जनजाति के कुछ सदस्य दूसरे शहरों में चले गए हैं, लेकिन किसी ने कभी भी पढ़ाई करने के लिए मेडिकल कॉलेज कैंपस में कदम नहीं रखा था.”

उन्होंने आगे कहा, “मैंने बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना देखा था क्योंकि मलकानगिरी में मेरे गांव में न्यूनतम स्वास्थ्य सुविधा और सड़क संपर्क नहीं था. मैंने अपने गांव के लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं पाने के लिए परेशान होते देखा है. अगर कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाता है तो उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता है. ऐसी स्थिति में लोग अपने मरीजों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से उबरने के लिए झाड़-फूंक की मदद लेते हैं. इसने मुझे अपने गांव के लोगों की सेवा करने के अपने सपने को साकार करने के लिए प्रेरित किया.”

चार भाई-बहनों में से एक, मंगला ने अपनी प्राथमिक शिक्षा सरकारी मुडुलीपाडा आवासीय विद्यालय से प्राप्त की है.

मैट्रिक परीक्षा में 50 प्रतिशत अंक प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपने गांव से 25 किलोमीटर दूर एक स्कूल में ग्यारहवीं कक्षा में दाखिला लिया. यह अपने आप में एक उपलब्धि है क्योंकि उनके समुदाय के कई लोग 10वीं कक्षा पूरी करने के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं. यहां तक कि उनके बड़े भाई ने पढ़ाई छोड़ दी थी और काम की तलाश में आंध्र प्रदेश चले गए थे.

उनके साइंस टीचर उत्कल केशरी दास ने उनकी क्षमता को पहचाना और उनके जीवन में एक मार्गदर्शक बन गए. दास ने उनकी पढ़ाई में उनका मार्गदर्शन किया और आखिरकार उन्हें बालासोर जिले के एक कोचिंग सेंटर में दाखिला दिलाया.

साथ ही उन्होंने मंगला के लिए अपने पैतृक घर में रहने की व्यवस्था भी की थी, जिससे उनके सपनों को पंख मिले.

बोंडा जनजाति का यह छात्र NEET की तैयारी के लिए रोजाना 8 किलोमीटर साइकिल चलाता था. लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने 348 अंक प्राप्त किए और आदिवासी आरक्षित सीटों में 261वां स्थान प्राप्त किया.

उत्कल केशरी दास ने कहा, “एकांत आदिवासी समुदाय से चिकित्सा शिक्षा के गलियारों तक का यह रास्ता न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि को दर्शाता है बल्कि उनके साथी जनजातियों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण भी है, जो बोंडा के सामूहिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ता है.”

वहीं केंद्रीय शिक्षा मंत्री धमेंद्र प्रधान ने मंगला को उनकी सफलता के लिए बधाई दी है. ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर मंगला मुडुली की तारीफ की और उन्हें बधाई दी है.

मलकानगिरी में चार ग्राम पंचायतों के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत 33 बस्तियों में करीब 12 हज़ार बोंडा रहते हैं. वे मुंडा बोली बोलते हैं, जो एक ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा है. बोंडा के बीच साक्षरता 40 प्रतिशत से अधिक नहीं हुई है.

ऐसे में मंगला मुडुली, उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा बन गए हैं जो कमजोर आर्थिक स्थिति और कम संसाधनों के बीच भी जीवन में वो कमाल कर दिखाते हैं जो अच्छे-अच्छे लोग नहीं कर पाते हैं.

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