छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनसुइया उइके ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखकर अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) के आरक्षण बहाली के लिए राज्य सरकार द्वारा अब तक की गई कार्यवाही की तत्काल जानकारी मांगी है. क्योंकि हाल ही में हाई कोर्ट के एक आदेश के बाद उनका कोटा 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है.
राजभवन के अधिकारी ने बताया कि राज्यपाल ने कहा है कि विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर या अध्यादेश लाकर विधेयक पारित कर तत्काल कार्रवाई की जाए.
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सितंबर में राज्य सरकार के 2012 के आदेश को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में 58 प्रतिशत तक बढ़ाने के आदेश को खारिज कर दिया, यह मानते हुए कि 50 प्रतिशत कोटा की सीमा का उल्लंघन असंवैधानिक था.
राज्यपाल के पत्र में कहा गया है कि हाई कोर्ट के फैसले के बाद आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया, जिससे सरकारी पदों पर भर्ती रोक दी गई है.
पत्र में कहा गया है कि विभिन्न आदिवासी संगठनों के साथ-साथ सरकारी कर्मचारी संघों ने इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया है. जिसमें कहा गया है कि आदिवासी समुदायों में असंतोष कानून और व्यवस्था की स्थिति का कारण बन रहा है.
राज्यपाल ने पत्र में कहा, “क्योंकि छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बहुल राज्य है इसलिए राज्यपाल के रूप में यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं उनके हितों की रक्षा करूं और संविधान की मूल भावना को बनाए रखूं.”
अधिकारी ने कहा, “राज्यपाल ने सीएम से 32 प्रतिशत आरक्षण लाभ को बहाल करने के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण देने के लिए कहा है. उन्होंने इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा की जाने वाली भविष्य की कार्रवाई का भी विवरण मांगा है.”
क्या है मामला
दरअसल, छत्तीसगढ़ में आरक्षण का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. राज्य सरकार ने 58 प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक करार देने वाले छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. हाई कोर्ट के फैसले से राज्य में आदिवासी समुदाय को मिलने वाला 32 प्रतिशत आरक्षण घटकर 20 प्रतिशत रह जाएगा.
19 सितंबर 2022 को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने राज्य के शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 58 प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था. तब हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार और न्यायमूर्ति पीपी साहू की पीठ ने आरक्षण की 58 प्रतिशत सीमा को रद्द किया. पीठ ने कहा कि आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता.
2012 में आरक्षण कोटा बढ़ा..
छत्तीसगढ़ में साल 2012 से पहले तक अनुसूचित जाति को 16, अनुसूचित जनजाति को 20 और ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण मिलता था. यानि 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था. तब राज्य में बीजेपी के नेतृत्व वाली रमन सिंह सरकार थी. तब की सरकार ने 2012 में आरक्षण को बढ़ाकर 58 प्रतिशत कर दिया.
इस नए नियम के तहत अनुसूचित जाति के आरक्षण को 16 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 20 से बढ़ाकर 32 प्रतिशत और ओबीसी को पहले की ही तरह 14 प्रतिशत आरक्षण मिलना शुरू हो गया.
रमन सिंह सरकार के इस फैसले का काफी विरोध हुआ. फैसले को 2012 में ही छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. एक दशक तक चले केस में 19 सितंबर 2022 को अदालत ने 58 प्रतिशत आरक्षण के फैसले को असंवैधानिक बताकर नकार दिया.
हालांकि, हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बढ़े आरक्षण के तहत जिन उम्मीदवारों को नियुक्तियां मिल गई हैं, वे बरकरार रहेंगी. लेकिन आगे आने वाली भर्तियों में कोर्ट के बताए नियमों के अनुसार ही नियुक्तियां की जाएंगी.
अब हाई कोर्ट के फैसले के बाद आदिवासी समाज नाराज है. अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाला आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर वापस 20 पर आ गया है. इसीलिए आदिवासी समाज इसे लेकर गुस्से में है. ऐसे में सीएम भूपेश बघेल भी इसके लिए लड़ने की बात कह रहे हैं.
सीएम बघेल आरक्षण की मौजूदा स्थिति के लिए बीजेपी की पिछली सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. सीएम ने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा था, “2005 में केंद्र ने छत्तीसगढ़ में जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण देने की मंजूरी दी थी. लेकिन पिछली राज्य सरकार ने 2011 तक इसे रोक दिया था. फिर 2011-12 में जब आदिवासियों ने आंदोलन किया तो राज्य सरकार ने उन्हें 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 12 प्रतिशत और OBC को 14 प्रतिशत आरक्षण दिया, जिससे 58 प्रतिशत आरक्षण हुआ.”
उन्होंने आरोप लगाया कि 2012 में आरक्षण बढ़ाने के बाद दो समितियों का गठन किया गया था, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी रिपोर्ट अदालत के सामने पेश नहीं की. जबकि 2012 से ही हाईकोर्ट में इसे लेकर सुनवाई चल रही है. 2012 से 2018 तक बीजेपी सरकार ने कोर्ट में मजबूती से आरक्षण का पक्ष नहीं रखा. इसके बाद 2018 में हमारी सरकार बनी तो केवल डेटिंग-पेंटिंग का काम बचा था.
भूपेश बघेल ने कहा कि अब हम अब सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं. पटेल समिति की रिपोर्ट आने के बाद हम उसके अनुसार बढ़ा हुआ आरक्षण लागू करेंगे.
छत्तीसगढ़ में बड़ी आदिवासी आबादी
छत्तीसगढ़ के लिए आदिवासी आरक्षण एक बड़ा मुद्दा है. 2011 के जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से छत्तीसगढ़ में 30.62 प्रतिशत आबादी अनसूचित जनजाति की थी. वहीं 12.82 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति की है. अब ऐसे में जब अगले साल ही राज्य में चुनाव होने हैं, तो बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही पार्टी इस मुद्दे पर सक्रिय दिख रही हैं.