कांग्रेस की आदिवासी शाखा ने सोमवार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की संख्या में वृद्धि, हायर ज्यूडिशियरी में कोटा और 13 लघु वन उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग की.
ये मांगें अखिल भारतीय आदिवासी कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पारित प्रस्ताव का हिस्सा थीं. जिसकी अध्यक्षता अखिल भारतीय आदिवासी कांग्रेस के अध्यक्ष शिवाजीराव मोघे ने की.
बैठक में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने और आदिवासियों को कांग्रेस के पक्ष में एकजुट करने की रणनीति भी तैयार की गई.
“राजनीतिक आरक्षण” में वृद्धि की मांग करते हुए आदिवासी कांग्रेस ने कहा कि दलितों और आदिवासियों के लिए राजनीतिक आरक्षण राष्ट्रीय स्तर पर और राज्यों में उनकी जनसंख्या वृद्धि के मुताबिक 2 फीसदी बढ़ाया जाना चाहिए. इसने गोवा विधानसभा में आदिवासी कोटे की भी मांग की.
प्रस्ताव में नरेंद्र मोदी सरकार के राष्ट्रीय मुद्रीकरण कार्यक्रम पर भी दोष लगाया गया. जिसमें आरोप लगाया गया कि यह सार्वजनिक संपत्तियों को अपने “मित्रों” को बेच रहा है, जिसके कारण “अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण कम हो रहा है, जिससे बेरोजगारी बढ़ रही है.”
इसने मांग की कि सार्वजनिक उपक्रमों को निजी पक्षों को नहीं बेचा जाना चाहिए और कोटा व्यवस्था को सुरक्षित किया जाना चाहिए.
दलितों और आदिवासियों के लिए बनाई गई सकारात्मक कार्रवाई नीतियों का लाभ हड़पने के लिए फर्जी जाति प्रमाण-पत्रों का इस्तेमाल करने वाले लोगों के बढ़ते मामलों के बीच आदिवासी कांग्रेस ने मांग की कि ऐसे प्रमाण-पत्र रद्द किए जाने चाहिए और आदिवासियों को उनका उचित हिस्सा दिया जाना चाहिए.
भारतीय सेना में जाति और राज्य के नामों वाली 28 रेजिमेंटों के अस्तित्व का उल्लेख करते हुए, इसने एक ‘आदिवासी रेजिमेंट’ की भी मांग की.
13 लघु वन उत्पादों के लिए एमएसपी के रूप में ‘रणनीतिक सरकारी हस्तक्षेप’ पर टी हक समिति की सिफारिशों को याद करते हुए, इसने मांग की कि लघु वन उत्पादकों को “न्याय” प्रदान करने के लिए एमएफपी पर एक अलग मूल्य आयोग का गठन किया जाए.
न्यायपालिका पर प्रस्ताव में करिया मुंडा आयोग की रिपोर्ट के क्रियान्वयन की मांग की गई. जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट स्तर पर न्यायिक सेवाओं में एससी/एसटी का समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए भारतीय न्यायिक सेवाओं की स्थापना की मांग की गई थी.
इसमें कहा गया, “यह भारत के लिए बेहद शर्मनाक है कि सुप्रीम कोर्ट के 33 जजों में से टॉप कोर्ट में एक भी आदिवासी जज नहीं है.”
राज्यों की भाजपा सरकारों पर आदिवासियों से संबंधित कानूनों को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए, इसने पंचायतों को अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार (पेसा) अधिनियम 1996, वन अधिकार अधिनियम 2006, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 और संविधान की 5वीं अनुसूची के सख्त क्रियान्वयन की मांग की.
इसके अलावा आदिवासी कांग्रेस ने पूरे भारत में आदिवासी महिलाओं के कल्याण और सशक्तिकरण के लिए लक्षित योजनाओं की आवश्यकता की भी वकालत की.
इसमें कहा गया है कि इन योजनाओं के लिए जनजातीय उपयोजना (टीएसपी) के तहत वार्षिक निधि आवंटित की जानी चाहिए और सरकार को कार्यान्वयन की सख्त निगरानी करनी चाहिए ताकि एससी/एसटी के लिए अन्य लक्षित योजनाओं की तरह निधियां समाप्त न हों.