HomeAdivasi Dailyआदिवासी खेती प्रणाली को मिली पहचान, FAO ने दी मान्यता

आदिवासी खेती प्रणाली को मिली पहचान, FAO ने दी मान्यता

दक्षिणी राजस्थान के तीन जिलों में मिट्टी के स्वास्थ्य (Soil Health) को पुनर्जीवित करने और इसकी जैव विविधता को बहाल करने के लिए आदिवासी किसानों की एक सामुदायिक पहल को मान्यता मिली है.

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation – FAO) ने सॉइल हेल्थ, कृषि उत्पादन और पर्यावरण संरक्षण पर प्रभाव के लिए इस इलाके में अपनाई गई कृषि प्रणाली की तारीफ़ की है.

आदिवासी बहुल प्रतापगढ़, डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों में शुरू की गई पहल से बड़े इलाके में खेती की पारंपरिक पद्धतियों को बढ़ावा मिला है. इससे कृषि उपज की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है, और भोजन और कृषि प्रबंधन के लिए आदिवासी समुदाय के नजरिए को बढ़ावा मिल रहा है.

FAO ने इस पहल की सराहना की है और इसे अपने हालिया प्रकाशनों में एक स्टडी के विषय के रूप में शामिल किया है. जहां आदिवासी किसान अपनी स्वदेशी खेती प्रक्रियाओं के नतीजों के बारे में उत्साहित हैं, बांसवाड़ा जिले के एक समूह ने परिणामों को प्रदर्शित करने के लिए एफएओ की ग्लोबल सॉयल पार्टनरशिप और यूएन कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी द्वारा आयोजित जैव विविधता पर एक वैश्विक कांफ्रेंस में हिस्सा लिया.

यह आदिवासी किसान प्राकृतिक फर्टिलाइजर के रूप में फलियों के साथ मिश्रित फसल, फसल रोटेशन, एग्रो-फॉरेस्ट्री, मल्चिंग, वृक्षारोपण और कृषि क्षेत्रों के चारों ओर घास के मैदान और घास की पट्टियाँ उगाते हैं.

आनंदपुरी ब्लॉक के सुंदराव गांव के एक किसान मान सिंह निनामा ने द हिंदू से बातचीत के दौरान बताया कि उनकी 12-बीघा जमीन पर उन्होंने यह प्रक्रिया अपनाई जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई, और फसलों की गुणवत्ता बेहतर हुई.

“मक्का, तिल और दालों की कटाई के बाद, मैंने इस रबी मौसम में गेहूं के साथ चना और मटर बोया है. अलग-अलग किस्मों के साथ फसलों का घनत्व भी soil erosion और ढलान वाले इलाके में मिट्टी को बहने से रोकेगा,” निनामा ने कहा.

‘कोई रसायन नहीं’

कुशलगढ़ ब्लॉक के अमली पारा गांव के एक दूसरे आदिवासी किसान काल सिंह डामोर ने कहा कि उन्होंने अपने खेत में रासायनिक फर्टिलाइजर का इस्तेमाल बंद कर दिया है, और जैविक वर्मीकम्पोस्ट बना रहे हैं जिससे मिट्टी की सेहत में सुधार
हुआ है.

उन्होंने कहा, “मक्का और चावल के आकार, रंग और स्वाद में प्रभाव दिखाई दे रहा है जो मैंने इस साल उगाया है. मैं अपने परिवार की खपत के लिए भी अच्छी मात्रा में बचत कर पा रहा हूं.”

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments