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विलुप्त होने की कगार पर खड़े आदिवासियों को 7 महीने से नहीं मिला राशन

अंत्योदय अन्न योजना केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजना है. अंत्योदय राशन कार्ड को आमतौर पर पीले राशन कार्ड के रूप में जाना जाता है क्योंकि इसके कवर का रंग पीला होता है.

झारखंड सरकार को अपने डोरस्टेप डिलीवरी अभियान आपकी योजना, आपकी सरकार, आपके द्वार के क्रियान्वयन पर विचार करने की जरूरत है. क्योंकि विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह (PVTG) के कई परिवार कल्याणकारी योजनाओं के होने के बावजूद सात महीने से राशन से वंचित रहे हैं.

झारखंड में विलुप्त होने के कगार पर मौजूद आठ पीवीटीजी में से एक कोरवा जनजाति के 19 से अधिक परिवारों के साथ इस साल अप्रैल से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) का उल्लंघन हो रहा है. इन परिवारों के पास वैध अंत्योदय राशन कार्ड होने के बावजूद अंत्योदय अन्न योजना के तहत खाद्यान्न नहीं मिल रहा है.

कोरवा जनजाति झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 270 किमी दूर गढ़वा जिले के चिनिया प्रखंड के खुरी पंचायत के मातरा गांव में रहती है.

अंत्योदय अन्न योजना केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजना है. अंत्योदय राशन कार्ड को आमतौर पर पीले राशन कार्ड के रूप में जाना जाता है क्योंकि इसके कवर का रंग पीला होता है.

अंत्योदय अन्न योजना के तहत पीले राशन कार्ड वाले गरीब से गरीब व्यक्ति को सब्सिडी वाला भोजन वितरित किया जाता है। झारखंड में इस योजना के तहत हर महीने 35 किलो चावल, 1.5 लीटर मिट्टी का तेल, 1 किलो नमक और 1 किलो चीनी मिलती है.

दरअसल, पीवीटीजी परिवार डाकिया योजना के अंतर्गत आते हैं, जिसमें घर-घर राशन उपलब्ध कराया जाता है.

मात्रा गांव की 26 वर्षीय रजनी देवी ने कहा, “हमें मार्च तक चावल, चीनी, नमक और मिट्टी का तेल मिलता था. लेकिन अचानक मुझे अप्रैल से यह मिलना बंद हो गया.”

रजनी ने कहा, “जब हमारे कुछ आदिवासी नेताओं ने एक महीने पहले प्रखंड विकास अधिकारी से मुलाकात की तो उन्हें बताया गया कि त्योहारी सीजन से पहले इस मुद्दे को सुलझा लिया जाएगा. लेकिन हमें अभी तक कुछ भी नहीं मिल रहा है और दुर्गा पूजा के दौरान अन्य पंचायतों में रहने वाले रिश्तेदारों से खाने की चीजों को उधार लेना पड़ा.”

एक अन्य गृहिणी, 30 वर्षीय सरस्वती देवी, जिनके पति मजदूरी का काम करने के लिए तमिलनाडु चले गए हैं, ने भी इसी तरह का अनुभव बताया.

सरस्वती ने कहा, “मैं फसल काटने के मौसम में जीविकोपार्जन के लिए अन्य क्षेत्रों में काम करती थी. जबकि मेरे पति तमिलनाडु में एक प्रवासी मजदूर के रूप में काम करते हैं. हालांकि, इस साल गढ़वा में सूखे की स्थिति के कारण मैं अन्य क्षेत्रों में काम करके ज्यादा कमाई नहीं कर सकी. वर्तमान में हम दिन में एक समय खाकर ही गुजर-बसर कर रहे हैं, वो भी अन्य पंचायतों में रिश्तेदारों से खरीदे गए अनाज से. हमें नहीं पता कि हमें अपना खाद्यान्न कब मिलेगा.”

इस मुद्दे को उठाने वाले गढ़वा के एक राइट टू फूड एक्टिविस्ट मानिकचंद कोरवा हैरान हैं. उन्होंने कहा, “बाकी सभी ब्लॉक को राशन मिल रहा है. आश्चर्यजनक रूप से यह चिनिया में ही हुआ है, जहां कोरवा परिवारों को राशन नहीं मिल रहा है. हालांकि, जिन परिवारों को राशन मिल रहा है, उन्हें सिर्फ चावल मिल रहा है, मिट्टी का तेल, चीनी या नमक नहीं. हम प्रशासन से मांग करेंगे कि राशन की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए और उन्हें एनएफएसए के अनुसार उस अवधि के लिए मुआवजा भी दिया जाए, जिस अवधि के लिए उन्हें राशन से वंचित किया गया है.”

चिनिया प्रखंड विकास अधिकारी कालिदास मुंडा ने पीवीटीजी परिवारों को राशन नहीं बांटने की बात स्वीकार की. उन्होंने कहा, “हमें आवंटन (राशन) नहीं मिल रहा है और परिणामस्वरूप इसे परिवारों को वितरित नहीं किया जा सकता है. हमने उच्च अधिकारियों को स्थिति के बारे में सूचित करने के लिए लिखा है.”

गढ़वा के उपायुक्त रमेश घोलप ने कहा कि मामला रविवार को उनके संज्ञान में लाया गया. उन्होंने कहा, “रविवार को मामले के बारे में पता चलने के बाद मैंने जिला आपूर्ति अधिकारी से इसकी जांच करने और जल्द से जल्द एक रिपोर्ट देने को कहा है. यह एनएफएसए प्रावधानों का गंभीर उल्लंघन है.”

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