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ओडिशा के आदिवासी इलाक़ों की पीटीएम में पढ़ाई की जगह बाल विवाह पर चर्चा

पीटीएम में बताया गया कि माता-पिता, पुजारी, रिश्तेदार, पड़ोसी, समुदाय के नेता, विवाह ब्यूरो, तस्कर, दूल्हे की उम्र 18 से ऊपर होने पर, कैटरर्स और दूसरी सेवाएं देने वाले, सभी को बाल विवाह करते या उसको बढ़ावा देते पाए जाने पर कानूनी कर्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.

ओडिशा के आदिवासी इलाक़ों में रविवार को एक अलग तरह की पेरेंट-टीचर मीटिंग (PTM) हुई. जैसा आम पीटीएम में होता है, माता-पिता को उनके बच्चों की शैक्षणिक प्रगति के बारे में जानकारी देने के बजाय, उन्हें अपने घरों और इलाकों में बाल विवाह को रोकने के लिए जागरुक किया गया.

ओडिशा के आदिवासी बेल्ट में बाल विवाह एक बड़ी सामाजिक समस्या है. एससी और एसटी विकास विभाग ने 1,700 से ज़्यादा स्कूलों को अपनी-अपनी पीटीएम में इस सामाजिक बुराई पर चर्चा करने का निर्देश दिया था.

आदिवासी माता-पिता को बताया गया कि 15 साल से कम उम्र की लड़कियों की 20 साल की महिलाओं की तुलना में बच्चे को जन्म देते हुए मरने की संभावना पांच गुना ज़्यादा होती है.

“18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़की के बीच बाल विवाह मनोवैज्ञानिक रूप से तनावपूर्ण होता है, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और फ़ैसले लेना शामिल है. बाल वधू घरेलू हिंसा, मातृ मृत्यु और शिशु मृत्यु दर की उच्च दर का सामना करते हैं,” विभाग ने कहा.

राज्य भर में, और ख़ासतौर से आदिवासी इलाक़ों में महामारी के दो सालों में बाल विवाह की उच्च दर की रिपोर्ट आई है. इसी के मद्देनजर पीटीएम की यह पहल बेहद महत्वपूर्ण है. मयूरभंज जिले की आदिवासी बहुल पंचायत रानीपोखरी में अकेले 2020 और 2021 में 122 बाल विवाह किए गए थे.

COVID-19 महामारी के दौरान बच्चों, और ख़ासतौर से रेज़िडेंशियल स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं की शादी होने की ख़बर मिली थी, जब वो घर भेज दिए गए थे. बाल विवाह की वजह से ही कई छात्राएं मैट्रिक (दसवीं) की परीक्षा में नहीं बैठी थीं. यहां तक ​​कि कुछ ने छठी जैसी निचली कक्षाओं में ही पढ़ाई छोड़ दी थी.

माता-पिता को सूचित किया गया कि वो अपने बच्चों का बाल विवाह करने के लिए जेल जा सकते हैं. माता-पिता या जो कोई भी बाल विवाह करवाता है, संचालित करता है, निर्देशित करता है या उसे उकसाता है, वह कानून के तहत दंडनीय होगा.

पीटीएम में बताया गया कि माता-पिता, पुजारी, रिश्तेदार, पड़ोसी, समुदाय के नेता, विवाह ब्यूरो, तस्कर, दूल्हे की उम्र 18 से ऊपर होने पर, कैटरर्स और दूसरी सेवाएं देने वाले, सभी को बाल विवाह करते या उसको बढ़ावा देते पाए जाने पर कानूनी कर्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.

साथ ही, बाल विवाह को बढ़ावा देने, अनुमति देने या उसमें भाग लेने वाले किसी भी संगठन को भी सजा का सामना करना पड़ेगा.

मानवविज्ञानी (anthropologist) बाल विवाह की व्यापकता का ठीकरा आदिवासी समाजों की परंपरा और संस्कृति पर डालते हैं. अगर कोई नाबालिग लड़की-लड़का भाग जाता है, तो माता-पिता समुदाय को विश्वास में लेकर जल्दबाजी में उनकी शादी को मंजूरी दे देते हैं. कुछ मामलों में, माता-पिता खुद अपने बच्चों को विवाह के लिए मजबूर करते हैं.

ओडिशा में बाल विवाह

Prohibition of Child Marriage (Amendment) Bill, 2021 लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव करता है. इस बहस के बीच, ओडिशा में अधिकारियों ने इस साल की शुरुआत में दावा किया था कि राज्य के 10,000 से ज़्यादा गांवों में दो साल से ज़्यादा समय से कोई बाल विवाह नहीं हुआ है.

राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि 2019 में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों और 21 साल से कम उम्र के लड़कों की शादी को पूरी तरह से रोकने के लिए रणनीतिक कार्य योजना शुरू की गई थी. इस योजना का नतीजा यह रहा कि 10,000 से ज़्यादा गांवों को बाल-विवाह मुक्त बनाया गया.

विभाग द्वारा बनाई गई इस कार्य योजना में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, पंचायती राज संस्थाओं के पदाधिकारियों के साथ-साथ गांव के बुजुर्गों को भी शामिल किया गया.

क्या कहते हैं आंकड़े?

2015-16 में किए गए नैशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे-4 में, ओडिशा में लड़कियों के बीच बाल विवाह की दर 21.3 थी, जो राष्ट्रीय औसत 26.8 से कम है। 2019-21 में किए गए नैशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे-5 में लड़कियों के बीच बाल विवाह की दर गिरकर 20.5 हो गई थी. इसका मतलब यह है कि ओडिशा बाल विवाह जैसी प्रथा को रोकने पर काम कर रहा है.

लेकिन इस सर्वे में एक बात और जो सामने आई, वो यह है कि ओडिशा के 30 जिलों में से आधे में बाल विवाह की दर 20% से ज़्यादा थी. इनमें 39.4% की दर के साथ नबरंगपुर में सबसे ज़्यादा बाल विवाह हुए, उसके बाद नयागढ़ (35.7%), कोरापुट (35.5%), मलकानगिरी (32.4%), रायगढ़ (33.2%) और मयूरभंज (31.2%) का नंबर रहा. 20% से ज़्यादा रिपोर्ट करने वाले सात जिले में बालासोर, बौध, ढेंकनाल, गजपति, अंगुल और गंजम शामिल हैं.

बाल विवाह की वजहें

जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोगों का कहना है कि बाल विवाह के पीछे सबसे बड़ी वजह है परिवारों की ग़रीबी. गरीब घरों की लड़कियों की शादी कर दी जाती है, क्योंकि एक तरफ़ जहां इससे लड़की के परिवार का एक पेट कम हो जाएगे, वहीं लड़के के परिवार में एक और कामकाजी हाथ जुड़ जाता है.

इसके अलावा लिंग असमानता (Gender Inequality), सामाजिक मानदंड, लड़कियों की कथित निम्न स्थिति, शिक्षा की कमी, बालिकाओं की सुरक्षा की चिंताएं और उनकी sexuality पर नियंत्रण करने की कोशिश बाल विवाह के पीछे दूसरी वजहें मानी जाती हैं.

शहरी इलाक़ों की तुलना में ग्रामीण इलाक़ों में बाल विवाह के ज़्यादा मामले सामने आते हैं.

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