संसद में बजट सत्र के दौरान यह बेहद ख़ास और दुर्लभ मौक़ा था जब देश के आदिवासियों और आदिवासी इलाक़ों के विकास के लिए बजट में किये गए प्रावधानों पर चर्चा हुई. राज्य सभा में 16 मार्च को यह चर्चा आदिवासी मामलों के कैबिनेट मंत्री अर्जुन मुंडा के जवाब के साथ संपन्न हो गई.
इस चर्चा में झारखंड के सांसद समीर उराँव ने भी भाग लिया. आमतौर पर यह उम्मीद की जाती है कि सत्ता पक्ष के सांसद अपनी सरकार का बचाव और उसकी उपलब्धियों का बखान करते हैं. समीर उराँव झारखंड से बीजेपी के सांसद हैं. उन्होंने भी ठीक वैसा ही किया.
अपने जवाब में उन्होंने उल्लेख किया कि देश में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही आदिवासी मामलों के मंत्रालय का गठन किया गया. अपने भाषण में उन्होंने कम से कम आधा दर्जन बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम लिया.
उन्होंने दावा किया कि मोदी सरकार के 42 मंत्रालय आपसे में तालमेल के साथ आदिवासियों के विकास के लिए काम कर रहे हैं. अपने भाषण में समीर उराँव ने पूर्व की सरकारों की नीतियों को आदिवासियों की मुसीबतों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया.
समीर उराँव का भाषण अपेक्षा के अनुसार ही तो था. क्योंकि वो सत्ता पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं. लेकिन समीर उराँव शायद भूल गए कि वो केन्द्रीय मंत्री नहीं है बल्कि एक सांसद हैं. राज्य के लोग अपने सांसद से उम्मीद करते हैं कि उनका सांसद उनकी समस्याओं और मसलों को संसद में ज़ोर शोर से उठाए.
ख़ास तौर से राज्य सभा में यह परंपरा रही है कि अपने दल की नीतियों का बचाव करते हुए भी सवाल पूछ लिए जाते हैं.
बेशक सत्ता पक्ष के सांसद अपनी ही सरकार पर उँगली नहीं उठा सकते हैं. लेकिन विनम्रतापूर्वक से अपनी सरकार का ध्यान कुछ ज़रूरी मसलों की तरफ़ लाते हैं. अपने क्षेत्र या राज्य से जुड़ी ज़रूरी माँगो को संसद में रखते हैं.
लेकिन झारखंड के सांसद समीर उराँव का पूरा भाषण सुनने के बाद लगा कि वो शायद यह भूल गए कि चर्चा में विपक्ष के सांसदों के सवालों और आलोचनाओं के जवाब देने के लिए सदन में कैबिनेट मंत्री मौजूद हैं.
राज्य सभा में उनके भाषण को अगर सुना जाए तो लगेगा कि आदिवासियों में धर्मांतरण ही झारखंड में सबसे बड़ा मुद्दा है. क्योंकि शिक्षा, सेहत और रोज़गार के मामले में तो उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी की सरकार ऐसा काम कर रही है जो आज तक नहीं हुआ.
समीर उराँव ने वैसे तो उन सभी मसलों को उठाया जो आदिवासियों से जुड़े हों. मसलन उन्होंने आदिवासियों के विस्थापन और पुनर्वास का मामला भी छेड़ा. लेकिन इस मसले पर भी वो पूर्ववर्ती सरकारों को दोष देकर आगे बढ़ गए.
उनके पूरे भाषण में किसी भी मसले से जुड़ा कोई आँकड़े सुनाई नहीं दिया. समीर उराँव ने बेशक एक जोश भरा राजनीतिक भाषण दिया. उनका दल भारतीय जनता पार्टी में उनको शायद इस भाषण के लिए शाबाशी भी मिलेगी.
लेकिन उनके इस भाषण से आदिवासियों के किसी सरोकार की तरफ़ सरकार का ध्यान जाएगा, इसकी संभावना तो नहीं दिखाई देती है. अगर वो अपनी सरकार से सवाल नहीं भी पूछना चाहते थे तो कम से कम झारखंड राज्य सरकार की नीतियों और कार्यकलापों पर कुछ बोल सकते थे.
झारखंड में स्थानीय नीति से लेकर आदिवासियों की धार्मिक पहचान के लिए अलग धर्म कोड की माँग तक कई मसले आंदोलन का रूप ले रहे हैं.
लेकिन समीर उराँव के भाषण में राज्य में आदिवासियों के किसी भी मसले का कोई ज़िक्र नज़र नहीं आया.