HomeAdivasi Dailyकिसको मिलना चाहिए आदिवासियों का नेतृत्व करने का अधिकार

किसको मिलना चाहिए आदिवासियों का नेतृत्व करने का अधिकार

केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी ने रविवार को "सवर्ण" व्यक्तियों को जनजातीय मामलों के मंत्रालय का प्रभार देने की बात कहकर विवाद खड़ा कर दिया. उनके इस बयान की केरल सहित कई राजनीतिक विरोधियों ने आलोचना की.

रविवार को केंद्रीय मंत्री और अभिनेता सुरेश गोपी के एक बयान ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया.

उन्होंने कहा कि आदिवासी मामलों का मंत्रालय किसी ऊंची जाति के व्यक्ति को दिया जाना चाहिए ताकि आदिवासियों का सही विकास हो सके.

केरल के त्रिशूर से भाजपा सांसद और केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री गोपी ने दिल्ली में भाजपा के एक चुनावी कार्यक्रम में कहा, “यह हमारे देश की बदकिस्मती है कि केवल एक आदिवासी ही आदिवासी मामलों का मंत्री बन सकता है. मेरा सपना है कि कोई ऊंची जाति का व्यक्ति इस मंत्रालय की जिम्मेदारी ले और आदिवासियों के लिए बड़े बदलाव लाए.”

उन्होंने आगे कहा, “ब्राह्मण या नायडु को यह जिम्मेदारी दी जाए इससे बड़ा परिवर्तन होगा. इसी तरह, जनजातीय नेताओं को सवर्ण समुदायों के कल्याण की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए. हमारे लोकतांत्रिक प्रणाली में इस प्रकार का बदलाव आना चाहिए.”

आलोचना का विषय

गोपी के इस बयान की भारी आलोचना हुई, खासकर वामपंथी दलों से.

सीपीआई (एम) के वरिष्ठ दलित नेता और सांसद के राधाकृष्णन ने इसे संविधान के समानता के अधिकार के खिलाफ बताया. उन्होंने सवाल उठाया, “क्या गोपी यह तय करेंगे कि कौन जन्म से कुलीन है?”

अन्य विपक्षी नेताओं ने भी इस बयान को आदिवासी समुदाय की नेतृत्व क्षमता पर सीधा हमला बताया.

उनका कहना है कि यह सोच आदिवासियों को हाशिए पर धकेलने और उनके अधिकारों को छीनने की एक कोशिश है.

गोपी की सफाई

विवाद बढ़ने के बाद सुरेश गोपी ने सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया. उन्होंने कहा, “मेरा मकसद जातिगत भेदभाव को बढ़ाना नहीं था, बल्कि इसे खत्म करना था. मैंने यह भी कहा था कि पिछड़ी जातियों के लोगों को ऊंची जातियों के कल्याण की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए. अगर मेरी सफाई संतोषजनक नहीं लगती, तो मैं अपना बयान वापस लेता हूं.”

आदिवासी मामलों का मंत्रालय इसलिए बना था ताकि उनके हक, संस्कृति और पहचान को संवैधानिक सुरक्षा मिले. अगर कोई आदिवासी मंत्री होता है, तो वह अपने समुदाय की जरूरतों को बेहतर समझ सकता है और उनकी असली समस्याओं को पहचानकर हल निकाल सकता है.

आज भी जब आदिवासियों के अधिकारों की बात होती है, तब बाहरी लोग यह तय करने की कोशिश करते हैं कि उनके लिए क्या सही है. यह सोच कहीं न कहीं आदिवासियों के नेतृत्व करने के अधिकार पर सवाल उठाती है.

यह बहस इस बात पर नहीं होनी चाहिए कि कोई ऊंची जाति का व्यक्ति आदिवासी मामलों का मंत्री बन सकता है या नहीं. असल सवाल यह है कि आदिवासी समुदाय को अपने ही हक और भविष्य के फैसले लेने से क्यों रोका जाता है.

वर्तमान में जनजातीय मामलों के मंत्री भाजपा के जुएल ओराम हैं, जो ओडिशा के एक प्रमुख आदिवासी नेता हैं. ओराम कई बार इस पद पर रह चुके हैं और पार्टी की जनजातीय समुदायों तक पहुंच बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है.

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