मध्य प्रदेश के शहडोल संभाग में भू-माफिया और बड़े कारोबारी भूमि की खरीदी-बिक्री के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं. पत्रिका वेबसाइट के मुताबिक भू-माफिया और कारोबारी पहले घर और गांव में काम करने वाले आदिवासी परिवारों के नाम मिट्टी के मोल भूमि खरीद रहे हैं. बाद में कभी खुद कमर्शियल इस्तेमाल कर रहे हैं तो कभी दूसरे आदिवासी परिवारों को महंगे दामों में बेच रहे हैं.
पहले शहडोल के बुढ़ार में आयकर विभाग की कार्रवाई में भी ये बात सामने आ चुकी है. यहां निर्माण कंपनी से जुड़े ग्रुप ने मजदूर के नाम पर करोड़ों रुपए की भूमि खरीद ली थी. बाद में उस भूमि का कमर्शियल उपयोग कर रहे थे.
हालांकि आयकर विभाग ने कार्रवाई करते हुए हाल ही में 7 महीने पहले खरीद-बिक्री में रोक लगाते हुए बेनामी संपत्ति घोषित कर अस्थायी कुर्की आदेश की फाइल आगे बढ़ाई थी.
बोहरी के तहसील कार्यालय के नजदीक आदिवासी परिवार की भूमि खरीद मामले में भी अधिकारियों तक शिकायत पहुंची है. तत्कालीन कलेक्टर ने यहां आदिवासी की भूमि खरीद- बिक्री की अनुमति दे दी थी. बाद में यहां फार्म हाउस बनाने के साथ बिल्डिंग भी ठेकेदार ने बना ली है.
शिकायत में बताया गया है कि ठेकेदार द्वारा 15 साल से भूमि का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके अलावा ठेकेदार द्वारा अब अतिरिक्त भूमि को समतल कराकर भूमि हड़पने का प्रयास किया जा रहा है.
आदिवासियों की भूमि की खरीदी-बिक्री की अनुमति मामले में भी तत्कालीन अधिकारियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है. ठेकेदार ने अपनी पहुंच के चलते एक भूमि की अनुमति कराने के बाद आदिवासी परिवार के नाम दर्ज दूसरी भूमि के लिए भी आवेदन किया था लेकिन तत्कालीन कलेक्टर डॉ सतेन्द्र सिंह ने रोक लगा दी थी. अधिकारियों ने जांच के निर्देश दिए हैं.
दरअसल 7 महीने पहले आयकर विभाग ने मनरेगा में काम कर चुके एक मजदूर की करोड़ों की संपत्ति पर अस्थायी कुर्की आदेश जारी किया था. सड़क निर्माण ठेका कंपनी ने आदिवासी मजदूर के नाम शहडोल में 16 और उमरिया में पांच जगहों पर भूमि खरीद ली थी.
जबकि आयकर विभाग की पूछताछ कार्रवाई में मजदूर ने खुद को काफी गरीब और सभी जमीन को भूमि मालिक द्वारा खरीदने की बात कही थी. बुढ़ार के इस ठेकेदार द्वारा आदिवासी मजदूर की भूमि पर डामर प्लांट के अलावा सीमेंट पोल सहित कई व्यावसायिक उपयोग में लिया जा रहा था.
शहडोल के पड़रिया, लालपुर, कंचनपुर में भूमि मिली थी. उमरिया के बांधवगढ़ क्षेत्र में सबसे ज्यादा भूमि ली थी, बयान में मजदूर ने साफ कहा था कि मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि भूमि खरीद सकूं. मालिक ने खरीदी थी, उनके पास ही रजिस्ट्रियां हैं. ऐसे दर्जनों मामले हैं जिसमें मजदूरों के नाम पर भूमि खरीद खुद उपयोग कर रहे हैं.
(Image Credit: Patrika)