HomeAdivasi Dailyआदिवासी सनातनी समाज के स्तंभ हैं : वनवासी कल्याण आश्रम प्रमुख

आदिवासी सनातनी समाज के स्तंभ हैं : वनवासी कल्याण आश्रम प्रमुख

ABVKA के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने कहा कि पूरे भारत के आदिवासी समुदाय से विभाजनकारी ताकतों से सावधान रहने का आह्वान किया, जो उन्हें 'हिंदू' समाज से अलग करने के लिए 'उकसाने' की कोशिश कर रही हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े आदिवासी संगठन अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम (ABVKA) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने रविवार को आदिवासियों को “विशाल सनातनी समाज के स्तंभ” बताया और समुदाय के सदस्यों को कुछ ताकतों द्वारा उनमें विभाजन पैदा करने की “साजिश” के खिलाफ आगाह किया.

उन्होंने देश भर के आदिवासियों से आह्वान किया कि वे इस तरह के प्रयासों का मुकाबला करने के लिए अपना खुद का नैरेटिव बनाएं कि “अरण्य संस्कृति” (वन संस्कृति) उनकी “मूल संस्कृति” है.

उन्होंने आरोप लगाया कि भारत में आदिवासियों के बीच विभाजन पैदा करने की साजिश अंग्रेजों की “देन” है, जिन्होंने किताबों के माध्यम से इतिहास को विकृत किया.

दरअसल, सिंह ने चुनावी राज्य हरियाणा के समालखा शहर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की मौजूदगी में वनवासी कल्याण आश्रम के स्वयंसेवकों और पदाधिकारियों के एक राष्ट्रीय सम्मेलन के संबोधन में ये बातें कही.

उन्होंने कहा कि “वनवासी” परंपराओं की जड़ें “सनातनी” परंपराओं के साथ-साथ “गहरी” हैं.

उन्होंने कहा कि पूरे भारत के आदिवासी समुदाय से विभाजनकारी ताकतों से सावधान रहने का आह्वान किया, जो उन्हें ‘हिंदू’ समाज से अलग करने के लिए ‘उकसाने’ की कोशिश कर रही हैं.

सिंह ने कहा, “आदिवासी समाज विशाल सनातनी समाज का आधार है. हम सभी की जड़ें जंगलों में हैं. प्राचीन वेदों की रचना में भी वनवासी समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. सभी आदिवासी समाजों के त्योहार और पूजा पद्धतियां सनातनी परंपरा से मिलती-जुलती हैं, जिनका सार एक ही है.”

उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदायों और अन्य लोगों के बीच अंतर करना अंग्रेजों की देन है.

उन्होंने आदिवासी समुदाय को “विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ” आगाह किया.

सिंह ने कहा कि आदिवासी समाज संग्रह नहीं करता, वह प्रकृति से उतना ही लेता है, जितनी उसे जरूरत होती है. ऐसे आदिवासी समाज के अस्तित्व को बचाना हमारा कर्तव्य है.

इसके अलावा वनवासी कल्याण आश्रम ने आदिवासी समुदाय को पूर्वोत्तर राज्यों में तेज़ी से हो रहे धर्मांतरण के बारे में भी चेतावनी दी.

झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में काम करने वाले अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के पदाधिकारी राजकिशोर हंसदा ने भारत और नेपाल से आए 2 हज़ार से अधिक लोगों को “लव जिहाद” और “भूमि जिहाद” (दूसरे धर्म के लोगों को जमीन बेचने के लिए दक्षिणपंथी समूहों द्वारा गढ़ा गया शब्द) के बढ़ते मामलों के बारे में बताया.

उन्होंने कहा, “बांग्लादेश से आए मुसलमान, जो इस क्षेत्र में घुसपैठ कर चुके हैं, संथाल जनजाति की लड़कियों से शादी कर रहे हैं और बाद में उनकी ज़मीनों पर भी कब्ज़ा कर रहे हैं. हम सभी को इसके खिलाफ़ महाभारत (युद्ध) छेड़ना होगा और अपनी बहनों-बेटियों, जंगलों और ज़मीन के साथ-साथ अपने धर्म की भी रक्षा करनी होगी.”

नागालैंड के थुम्बई जेलियांग ने ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों के मुद्दे पर बात की और बताया कि कैसे ABVKA उन्हें उनके मूल धर्म में वापस लौटने में मदद कर रहा है. उन्होंने कहा कि धर्मांतरित लोग स्थानीय लोगों को बाहरी साबित करने की कोशिश कर रहे हैं.

वहीं छत्तीसगढ़ के रामनाथ कश्यप ने बस्तर क्षेत्र में माओवाद के प्रभाव के बारे में बात की, जहां उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय के मौलिक अधिकारों से समझौता किया जा रहा है.

बैठक में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी मौजूद थे, जिन्होंने एबीवीकेए के सभी स्वयंसेवकों से अपने-अपने क्षेत्रों में आदिवासी उत्थान के लिए काम करने का आग्रह किया.

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