HomeAdivasi Dailyकोकबोरोक : राजनीतिक बिसात हो तो आदिवासी भाषा मुद्दा बनती है

कोकबोरोक : राजनीतिक बिसात हो तो आदिवासी भाषा मुद्दा बनती है

टिपरा नेता कहते हैं, “किसी भाषा को अनुसूची 8 में शामिल किया जाता है तो अच्छी बात है. लेकिन अगर किसी भाषा को इस सूची में शामिल नहीं किया जाता है तो इसका मतलब ये नहीं है कि उस भाषा का विकास नहीं हो पाएगा. आप खासी भाषा का उदाहरण देख सकते हैं. इसकी स्क्रिप्ट रोमन है और यह आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है. लेकिन यह भाषा फल फूल रही है, क्योंकि लोग इसका प्रयोग कर रहे हैं.”

त्रिपुरा की राजनीति में टिपरा मोथा के गठन ने राज्य की सत्ता में धमाकेदार एंट्री करने वाली बीजेपी के लिए हालात बेहद मुश्किल बना दिये हैं. बीजेपी ने आदिवासी संगठन आईपीएफटी (Indigenous People’s Front of Tripura)  के साथ गठबंधन कर राज्य में लगातार 5 विधानसभा चुनाव जीतने वाले सीपीएम के वाम मोर्चे को उखाड़ फेंका था.

2018 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी के लिए त्रिपुरा के आदिवासी संगठन के साथ गठबंधन निर्णायक था. लेकिन पिछलो साल त्रिपुरा के आदिवासी इलाक़ों में त्रिपुरा आदिवासी स्वायत्त जिला परिषद (TTADC) के चुनाव में टिपरा मोथा ने बीजेपी को करारी शिकस्त दी. 

इसके बाद राज्य की राजनीति में टिपरा मोथा का क़द बढ़ता गया है. उधर बीजेपी के लिए अगले साल के चुनाव में अपनी साख को बचाने की चुनौती होगी. क़रीब एक हफ़्ता पहले टिपरा मोथा ने एक आम सभा आयोजित की थी. इस आम सभा में भारी भीड़ उमड़ी थी और टिपरा मोथा के नेता प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मन को ज़बरदस्त समर्थन मिलता नज़र आया.

इससे कोई दो महीने पहले बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा की एक आम सभा राज्य के आदिवासी इलाक़े में आयोजित की गई थी. लेकिन उनकी सभा में उपस्थिति बेहद कमज़ोर रही थी. 

टिपरा मोथा ने त्रिपुरा में सिर्फ़ बीजेपी का खेल नहीं बिगाड़ा है. बल्कि एक समय में परंपरागत प्रतिद्वंद्वी रहे सीपीएम और कांग्रेस को भी अब कोई पूछ नहीं रहा है. त्रिपुरा की राजनीति फ़िलहाल पूरी तरह से आदिवासी और ग़ैर आदिवासी के बीच बंटी हुई दिखाई दे रही है. 

हालाँकि टिपरा मोथा के नेता प्रद्योत ने पिछले सप्ताह की आमसभा में यह ज़रूर कहा है कि वे बीजेपी की राजनीति से सहमत नहीं हैं. उन्होंने बीजेपी पर धर्म के नाम पर राजनीतिक ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाया था. इससे साथ ही उन्होंने दावा किया कि उनका परिवार हमेशा से धर्मनिरपेक्ष मूल्यों में विश्वास रखता है.

लेकिन अभी वो कांग्रेस या वामपंथी दलों के साथ किसी तालमेल या गठबंधन का सीधा सीधा संकेत देने से बच रहे हैं. ऐसा लगता है कि फ़िलहाल उनका पूरा ध्यान आदिवासी मतदाताओं को गोलबंद करने का है.

इस क्रम में आजकल टिपरा मोथा लगातार त्रिपुरा के मूल निवासियों की भाषा कोकबोरोक की लिपि का मसला उठा रहा है. इस सिलसिले में MBB ने प्रद्योत देबबर्मन से लंबी बातचीत की है.

इस बातचीत में प्रद्योत देबबर्मन ने साफ़ साफ़ कहा कि वे त्रिपुरा के आदिवासियों की मातृभाषा कोकबोरोक की बांग्ला लिपि का विरोध करते हैं. उनका कहना है था, “कोकबोरोक भाषा की लिपि हिन्दी या रोमन हो सकती है, इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है. क्योंकि अगर कोकबोरक की लिपि देवनागरी होगी तो कम से कम यहाँ के आदिवासी बच्चों को पढ़ने के बाद हिन्दी का ज्ञान आसान होगा और उन्हें नौकरियाँ मिलना आसान होगा.”

प्रद्योत देबबर्मन कहते हैं,” आज नहीं बल्कि पहले से ही उन भाषाओं को अनुसूची 8 में शामिल नहीं किया गया है जिनकी रोमन स्क्रिप्ट है. उतर-पूर्व के राज्यों की कई भाषाओं के साथ ऐसा देखा गया है.”

MBB से इस बारे में बात करते हुए उनका कहना था कि यह दुर्भाग्य है कि त्रिपुरा के बच्चों को अपनी मातृभाषा में पढ़ने के लिए पहले बांग्ला, हिन्दी और इंगलिश सीखनी पड़ती है. 

जब हमने पूछा कि अगर कोकबोरोक को संविधान की अनुसूची 8 में शामिल कर लिया जाए तो क्या इस भाषा के विकास में ज़्यादा मदद मिलेगी. इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, “किसी भाषा को अनुसूची 8 में शामिल किया जाता है तो अच्छी बात है. लेकिन अगर किसी भाषा को इस सूची में शामिल नहीं किया जाता है तो इसका मतलब ये नहीं है कि उस भाषा का विकास नहीं हो पाएगा. आप खासी भाषा का उदाहरण देख सकते हैं. इसकी स्क्रिप्ट रोमन है और यह आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है. लेकिन यह भाषा फल फूल रही है, क्योंकि लोग इसका प्रयोग कर रहे हैं.”

MBB के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा,” हमने माँग की है कि अगरतला के हवाई अड्डे पर हिन्दी, इंग्लिश और बांग्ला के अलावा हमारी मातृभाषा कोकबोरोक में भी उद्घोषणा होनी चाहिए.”

इस सिलसिले में उन्होंने नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाक़ात भी की थी. दिल्ली में हुई इस मुलाक़ात के बाद उन्होंने कहा था, ” बीजेपी भी लंबे समय से यह माँग कर रही थी. हम भी यही चाहते हैं इसलिए अब बीजेपी की केंद्र सरकार को यह माँग तुरंत पूरी कर देनी चाहिए.”

उन्होंने भाषा के सवाल पर कहा, ” जब सीबीएसई ने घोषणा की थी कि कोकबोरोक माध्यम में परीक्षा ली जाएँगी तो त्रिपुरा के लोग काफ़ी खुश हुए थे. लेकिन फिर पता चला कि इसकी स्क्रिप्ट बांग्ला होगी तो सारा उत्साह ठंडा हो गया.”

वो आगे कहते हैं, “जब हमारा अलग राज्य होगा तो हम कोकबोरोक के विकास पर काम कर पाएँगे. हम बांग्ला को हटाना नहीं चाहते हैं. लेकिन यह राज्य के काम काज की औपचारिक भाषा नहीं हो सकती है.”

अगले साल के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी या सीपीएम के साथ गठबंधन पर विचार करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह बात सही है कि उनकी राहुल गांधी और सीताराम येचुरी से बातचीत होती है. लेकिन जहां तक गठबंधन का सवाल है तो हम किसी से गठबंधन नहीं कर रहे हैं.

वो कहते हैं, “ मुझे लगता है कि त्रिपुरा के आदिवासियों और बाक़ी लोगों की आकांक्षा सिर्फ़ क्षेत्रिय दल ही समझते हैं और वही उन्हें पूरी कर सकते हैं. इसलिए फ़िलहाल तो हम किसी से गठबंधन के बारे में सोच भी नहीं रहे हैं.”

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