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पेसा का दुरूपयोग कर आदिवासियों को बाँटने की साज़िश – तलवार की धार पर चलती सरकार

छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाक़े में ईसाई धर्म अपना लेने वाले आदिवासियों पर हमलों की जाँच करने वाली फैक्ट फ़ाइंडिंग टीम का दावा है कि यह एक सुनियोजित साज़िश थी. टीम ने दावा किया है कि हिंदूवादी संगठनों के प्रभाव में कुछ ग्राम सभाओं ने पेसा का दुरूपयोग किया है.

छत्तीसगढ़ द्वारा पिछले साल अगस्त में पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 यानि पेसा एक्ट के कार्यान्वयन होने के बाद से कथित तौर पर आदिवासियों की ‘घर वापसी’ का एक औज़ार बन गया है.

एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम के मुताबिक, अधिनियम के खंड (डी) का दुरुपयोग करते हुए, हिंदू चरमपंथी समूहों के प्रभाव में ग्राम सभाओं ने 1,000 से अधिक आदिवासी ईसाइयों को उनके गाँवों से निकाल दिया क्योंकि उन्होंने हिंदू धर्म अपनाने से इनकार कर दिया था.

9 दिसंबर से 18 दिसंबर, 2022 तक नारायणपुर और कोंडागांव जिलों में ईसाइयों पर हमलों की कई घटनाएँ रिपोर्ट हुई थीं.  इन हमलों के बाद एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम जाँच के लिए उस इलाक़े में गई थी. इस टीम में पत्रकार और कार्यकर्ता शामिल थे. 

इस टीम ने आदिवासी बस्तियों में पीड़ितों, स्थानीय लोगों और अधिकारियों से मुलाकात की.

यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (UCF) के सहयोग से टीम ने 22-23 दिसंबर को प्रभावित गांवों का दौरा किया. 18 फरवरी को फैक्ट फ़ाइंडिंग टीम ने इस रिपोर्ट को रिलीज किया. 

इसमें रांची के वरिष्ठ पत्रकार अशोक वर्मा, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म, मुंबई के डायरेक्टर इरफान इंजीनियर, भारत के कैथोलिक बिशप सम्मेलन, नई दिल्ली के निकोलस बारला, ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम, छत्तीसगढ़ के संयोजक बृजेंद्र तिवारी, अजय जस्टिस शॉ और अन्य लोगों द्वारा सहायता दी गई.

इस टीम की रिपोर्ट में बताया गया है कि नारायणपुर के 18 गाँवों और कोंडागाँव जिलों के 15 गाँवों में हमलों हुए थे. इन हमलों में लगभग 1000 ईसाई आदिवासी विस्थापित हुए.

इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ईसाई आदिवासियों को उनके गांवों से निकाल दिया गया था. उनकी संपत्ति और आजीविका छीन ली गई थी क्योंकि उन्होंने ईसाई धर्म को छोड़ने से इनकार कर दिया था.

यह एक्ट के खंड (डी) के तहत दी गई जातीय जनजातीय संस्कृति की रक्षा की आड़ में किया गया था. जो कहता है: “प्रत्येक ग्राम सभा लोगों की परंपराओं और रीति-रिवाजों, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधनों और विवाद समाधान के प्रथागत तरीके की रक्षा और संरक्षण के लिए सक्षम होगी.”

कांग्रेस के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ सरकार ने 2018 के चुनाव घोषणापत्र में किये वादे को पूरा करते हुए राज्य में पेसा एक्ट को अधिसूचित किया था. 

फैक्ट फ़ाइंडिंग टीम का दावा है कि पेसा एक्ट को एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल करके हिंदू संगठनों से प्रभावित ग्राम सभाओं ने ईसाई आदिवासियों को टार्गेट किया है. 

फैक्ट-फाइंडिंग टीम के एक सदस्य ने कहा, “उद्योगपतियों और कारोबारियों को ग्राम सभा की सहमति के बिना आदिवासियों की जमीन हड़पने से रोकने के लिए बनाए गए कानून का इस्तेमाल आदिवासियों की परंपराओं, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के बहाने ईसाइयों को गांवों से दूर रखने के लिए किया जा रहा है.”

उन्होंने आगे कहा, “आरएसएस ने पेसा एक्ट के प्रभाव में आने के बाद गठित ग्राम सभाओं को प्रभावित किया, ईसाई आदिवासियों के खिलाफ कठोर नियम पारित किए. दूसरी ओर वे आदिवासियों को स्वदेशी संस्कृति की रक्षा की आड़ में हिंदू धर्म अपनाने के लिए मजबूर कर रहे हैं.”

फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में मदमनार गांव के मंगलू कोरम के हवाले से कहा गया है कि उन्हें और 21 ईसाई परिवारों के सदस्यों को गांव के मंदिर में ले जाया गया, जहां पुजारी ने जबरन कुछ अनुष्ठान करवाए और उन्हें हिंदू घोषित कर दिया. उनके घरों से बाइबल की प्रतियां भी जब्त कर ली गईं.

इसी तरह उदीदगाँव गाँव के 18 परिवारों, फुलहदगाँव के तीन और पुटनचंदागाँव के अन्य तीन परिवारों को जबरन हिंदू धर्म में परिवर्तित किया गया. विकलांगों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों तक को नहीं बख्शा गया.

कोंडागांव जिले में सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष बंगाराम सोदी और सर्व अनुसूचित जाति समाज के धनताराज टंडन ने फैक्ट-फाइंडिंग टीम को बताया कि ईसाई आदिवासियों के खिलाफ आरएसएस के विभाजनकारी अभियानों से इलाके में गड़बड़ी हो रही है. उन्होंने कहा कि आदिवासियों को अपना धर्म चुनने की आज़ादी होनी चाहिए.

इस फैक्ट फ़ाइंडिंग रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि जिन ग्रामीणों ने हिंदू धर्म को अपनाने से इनकार कर दिया, उन्हें न सिर्फ उनकी जमीन से भगा दिया गया बल्कि बांस के डंडों, टायरों और छड़ों से उनपर हमला भी किया गया. उनके पूजा स्थलों और घरों में तोड़फोड़ की गई, फसल को जला दिया गया या लूट लिया गया, पशुओं और जीवन यापन के अन्य साधन छीन लिए गए.

रिपोर्ट में बताया गया है कि कम से कम 24 लोगों को गंभीर चोटों जैसे कॉलर बोन फ्रैक्चर, सिर और कलाई की चोटों के साथ अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था.

यूसीएफ के सदस्य और लेखक जॉन दयाल ने बताया, “जिन गाँवों में पेसा अधिनियम प्रभावी है, वहां ग्राम सभा का निर्णय सबसे ऊपर होता है. इसे जिला प्रशासन द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती है. इसलिए उन्होंने (ग्राम सभा) भेदभावपूर्ण कानून पारित किए.”

उन्होंने आगे कहा, “लेकिन  उनके फैसले संविधान के अनुच्छेद 25 और अनुच्छेद 14 को ओवरराइड करते हैं, एक तो किसी भी धर्म के प्रचार या अभ्यास की स्वतंत्रता देता है और दूसरा कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करता है.”

फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट के मुताबिक, कार्रवाई करने के बजाय जिला प्रशासन अपराधियों को विस्थापित ईसाइयों को उनके गांवों में लौटने की अनुमति देने के लिए “विनती और राजी” कर रहा है. प्रशासन को लगता है कि दोनों पक्ष संघर्ष के लिए दोषी हैं.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि अक्टूबर 2022 में दर्ज जबरन धर्म परिवर्तन की शिकायत पर पुलिस ने आंखें मूंद लीं. रिपोर्ट में कहा गया है कि शिकायत के बावजूद सरकार और पुलिस ने ईसाई आदिवासियों को निशाना बनाने की धमकी और डराने-धमकाने की शुरुआती चेतावनियों को नज़रअंदाज़ कर दिया. कोई कार्रवाई नहीं की गई. 9 दिसंबर, 2022 के आसपास शुरू हुए ईसाई आदिवासियों के खिलाफ एक हिंसक अभियान के बाद भी प्रशासन उदासीन था.

इस हमले के बचे लोगों द्वारा बेनूर पुलिस स्टेशन और नारायणपुर के अन्य पुलिस स्टेशनों में अपनी शिकायत दर्ज कराने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई.

पुलिस की निष्क्रियता को उजागर करने वाली एक घटना का जिक्र करते हुए, रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि 27 दिसंबर, 2022 को नारायणपुर जिले के टेमरूगांव गांव में तीन ईसाई आदिवासी महिलाओं को 10-15 पुलिसकर्मियों की उपस्थिति में सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र कर दिया गया और अपनी आस्था और विश्वास छोड़ने के लिए मजबूर किया गया. पुलिसकर्मियों ने उन्हें नहीं रोका.

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने कहा कि जब वह नारायणपुर जिला कलेक्टर से मिले तो उन्होंने अपराधियों के खिलाफ की गई कार्रवाई (एफआईआर और गिरफ्तारी) को साझा करने से इनकार कर दिया. टीम को मिली कुछ प्राथमिकी न के बराबर थीं और उनमें छोटी-छोटी धाराओं का इस्तेमाल किया गया था जिससे किए गए अपराधों की गंभीरता कम हो गई थी.

टीम के दौरे के लगभग एक हफ्ते बाद, स्थानीय भाजपा नेताओं के नेतृत्व में एक भीड़ ने 2 जनवरी को नारायणपुर जिले के एडका गांव में एक कैथोलिक चर्च और मदर मैरी के ग्रोटो में कथित तौर पर तोड़फोड़ की थी.

भीड़ ने पुलिस अधीक्षक सदानंद कुमार पर भी हमला किया, जो अपनी टीम के साथ ईसाई मिशनरियों द्वारा कथित धर्मांतरण का विरोध कर रहे लोगों को शांत करने की कोशिश कर रहे थे. अगले दिन पांच भाजपा नेताओं को हमलों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया.

पुलिस ने हिंसा के एक दिन बाद राज्य के भाजपा नेताओं को नारायणपुर जाने से भी रोक दिया. आदिवासी भाजपा नेता और नारायणपुर के पूर्व विधायक केदार कश्यप ने रोके जाने पर मीडिया को बताया कि मिशनरियों ने पुलिस और प्रदर्शनकारियों पर हमला किया, जो शांतिपूर्वक धर्मांतरण रोकने की मांग कर रहे थे.

उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, “वे धर्मांतरण का विरोध कर रहे थे, जब कलेक्टर और पुलिस आदिवासियों के सामूहिक धर्मांतरण को रोकने में विफल रही. वे आदिवासी संस्कृति, रीति-रिवाजों और मंदिरों को बर्बाद कर रहे हैं.”

कश्यप ने कहा कि विधायकों और सांसदों को “क्षेत्र का दौरा करने से रोक दिया गया था लेकिन मिशनरी लोगों को खुली छूट दी गई थी.”

सूत्रों के अनुसार नारायणपुर भाजपा जिला अध्यक्ष रूपसाई सलाम पिछले कुछ महीनों से क्षेत्र में घर वापसी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं.

पुलिस ने हमले का प्रतिकार करने के लिए 30 से अधिक ईसाईयों और पादरियों को भी गिरफ्तार किया. स्थानीय अदालत द्वारा उनकी जमानत अर्जी खारिज किए जाने के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया.

यूसीएफ के अनुसार, छत्तीसगढ़ में 2022 में आदिवासी ईसाइयों के खिलाफ 132 अत्याचार दर्ज किए गए. देश में दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है, जहां 186 मामले दर्ज किए गए. यूसीएफ ने पिछले साल 22 राज्यों में फैले आदिवासी ईसाइयों के खिलाफ अत्याचार के 598 मामले दर्ज किए.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि लगभग सभी घटनाओं में धार्मिक अतिवादियों की सतर्क भीड़ ने जबरदस्ती और आक्रामकता की धमकियों का इस्तेमाल किया. पुलिस और स्थानीय मीडिया का अक्सर उनके साथ होने के कारण वे कानून और शासन से प्रतिरक्षा की भावना का आनंद लेते हैं.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि ऐसे मामलों में पुलिस “बिना दिमाग लगाए काम करती है”.

इसी तरह के आँकड़ों पर नज़र रखते हुए 30 जनवरी को जारी फेडरेशन ऑफ़ इंडियन अमेरिकन क्रिश्चियन ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका (FIACONA) की 2023 की वार्षिक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2022 में भारतीय ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं की संख्या 1,198 है, जो 2021 की घटनाओं से 157 प्रतिशत अधिक है.

रिपोर्ट के अनुसार लिंचिंग, चर्चों, घरों और संपत्तियों को नुकसान, जेल जाना और झूठे आरोपों से बचाव के लिए कानूनी शुल्क के कारण भारतीय ईसाइयों को अकेले 2022 में करीब 56 मिलियन डॉलर का वित्तीय नुकसान हुआ है.

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने ईसाई आदिवासियों की उनके गांवों में वापसी की सुविधा के लिए तत्काल सरकारी हस्तक्षेप की मांग करते हुए आठ सिफारिशें की हैं. इनमें राहत शिविरों में गोपनीयता, सुरक्षा और स्वच्छता सुनिश्चित करने की सिफ़ारिश शामिल है. 

छत्तीसगढ़ सरकार को तलवार की धार पर चलना होगा

फैक्ट फ़ाइंडिंग टीम ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में ईसाई आदिवासियों के साथ हुई नाइंसाफ़ी के बारे में जो तथ्य दिये हैं, उनमें से ज़्यादातर पहले से ही रिपोर्ट हो चुके हैं.

जब ये घटनाएँ हो रहीं थी उस समय MBB ने लगातार ग्राउंड रिपोर्ट की थीं. इस रिपोर्ट में राज्य सरकार के रवैये पर कुछ जायज़ सवाल भी उठाए गए हैं.

इस मामले में हमने यह पाया था कि इन घटनाओं के दौरान पुलिस ने काफ़ी संयम बरता था. क्योंकि मामला बेहद पेचीदा और राजनीतिक तौर पर उलझा हुआ है.

यहाँ पर आदिवासी को ही आदिवासी के ख़िलाफ़ खड़ा कर दिया गया है. इसलिए सरकार के सामने चुनौती है कि वह एक तरफ़ दोषियों को सज़ा दिलाए और पीड़ितों को सुरक्षा दे.

लेकिन सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक है. सरकार को ज़मीन पर आदिवासियों में पैदा किये गए भ्रम की राजनीति से जूझना होगा.

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