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क्या सुप्रीम कोर्ट देगा छिंदवाड़ा के ईसाई आदिवासी को कब्रिस्तान में दफनाने की अनुमति ?

रमेश बघेल के पिता का शव अब तक शवगृह में ही रखा हुआ है, जबकि उनकी मृत्यु को 12 सें ज़्यादा दिन हो चुके हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने दुख व्यक्त किया है लेकिन फैसला अभी भी नहीं सुनाया गया है.

आज यानी 22 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ के एक ईसाई जनजातीय व्यक्ति को उसके पैतृक गांव के कब्रिस्तान में दफनाने के अधिकार से जुड़े विवाद पर सुनवाई होगी.

इस मामले में 20 जनवरी को हुई सुनवाई के दौरान अदालत में तीखी बहस हुई थी जिसके बाद मामले को आगे की सुनवाई के लिए 22 जनवरी की तारीख दी गई थी.

मामला छत्तीसगढ़ के छिंदवाड़ा गांव का है, जहां रमेश बघेल अपने पिता को गांव के कब्रिस्तान में दफनाना चाहता था.

रमेश का कहना है कि उनके परिवार के अन्य ईसाई सदस्य भी उसी कब्रिस्तान में दफनाए गए हैं. लेकिन कुछ ग्रामीणों ने यह कहकर विरोध किया कि मृतक ईसाई था और इस वजह से उसे गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती. इसलिए अब तक उनके पिता का शव शवगृह में ही रखा हुआ है, जबकि उनकी मृत्यु को 12 सें ज़्यादा दिन हो चुके हैं.

हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल

इस विवाद पर याचिकाकर्ता ने पहले छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का रुख किया था. हाई कोर्ट में याचिका यह कहकर खारिज कर दी गई थी कि गांव में ईसाइयों के लिए अलग से कोई कब्रिस्तान नहीं है. इसलिए शव को 20-25 किलोमीटर दूर ईसाई कब्रिस्तान में दफनाने का सुझाव दिया गया.

हालांकि याचिकाकर्ता ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उनका कहना है कि वह चाहते हैं कि उनके पिता को वहीं दफनाया जाए जहां उनके पूर्वज और परिवार के अन्य सदस्य दफन हैं.

20 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में गरमागरम बहस

20 जनवरी को सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि गांव के कब्रिस्तान में शव को दफनाने का अनुरोध हिंदू और ईसाई जनजातीय समुदायों के बीच अशांति फैलाने की मंशा से किया गया है. उन्होंने इसे “एक आंदोलन की शुरुआत” बताया.

वहीं याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई.

उन्होंने कहा, “यह एक समुदाय को बाहर करने और यह संदेश देने की कोशिश है कि यदि आप धर्मांतरण करते हैं, तो आपको गांव छोड़ना पड़ेगा.” उन्होंने इसे खतरनाक बताया है.

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट और पंचायत की भूमिका पर नाराज़गी ज़ाहिर की. न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, “हमें यह देखकर दुख होता है कि किसी को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ रहा है. हाई कोर्ट और पंचायत इस विवाद को सुलझा क्यों नहीं पाए?”

आज की सुनवाई से उम्मीदें

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को आज 22 जनवरी के लिए सूचीबद्ध किया है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि शव को अनिश्चितकाल तक शवगृह में नहीं रखा जा सकता.

अदालत ने इस मामले के व्यापक प्रभावों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इसे सांप्रदायिक विवाद का रूप लेने से रोकने के लिए तत्काल समाधान की आवश्यकता है.

यह मामला सिर्फ एक दफनाने के अधिकार का नहीं बल्कि देश में धार्मिक सौहार्द और जनजातीय समुदायों के अधिकारों को लेकर बड़ी बहस को जन्म देता है. अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले पर टिकी हैं.

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