HomeLaw & Rightsधनगर को आदिवासी का दर्जा क्यों नहीं मिल सकता है

धनगर को आदिवासी का दर्जा क्यों नहीं मिल सकता है

महाराष्ट्र में धनगर समुदाय लंबे समय से आदिवासी होने का दावा कर रहा है. उनका यह दावा अदालत या स्टडी में साबित नहीं हो पाता है. लेकिन जनसंख्या में बड़ा समूह होने की वजह से उनके मुद्दे को राजनीतिक दल नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं.

महाराष्ट्र विधानसभा में शुक्रवार 4 अक्टूबर को अफ़रा तफ़री का माहौल बन गया. यह स्थिति उन्होंने पैदा कर दी जो खुद विधान सभा में व्यवस्था बनाए रखने के लिए ज़िम्मेदार लोगों में शामिल हैं.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-अजित पवार गुट के विधायक और महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरि झिरवाल शुक्रवार को महाराष्ट्र के मंत्रालय की छत से कूद गए और सुरक्षा जाल पर जा गिरे.

उन्होंने कथित तौर पर मुंबई में महाराष्ट्र सरकार के प्रशासनिक मुख्यालय मंत्रालय की तीसरी मंजिल से छलांग लगाई. झिरवाल अनुसूचित जनजाति कोटे से धनगर समुदाय के लिए आरक्षण का विरोध कर रहे हैं.

इस घटना का वीडियो काफी वायरल हो रहा है, जिसमें विधायक और तीन अन्य लोग तीसरी मंजिल से छलांग लगने के बाद जाल में फंसे गए.

पुलिस की मदद से इन्हें वहां से निकाला गया. महाराष्ट्र में धनगर समुदाय के लोग खुद को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने के लिए आंदोलन कर रहे हैं.

धनगर समुदाय का दावा है कि वे राज्य में मराठा समुदाय के बाद दूसरा सबसे बड़ा समूह है. इसके साथ ही उनका यह दावा भी है कि राज्य की कुल 288 सीटों में से कम से कम 92 सीटों पर उनका प्रभाव है.

धनगर समुदाय के लोगों का कहना है कि वे नये सिरे से खुद को अनसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे पहले से ही इस सूचि में शामिल हैं. उनका कहना है कि दरअसल महाराष्ट्र में धनगर और अन्य राज्यों में जिन्हें धंगड़ या धांगड़ कहा जाता है वे एक ही हैं.

धनगर समुदाय का आंदोलन या फिर खुद को अनसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किये जाने की मांग नई नहीं है. यह मांग आज़ादी के बाद से कई बार हुई है.

लेकिन हर बार अदालत या सरकारों ने उनकी इस मांग को ख़ारिज किया है. साल 2013 में महाराष्ट्र में सबसे बड़ा धनगर आंदोलन हुआ था.

उस समय बीजेपी के नेता देवेंद्र फड़नवीस और शिव सेना नेता सुभाष देसाई ने आंदोलन के नेताओं को आश्वासन दिया था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो धांगड़ समुदाय को आरक्षण दिया जाएगा. लेकिन सरकार बनने के बाद बीजेपी इस वादे को भूल गई.

अनुसूचित जनजाति में किन समुदायों को शामिल किया जा सकता है इसके कोई ठोस नियम नहीं हैं. लेकिन 1965 में लोकुर कमेटी ने कुछ मापदंड सुझाए थे जिन्हें किसी जातीय समूह को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का आधार बनाया जाता है.

ये मापदंड आदिम जीवन शैली, अन्य समुदायों से दूरी, दुर्गम इलाकों में बसे होना, अलग संस्कृति, अन्य समुदायों से मिलने में झिझक और उत्पादन के पुरातन साधन.

महाराष्ट्र में धांगड़ समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का विरोध करने वाले लोग दावा करते हैं कि यह समुदाय इन मापदंड़ों को पूरा नहीं करता है.

इस सिलसिले में साल 2002 में इस मुद्दे पर संसद में हुई बहस का हवाला भी दिया जाता है. यह कहा जाता है कि इस बहस में यह तय पाया गया था कि धांगड़ और धनगर अलग अलग हैं.

महाराष्ट्र में फ़िलहाल चुनाव का माहौल बना हुआ है. इस माहौल में सत्ताधारी दलों के लिए धनगर समुदाय को आरक्षण देने का फ़ैसला की तरह की नई चुनौती पेश कर सकता है.  

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