HomeAdivasi Dailyमौत के बाद भी आदिवासी के लिए इंसाफ की कोई गारंटी नहीं

मौत के बाद भी आदिवासी के लिए इंसाफ की कोई गारंटी नहीं

पालक्काड के 27 साल के आदिवासी व्यक्ति को 2018 में खाने की चोरी के शक में भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था.

केरल के पालक्काड ज़िले के मण्णारक्काड अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति स्पेशल कोर्ट ने मंगलवार को मृत आदिवासी मधु का प्रतिनिधित्व करने वाले स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर, वी.टी.रघुनाथ, की बार-बार अनुपस्थिति पर नाराजगी जताई.

पालक्काड के 27 साल के आदिवासी व्यक्ति को 2018 में खाने की चोरी के शक में भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था.

मधु के लिए स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर मंगलवार को मामले की सुनवाई के समय कोर्ट में मौजूद नहीं थे. इससे पहले पिछले साल 15 नवंबर को अदालत ने सुनवाई को 25 जनवरी तक के लिए टाल दिया था क्योंकि उस दिन भी वकील मौजूद नहीं था.

अदालत ने अब मामले को फिर से 26 फरवरी, 2022 तक के लिए स्थगित कर दिया है. वी.टी. रघुनाथ को अगस्त 2019 में मृतक के लिए वकील नियुक्त किया गया था. वह अब तक एक बार भी मामले को सुनवाई में हाजिर नहीं हुए हैं.

25 जनवरी को सुनवाई शुरू होने से पहले रघुनाथ के मेडिकल कारणों से अपने पद से इस्तीफा देने की खबर आई.

पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की अनुपस्थिति ने कई बार मामले की सुनवाई में देरी की है. फरवरी 2018 में हुई घटना के लिए अभियोजक ढूंढना तक आसान नहीं था.

मधु के परिवार का आरोप है कि जानबूझकर मुकदमे में देरी की जा रही है. मधु की मां, मल्ली, अपने बेटे के लिए न्याय का इंतजार कर रही है. वो कहती है, “मेरे बेटे को मारे गए चार साल हो चुके हैं. हमें नहीं पता कि ट्रायल शुरू क्यों नहीं हुआ.”

मल्ली ने अपने बेटे के लिए न्याय की मांग करने के बारे में कोई जानकारी नहीं होने के बारे में कहा, “पुलिस अलग-अलग वजह बताते हैं, जो मुझे समझ में नहीं आता है. हमारे पास पैसा और प्रभाव नहीं है. इतने सालों से सभी आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं.”

घटना के बाद गठित विशेष जांच दल ने मई 2018 में 3,500 पन्नों की चार्जशीट का मसौदा तैयार किया था, जिसमें कुल 16 लोगों का नाम है.

आरोपियों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत हत्या का आरोप लगाया गया है. सभी आरोपी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं.

आलोचक राज्य सरकार द्वारा अदालत में मधु का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक स्थायी पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की नियुक्ति में देरी पर सवाल उठा रहे हैं.

सरकार पर इस मामले में राजनीतिक प्रभाव रखने का भी आरोप है, क्योंकि एक आरोपी शम्सुद्दीन को सितंबर 2021 में माकपा शाखा सचिव के रूप में चुना गया था. हालाँकि, विरोध के बाद इस फैसले को रद्द कर दिया गया था.

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