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Lok Sabha Elections 2024: जानिए, महाराष्ट्र की आदिवासी आरक्षित सीटों का सियासी समीकरण

पिछले आम चुनाव यानि लोकसभा चुनाव 2019 में महाराष्ट्र की चार अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीटों में से तीन पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी.

महाराष्ट्र समेत पूरे देश में लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो गया है. पिछले हफ्ते शनिवार को चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया. देशभर में 7 फेज में चुनाव होंगे और चार जून को मतगणना होगी. वहीं महाराष्ट्र की 48 सीटों पर शुरुआती पांच चरणों में वोटिंग होगी.

महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 4 सीटें – नंदुरबार, गढ़चिरौली-चिमूर, दिंडोरी और पालघर  अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित है. तो आइए आज हम इन्हीं एसटी आरक्षित सीटों के सियासी समीकरण की बात करेंगे…

आगामी चुनाव में गढ़चिरौली-चिमूर सीट पर पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान होगा. वहीं चौथे चरण में 13 मई को नंदुरबार सीट पर मतदान होगा. जबकि पांचवें चरण में 20 मई को दिंडोरी और पालघर में मतदान होगा.

नंदुरबार लोकसभा सीट

नंदुरबार महाराष्ट्र राज्य का एक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र और एक नगरपालिका परिषद है. इस जिले का गठन 1 जुलाई 1998 को धुले जिले से अलग कर किया गया था.

नंदुरबार लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें अक्कलकुवा, शाहदा, नंदुरबार, नवापुर, साकरी और शिरपुर विधानसभ सीट आती है.

इस जिले की पहचान महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल इलाके के रूप में होती रही है. वैसे तो अब तक के चुनाव में आदिवासी समाज का ही बोलबाला रहा है. लेकिन मराठा समुदाय भी यहां निर्णायक होते हैं.

नंदुरबार सीट का इतिहास

इस सीट के इतिहास पर नजर डालें तो इस सीट से 1957 और 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के लक्ष्मण वेदू वल्वी की जीत हुई थी.

नंदुरबार गांधी परिवार का प्रिय रहा है. इंदिरा गांधी के काल से ही कांग्रेस के चुनाव प्रचार की शुरुआत नंदुरबार से करने की परंपरा रही है. नंदुरबार में सभा करने के बाद ही इंदिरा बाकी लोकसभा क्षेत्रों में प्रचार करती थीं. यही वजह है कि कांग्रेस के उम्मीदवार यहां जीतते रहे हैं.

यहां तक कि जब 1998 में सोनिया गांधी ने भी कांग्रेस की कमान संभाली थी तब उन्होंने नंदुरबार में ही पहली रैली की थी.

फिर 1967 से लेकर 2009 तक यानी 42 साल तक लगातार 13 संसदीय चुनावों में कांग्रेस ही जीतकर आई. 2009 में कांग्रेस के माणिक राव होडल्या गावित चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे.

इसके बाद 2014 में इस सीट से बीजेपी की टिकट से जीत दर्ज करके सबसे युवा महिला सांसद हीना गावित पहली बार लोकसभा में पहुंची थीं. उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता और 9 बार लगातार लोकसभा चुनाव जीतने वाले माणिक राव गावित को हराया था. 

2019 आम चुनाव के नतीजे

2019 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली थी. इस सीट पर कुल 11 उम्मीदवार मैदान में थे. कांग्रेस ने यहां से केसी पाडवी को उम्मीदवार बनाया था.

जबकि बीजेपी ने मौजूदा महिला सांसद हीना गावित को मैदान में उतारा था. बसपा की ओर से रेखा देसाई चुनावी मैदान में थी.

इस सीट से भाजपा प्रत्याशी हीना गावित ने 6,39,136 वोटों से जीत हासिल की. वहीं कांग्रेस के केसी पाडवी 5,43,507 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे और वीबीए के अंतुर्लिकर सुरेश 25,702 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे. नंदुरबार लोकसभा सीट पर 68.99 फीसदी मतदान हुआ था.

वहीं आगामी लोकसभा चुनाव की बात करें तो इस बार एक तरफ महायुति है तो दूसरी और महा विकास अघाड़ी है. महायुति में अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी, एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना तीसरी बीजेपी है.

वहीं महाविकास अघाड़ी में शरद पवार की एनसी शरदचंद्र कांग्रेस पार्टी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना शामिल हैं. ऐसे में नंदुरबार सीट को लेकर भी सियासत गर्म नजर आ सकती है.

आदिवासियों के मुदृदे

नंदुरबार के आदिवासियों के मुद्दों की बात करें तो यहां पर लोगों की वन और भूमि अधिकार आदि से जुड़ी प्रमुख मांगे हैं. 

यहां पर वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों को ज़मीन सौंपना, वन भूमि में चरागाह क्षेत्र स्थापित करना, कृषि उपज के लिए उचित मूल्य तय करना, क्षेत्र के कई तालुकों को सूखा प्रभावित घोषित करना और सूखा प्रभावित क्षेत्र के प्रत्येक किसान को 30 हज़ार रुपये का मुआवजा देने की मांग शामिल है.

अपनी इन मांगों को लेकर पिछले साल दिसंबर में नंदुबार के आदिवासियों ने धुले और नासिक के आदिवासियों के साथ मिलकर पैदल मार्च भी किया था.

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गढ़चिरौली-चिमूर लोकसभा सीट

गढ़चिरौली-चिमूर लोकसभा आदिवासी बहुल सीट है. वहीं नक्‍सल प्रभावित भी है. साल 2008 में परिसीमन के बाद गढ़चिरौली चिमूर लोकसभा सीट अस्तित्व में आई थी. उसके पहले यहां चिमूर लोकसभा सीट हुआ करती थी.

गढ़चिरोली-चिमूर लोकसभा सीट में गढ़चिरौली जिले की 3 विधानसभा सीट आती है. इनमें गढ़चिरौली, आरमोरी और अहेरी सीट आती है.

वहीं चंद्रपूर जिले की 2 विधानसभा सीट आती है. इनमें चिमूर और ब्रम्हपुरी सीट शामिल है. साथ ही गोंदिया जिले की एक विधानसभा सीट आमगाव आती है.

गढ़चिरौलली चिमूर सीट पर 2009 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था. जिसमें कांग्रेस के प्रत्याशी मारोतराव कोवासे ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने बीजेपी के अशोक नेते को हराया था. इस चुनाव में तीसरे प्रमुख प्रत्याशी रहे राजे सत्यवान अत्राम. उन्होंने बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था.

सियासी समीकरण

गढ़चिरौली-चिमूर लोकसभा सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है. कांग्रेस ने नामदेव उसेंडी को यहां से मैदान में उतारा है. जबकि बीजेपी ने मौजूदा सांसद अशोक नेते को ही एक बार फिर टिकट दिया है. बहुजन समाज पार्टी ने यहां से हरिचंद्र नागौजी को उम्मीदवार बनाया है.

लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे

2019 लोकसभा चुनाव में गढ़चिरौली चिमूर सीट पर बीजेपी अशोक नेते ने जीत हासिल की, उन्हें 5,19,968 वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी नामदेव उसेंडी को 4,42,442 वोट मिले और वीबीए प्रत्याशी रमेश गजबे ने 1,11,468 हासिल किए.

जबकि बसपा के हरिचंद्र नागोजी मंगम उम्मीदवार थे और उन्हें सिर्फ 28,104 वोट मिल पाए. गढ़चिरौली-चिमूर लोकसभा सीट पर 61.33 प्रतीशत वोट पड़े थे.

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दिंडोरी लोकसभा सीट

दिंडोरी लोकसभा सीट भी 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. परिसीमन के पहले दिंडोरी लोकसभा सीट मालेगांव का हिस्सा हुआ करती थी.

दिंडोरी की पहचान यहां के स्वामी समर्थ आध्यात्मिक केंद्र और गुरुकुल के रूप होती है. धार्मिक जगह होने के साथ-साथ यहां गावों में आपको आधुनिकता नजर आएगी. लेकिन इसके बावजूद आदिवासी बहुल इलाके अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

दिंडोरी गुजरात से नजदीक है और इस कारण यहां के अधिकतर लोगों का रोजगार गुजरात में ही है. जानकारों का कहना है कि इस भौगोलिक स्थिति के कारण यहां की राजनीति पर भी असर होता है.

दिंडोरी लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं- दिंडोरी, कलवण, चांदवड, और येवला. बताया जाता है कि मुस्लिम बहुल इलाके में एक वक्त निहाल अहमद का बोलबाला था. लेकिन मालेगांव के धुलिया से जुड़ने के बाद इस लोकसभा सीट के समीकरण पूरी तरह बदल गए.

वहीं सुरगना और पेठ में कम्युनिस्टों का वर्चस्व आज भी कायम है. हर चुनाव में एक से डेढ़ लाख वोट कम्युनिस्ट पार्टी ले जाती है.

लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे

पिछले आम चुनाव में इस सीट पर कुल 8 उम्मीदवार मैदान में थे. बीजेपी ने दिंडोरी लोकसभा सीट पर भारती पवार को उम्मीदवार बनाया था, जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) ने धनराज महाले को टिकट दिया था.

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भारती पवार एनसीपी छोड़ बीजेपी में शामिल हो गई थीं.

2019 में इस सीट पर बीजेपी प्रत्याशी भारती पवार ने 5,67,470 वोटों के साथ जीत हासिल की. जबकि कांग्रेस के धनराज महाले 3,68,691 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे, वहीं सीपीआई (एम) के जीव पांडु गावित 1,09,570 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे. दिंडोरी लोकसभा सीट पर 65.64 फीसदी मतदान हुआ था.

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पालघर लोकसभा सीट

पालघर लोकसभा सीट 2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. परिसीमन के पहले पालघर लोकसभा क्षेत्र डहाणू के तहत आता था, जबकि वसई-विरार का क्षेत्र उत्तर मुंबई लोकसभा का हिस्सा था.

पालघर आदिवासी बहुल इलाका है. इस क्षेत्र में हिंदी भाषी वोटरों की आबादी अच्छी खासी है. इसके बाद गुजराती, आदिवासी और पानमाली वोटरों का नंबर आता है. 

पालघर लोकसभा सीट में कुल छह विधानसभा सीटें आती हैं. यह क्षेत्र पूर्व और उत्तर पूर्व में थाना और नासिक जिले और गुजरात राज्य के वलसाड जिले, दादरा और नगर हवेली और उत्तर में दमन और दीव से घिरा हुआ है.

नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही है. वहीं, विपक्षी दल भी उलटफेर करने की रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं.

2019 चुनाव के नतीजे

2019 लोकसभा में इस सीट से शिवसेना के राजेंद्र गावित ने जीत दर्ज की, उन्हें 5,15,000 वोट मिले थे. जबकि बीवीए के बलिराम जाधव को 4,91,596 वोट मिले और वीबीए के सुरेश पाडवी को महज 13,728 वोट मिले थे. पालघर लोकसभा सीट पर 62.70 फीसदी मतदान हुआ था.

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