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कर्नाटक: वन विभाग ने बांदीपुर में आदिवासियों के लिए मुफ्त एम्बुलेंस सेवा शुरू की

वन विभाग ने न केवल उनके स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए बल्कि विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों की मदद से हस्तशिल्प बनाने वाली इकाइयों की स्थापना के माध्यम से स्वरोजगार को प्रोत्साहित करके उनके आर्थिक सशक्तिकरण के अलावा, आदिवासी बच्चों की शिक्षा गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए भी कई उपाय शुरू किए हैं.

कर्नाटक में वन विभाग ने चामराजनगर ज़िले के बांदीपुर टाइगर रिजर्व (Bandipur Tiger Reserve) में वन सीमांत गांवों में रहने वाले आदिवासी समुदाय के सदस्यों के लिए एक मुफ्त एम्बुलेंस सेवा शुरू की गई है. यह देश में अपनी तरह की पहली पहल मानी जा रही है.

इस कदम से आदिवासी समुदाय के सदस्यों और टाइगर रिजर्व के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र के वन सीमांत के 130 से अधिक गांवों में रहने वाले लोगों को मदद मिलेगी.

वैसे आदिवासी बस्तियों और जंगल के आसपास के गांवों में रहने वाले लोगों को स्वास्थ्य से जुड़ी आपातकालीन स्थिति में एम्बुलेंस सेवा की कमी के कारण अस्पताल पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ता है.

एम्बुलेंस सेवा की कमी के कारण गांव वाले सांप के काटने और जंगली जानवरों के हमले जैसी चिकित्सा आपात स्थितियों के दौरान अपने गांवों से अस्पतालों तक पहुंचने के लिए स्थानीय निजी माल वाहनों पर निर्भर रहते हैं.

कई आदिवासी बस्तियां राष्ट्रीय राजमार्ग 212 के दोनों हिस्सों पर स्थित हैं, जिसे अब NH-766 का नाम दिया गया है जो चामराजनगर में गुंडलूपेट के माध्यम से कर्नाटक को केरल से जोड़ता है. NH-67 कर्नाटक को तमिलनाडु से जोड़ता है. दोनों राजमार्ग बांदीपुर टाइगर रिजर्व से होकर गुजरते हैं.

इसके अलावा कई सालों से स्थानीय लोगों के द्वारा वन विभाग से एम्बुलेंस सेवा संचालित करने की मांग की जा रही थी.

जनजातीय आउटरीच गतिविधियों के हिस्से के रूप में पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण भी वनों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

विभाग ने न केवल उनके स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए बल्कि विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों की मदद से हस्तशिल्प बनाने वाली इकाइयों की स्थापना के माध्यम से स्वरोजगार को प्रोत्साहित करके उनके आर्थिक सशक्तिकरण के अलावा, आदिवासी बच्चों की शिक्षा गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए भी कई उपाय शुरू किए हैं.

बांदीपुर टाइगर रिजर्व ने बांदीपुर टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन फंड के तहत उपलब्ध अपने फंड का उपयोग करके यह सेवा शुरू की है.

बीटीआर की सेवाएं

बीटीआर ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर सेवा की पेशकश के लिए वार्षिक अनुबंध के आधार पर दो एम्बुलेंस किराए पर लिया है.

वन विभाग ने इन दोनों वाहनों को एक साल की अवधि के लिए किराए पर लेने के लिए 12 लाख रुपये खर्च किए हैं.

चिकित्सा आपात स्थिति के आधार पर वाहनों के चालक सबसे नजदीकी पीएचसीएस, तालुक अस्पतालों, यहां तक कि केआर अस्पताल या मैसूरु के अन्य अस्पतालों तक पिक और ड्रॉप सेवा सुनिश्चित करते हैं.

इसके साथ ही एम्बुलेंस वाहन रिजर्व में निर्दिष्ट स्थानों पर पार्क किए गए सभी चिकित्सा आपात स्थितियों के दौरान आदिवासियों को चौबीसों घंटे सेवाएं प्रदान करेंगे.

हेल्पलाइन नंबर
विभाग ने पहले चरण में बांदीपुर रेंज और मद्दूर रेंज के लिए एम्बुलेंस सेवाएं प्रदान की हैं. जो आने वाले वर्षों में चरणबद्ध तरीके से अन्य रेंजों में सेवाओं का विस्तार करेगी.

टाइगर रिजर्व के आदिवासी एम्बुलेंस हेल्पलाइन नंबर- 91- 9481995226 पर संपर्क कर सकते हैं.

ऐसा दावा किया जा रहा है कि विभाग, जिसने इस साल जनवरी में सेवाएं शुरू की थीं, ने जल्द ही स्थानीय गुंडलूपेट विधायक एचएम गणेश प्रसाद (Gundlupet MLA HM Ganesh Prasad) के द्वारा आधिकारिक तौर पर सेवाओं का उद्घाटन करने की पूरी तैयारी कर ली है.

बांदीपुर प्रोजेक्ट टाइगर के निदेशक पी रमेश कुमार (Director of Bandipur Project Tiger P Ramesh Kumar) ने कहा कि टाइगर रिजर्व द्वारा अपने फंड का उपयोग करके आदिवासी कनेक्ट कार्यक्रम के हिस्से के रूप में एम्बुलेंस सेवाएं शुरू की गई.

बीटीआर के पोजेक्ट का रेवेनुए

बीटीआर ने पिछले साल अपने सभी रेवेनुए से 13 करोड़ रुपये का राजस्व संग्रह दर्ज किया है.

इसमें 13 करोड़ के रेवेनुए से बीटीआर ने टाइगर रिजर्व में इस साल अपने सभी पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों और ग्रामीणों के कल्याण के लिए 1 करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं.

जिसमें एम्बुलेंस सेवाएं शुरू करना, सैकड़ों आदिवासी छात्रों के लिए सौर लालटेन का वितरण, उनकी शिक्षा गतिविधियों को प्रोत्साहित करना आदि सेवाएं शामिल है.

बीटीआर ने कहा कि गांवों में उनके पक्के घरों तक बिजली की कनेक्टिविटी नहीं है.

चामराजनगर सोलिगा ट्राइबल्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष महादेवु ने कहा है कि मुफ्त एम्बुलेंस सेवा के संचालन की पहल सभी बीमार और जरूरतमंद आदिवासियों को उनकी चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान मदद करती है.

उन्होंने कहा कि वन विभाग को आदिवासियों के लिए इसके उपयोग को सत्यापित करने के लिए नामित कर्मचारियों के साथ दैनिक आधार पर एम्बुलेंस सेवा के संचालन की निगरानी करनी चाहिए.

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