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आदिवासी भोजन: हो परिवार के साथ सारंडा जंगल के ख़ास साग का स्वाद

आदिवासी भोजन के साथ उनके लोकगीत और लोकधुन तो सोने पर सुहागा था. हो आदिवासी आज भी जंगल से कई तरह के साग लाते हैं. इन साग में कई औषधीय गुण मिलते हैं.

झारखंड के कोल्हान प्रमंडल (Kolhan Region) के अंतर्गत सरायकेला खरसावाँ, पश्चिमी सिंहभूम और पूर्वी सिंह सिंहभूम तीन जिले आते हैं. . 

इस प्रमंडल में झारखण्ड का सबसे पुराना औद्योगिक क्षेत्र है तथा यहाँ लौह अयस्क, कॉपर, और यूरेनियम  भारी मात्रा में पाए जाते हैं, तथा सोने के भी खान इस क्षेत्र में मौजूद हैं. 

वहीँ इस प्रमंडल के अंतर्गत पूर्वी सिंहभूम जमशेदपुर तथा टाटा के नाम से भी पूरे विश्व में जाना जाता है. 1907 ईसवी में जमशेद नौशारवांजी टाटा ने यहाँ पर टाटा स्टील एंड आयरन कम्पनी की स्थापना की थी.  

लेकिन इस इलाके की सबसे बड़ी पहचान सारंडा जंगल है. सारंडा लगभग 820 वर्ग किलोमीटर में फैला सघन वन है. इस वन क्षेत्र की सीमा ओड़िसा तक फैली हुई है.  

सारंडा एशिया का सबसे बड़ा साल (सखुआ) वृक्षों का जंगल भी है. यह जंगल सात सौ पहाड़ियों पर फैला हुआ है. सखुआ के अलावा यहां आम, जामुन, बांस, कटहल एवं पलाश के भी अनेकों पेड़-पौधे मौजूद है.

इस जंगल में औषधीय पौधे बहुतायत में पाए जाते हैं. इनमें सफेद मूसली, काली मूसली, मुलेठी, सतावर, गुडमार, चेरेता, कालीहारी, पत्थरचूर, तुलसी, अर्जुन,  आदि प्रमुख हैं.  इस जंगल में कई तरह के साग और कंदमूल भी मिलते हैं.

इस जंगल के मालिक यहां के आदिवासी हैं. हो समुदाय यहां का सबसे बड़ा आदिवासी समूह है. मैं भी भारत की टीम को पश्चिम सिंहभूम के आदिवासियों से मिलने के सिलसिले में यहां के कई परिवारों से मिलने का मौका मिला. 

इन मुलाकातों में हमें यहां के ख़ास आदिवासी भोजन और जंगल के साग चखने का अवसर भी मिला. The Tribal Kitchen (दी ट्राइबल किचन) के इस ख़ास एपिसोड में आप यह देख सकते हैं.

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