होली से एक सप्ताह पहले झाबुआ और आस-पास के ज़िलों में आदिवासी साप्ताहिक हाट भगोरिया मेले में तब्दील हो जाते हैं. इन इलाकों में यह मौसम उत्सव का होता है.
जंगल में महुआ का फूल झड़ने लगता है और आदिवासी मज़दूरी कर घर लौट आता है. साल 2024 के भगोरिया मेलों में शामिल होने के लिए मैं भी भारत की टीम भी झाबुआ पहुँची.
इस बहाने हमें यहां के कई आदिवासी गांवों में घूमने का मौका मिला. झाबुआ का कड़कनाथ तो ख़ैर दुनिया भर में मशहूर है.
हमें भी यहां के एक गांव में भील आदिवासी परिवार के साथ कड़कनाथ का स्वाद चखने का मौका मिला. इस परिवार के खेत में पके कड़कनाथ में महुआ की धार दी गई थी.
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