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Rajasthan Assembly Election 2023: बांसवाड़ा के आदिवासियों ने कहा- नेता सिर्फ चुनाव के दौरान हमसे मिलने आते हैं

राजस्थान के बांसवाड़ा के चाचाकोटा गांव और उसके आसपास के गांव पृथ्वी गढ़ के आदिवासियों को बुनियादी सुविधाओं के अभाव के साथ ही सरकार की योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता है. इसके अलावा यहां के आदिवासियों का कहना है कि राजनेता उनके गांव में र्सिफ चुनाव के समय ही आते हैं.

राजस्थान के बांसवाड़ा के चाचाकोटा गांव के आदिवासियों को सरकार के द्वारा शुरु की गई योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं है और जिन्होंने योजना के लिए सारे दस्तावेज जमा कर दिए है उनका दावा है कि उन्हें योजना का लाभ नहीं मिल रहा है.

चाचाकोटा गांव के आदिवासियों ने कहा कि उन तक सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है.

इसके अलावा विधानसभा चुनावों की हलचल से दूर बांसवाड़ा के इस सुदूर इलाके में रहने वाले आदिवासियों को यह भी याद नहीं है कि चुनाव चुनाव के अलावा किसी राजनेता ने इस क्षेत्र का दौरा किया हो…क्योंकि यहां के स्थानीय आदिवासियों का पूरा संघर्ष अपना जीवन जीने के लिए प्रतिदिन 100-200 रुपये कमाने में चला जाता है.
यहां के स्थानीय आदिवासियों के लिए एक जोड़ी जूते या नई पोशाक भी खरीदना एक विलासिता की चीज है.

आदिवासियों की समस्याएं

सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलने वालों में एक आदिवासी बच्ची का भी नाम शामिल है. इस बच्ची का नाम सुनीता है. चाचाकोटा में माही नदी के भराव क्षेत्र के पास एक छोटे से कच्चे घर में अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलते हुए सुनीता आगंतुकों के आने का इंतजार करती है ताकि वह उन्हें नदी के भराव क्षेत्र में नाव पर ले जाकर कुछ पैसे कमा सके.

स्कूल की पढ़ाई छोड़ चुकी सुनीता ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि मैं यहां आने वाले लोगों को नाव की सवारी कराकर कुछ पैसे कमाती हूं. मेरे पिता एक मजदूर हैं और मैं जो कमाती हूं उससे उन्हें हमारा घर चलाने में मदद मिलती है.

चाचाकोटा एक सुरम्य स्थान है, जहां बांसवाड़ा और आसपास के क्षेत्रों से लोग मुख्य रूप से मानसून के समय आते हैं.

सुनीता ने बताया, “सामान्य दिनों में औसतन 10-15 लोग आते हैं और यहां समय बिताते हैं और इससे हमें कुछ पैसे मिल जाते हैं. हमें और क्या चाहिए?”

दूरदराज के इलाकों में कई आदिवासी परिवारों में आधुनिक सुविधाओं का अभाव है लेकिन मोबाइल फोन की मौजूदगी के कारण सोशल मीडिया युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय है और वे रील देखना पसंद करते हैं.

एक अन्य 14 वर्षीय लड़की सिक्कू सरपता को नहीं पता कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री कौन है और उसे पता नहीं है कि चुनाव क्या हैं लेकिन वह अपने स्मार्टफोन पर रील देखने में बहुत समय बिताती है.

हाथ में कम बजट का मोबाइल लिए कच्चे घर की दहलीज पर अपनी मां चोकू के साथ बैठी सिक्कू ने कहा, “रील अद्भुत हैं. मैं उसका आनंद लेती हूं.’’

उसकी मां ने बताया कि सिक्कू ने 7वीं कक्षा के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया क्योंकि वह पढ़ाई में ध्यान नहीं देती थी.

अपनी समस्याओं को गिनाते हुए चोकू ने कहा कि स्वच्छ पेयजल, काम के अवसरों की कमी मुख्य चुनौतियां हैं.

चोकू ने अपने घर के बाहर लटकते बिजली के तार की ओर इशारा करते हुए कहा कि किसी को भी ऐसे मुद्दों की परवाह नहीं है.

उन्होंने कहा, “लटके हुए तार को देखो, अगर कोई लंबा व्यक्ति हमारे घर में प्रवेश करता है, तो बिजली के तार के संपर्क में आने का खतरा है. ये वे समस्याएं हैं जिनका हम सामना कर रहे हैं. राजनेता केवल वोट मांगने के लिए चुनाव में आते हैं और फिर कभी हमारे पास वापस नहीं आते हैं.”

चोकू ने कहा कि जब वह टैंपो में 15 किलोमीटर की दूरी तय करके बांसवाड़ा शहर में मजदूरी के लिए जाती है तो वह प्रतिदिन लगभग 200 रुपये कमाती हैं और जब काम नहीं होता तो पैसा भी नहीं होता.

उन्होंने कहा, “मैंने दो साल पहले अपने पति को खो दिया था. किसी ने मुझसे कहा कि मुझे पेंशन मिलेगी। मैं कलेक्टर कार्यालय भी गई और मेरा फॉर्म जमा कर दिया गया लेकिन मुझे पेंशन नहीं मिल रही है.’’

चोकू ने यह भी कहा कि उन्हें पेंशन योजना और खाद्य सामग्री पैकेट वितरण के अलावा सरकार की अन्य योजनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा, “मुझे एक बार मुफ़्त राशन किट मिली है.”

चाचाकोटा के आसपास के एक अन्य गांव पृथ्वी गढ़ में 50 वर्षीय प्रभु अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कई काम करते हैं.

वह सड़क के किनारे एक मेज और कुर्सी लेकर बैठते हैं और कुछ छोटी चीजें जैसे ‘बीड़ी’ या ‘गुटखा’ और कुछ चिप्स बेचते हैं. वह खेती और मछली पकड़ने का काम भी करते हैं.

प्रभु ने भी यही बात दोहराते हुए कहा कि चुनाव के बाद राजनेताओं का दौरा दुर्लभ है. उन्होंने कहा, ‘‘हम विकास के मुद्दे पर वोट करते हैं. हम इस क्षेत्र में उचित सड़कें, हैंडपंप चाहते हैं. मैं मछली पकड़ता हूं, कुछ खेती करता हूं और अपनी छोटी दुकान पर सामान भी बेचता हूं.’’

प्रभु का कहना है कि वह महीने में 12 से 15 हजार रुपये कमा लेते हैं.

कई आदिवासी लोगों को स्वच्छ पेयजल, रोजगार के अवसर और क्षेत्र में विकास कार्यों जैसी कई शिकायतें हैं, जबकि राजनीतिक दल इस बात पर जोर देते हैं कि वे आदिवासी लोगों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के अलावा नवगठित भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) भी आदिवासी क्षेत्र में तेजी से अपना आधार बढ़ा रही है और दावा कर रही है कि वही वो पार्टी है जिसे आदिवासी समुदाय का समर्थन प्राप्त है.

बांसवाड़ा से बीएपी प्रत्याशी हेमंत राणा ने कहा कि भाजपा और कांग्रेस पार्टियों ने आदिवासी लोगों को धोखा दिया है और स्थानीय लोगों के मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया.

राणा ने कहा, “उन्होंने (भाजपा और कांग्रेस ने) केवल राजनीति की और आदिवासी लोगों के कल्याण के बारे में कभी नहीं सोचा. बीएपी वह पार्टी है जिसे आदिवासी समुदाय का समर्थन प्राप्त है. लोगों ने अपने उम्मीदवार तय कर लिए हैं और यह क्षेत्र में पासा पलटने वाला होगा.”

बांसवाड़ा की बागीदौरा सीट से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस नेता और जल संसाधन मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय ने कहा कि वह 40 साल से क्षेत्र में काम कर रहे हैं और आदिवासी कल्याण के काम किये हैं.

उन्होंने कहा, “मैं एक आदिवासी हूं और मैंने आदिवासी कल्याण के लिए काम किया है. कांग्रेस सरकार द्वारा जिले और क्षेत्र में विकास कार्य किये गये हैं.’’

बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ पूर्णतः आदिवासी जिले हैं जबकि उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, सिरोही, पाली आंशिक रूप से आदिवासी क्षेत्र हैं. ये क्षेत्र राज्य के दक्षिण-पूर्व भाग में आते हैं.

रोजगार के अवसरों और विकास की कमी इस क्षेत्र में प्रमुख मुद्दा है.

सरकार ज्यादातर आदिवासियों और गरीबों के लिए अगल-अगल योजनाएं बनाती है. लेकिन कई बार यह योजनाएं जमीनी स्तर पर अच्छे से लागू नहीं हो पाती है. इतना ही नहीं कई लोगों को तो सरकार की इन योजनाओं के बार में जानकारी भी नहीं होती है.

जिसके कारण लोग इन योजनाएं का लाभ जानकारी के अभाव के कारण नहीं उठा पाते हैं.

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