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झारखंड: 4 साल बाद भी पत्थलगड़ी मामले में स्टेन स्वामी समेत अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं पर दर्ज केस लंबित

पुलिस ने लगभग 200 नामज़द लोगों और 10 हज़ार से भी अधिक अज्ञात लोगों पर कई आरोप दर्ज किए. जैसे - भीड़ को उकसाना, सरकारी अफसरों के काम में बाधा डालना, समाज में अशांति फैलाना, आपराधिक भय पैदा करना और देशद्रोह भी शामिल था.

झारखंड में एक बार फिर पत्थलगड़ी मामले में सामाजिक कार्यकर्ताओं पर दर्ज मामलों को अब तक वापस नहीं लेने के मामले पर बहस शुरू हो गई है. झारखंड जनाधिकार महासभा ने कहा है कि हेमंत सोरेन सरकार की घोषणा के चार साल बाद भी स्टेन स्वामी समेत अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं पर पत्थलगड़ी मामले में किया गया केस अभी भी वापिस नहीं लिया गया है.

सूचना के अधिकार के तहत खूंटी के पुलिस अधीक्षक द्वारा हाल में दी गई सूचना के मुताबिक अभी भी खूंटी के पांच पत्थलगड़ी केस वापिस नहीं लिए गए हैं. इनमें से एक स्टेन स्वामी समेत 20 सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों पर दर्ज मामला भी है.

साथ ही वर्तमान सूचना के अधिकार जवाब के मुताबिक हेमंत सोरेन सरकार के कार्यकाल में भी मार्च 2020 में खूंटी में एक और पत्थलगड़ी संबन्धित मामला दर्ज किया गया. खूंटी में पिछली सरकार द्वारा दर्ज कुल 21 मामलों में 16 वापिस हो चुके हैं.

क्या है पूरा मामला

दरअसल, मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद 29 दिसम्बर 2019 को हेमंत सोरेन ने पत्थलगड़ी से संबंधित सभी केस वापस लेने की घोषणा की थी. इस घोषणा की बड़े पैमाने पर प्रशंसा की गई और उसका स्वागत हुआ.

रघुबर दास की भाजपा सरकार ने पत्थलगड़ी आंदोलन के विरुद्ध बड़े पैमाने पर पुलिसिया हिंसा और दमनात्मक कार्रवाई की थी. इस सरकार ने आंदोलन से जुड़े आदिवासियों और अनेक पारंपरिक ग्राम प्रधानों के विरुद्ध कई मामले दर्ज किए थे जो तथ्यों पर आधारित नहीं थे.

पुलिस ने लगभग 200 नामज़द लोगों और 10 हज़ार से भी अधिक अज्ञात लोगों पर कई आरोप दर्ज किए. जैसे – भीड़ को उकसाना, सरकारी अफसरों के काम में बाधा डालना, समाज में अशांति फैलाना, आपराधिक भय पैदा करना और देशद्रोह भी शामिल था.

रघुवर दास सरकार द्वारा राज्य में पत्थलगड़ी संबंधित कुल 28 मामले दर्ज किए गए थे. खूँटी  में 21, सराइकेला-खरसाँवा में 5 और पश्चिमी सिंहभूम में 2 मामले दर्ज किए गए थे.

पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान हुए राजकीय दमन और मानवाधिकार हनन को झारखंड जनाधिकार महासभा लगातार उठती रही है.

हालांकि मामलो की वापसी में कई साल लगे. लेकिन हेमंत सोरेन सरकार की सकारात्मक कार्रवाई के चलते अधिकांश मामले वापिस ले लिए गए हैं. लेकिन दुख की बात यह है कि अभी भी 5 मामले लंबित हैं.

स्टेन स्वामी पर मोदी सरकार द्वारा किए गए अत्याचार पर मुख्यमंत्री सोरेन ने मुखर होकर विरोध किया लेकिन अभी तक उनपर रघुवर दास सरकार द्वारा दर्ज फर्जी मामले को वापस नहीं लिया गया है.

इसके अलावा यह चिंताजनक है कि रघुबर दास सरकार के दौरान पत्थलगड़ी संबंधित राजकीय दमन से पीड़ित ग्रामीणों को अभी तक न्याय नहीं मिला है.

घाघरा गाँव की गर्भवती महिला आश्रिता मुंडू को सुरक्षा कार्रवाई बलों द्वारा पीटा गया था. जिसके कारण उनकी बच्ची विकलांग पैदा हुई. लेकिन अभी तक उन्हें कोई सहायता प्राप्त नहीं हुआ है.

घाघरा में हुई हिंसा के दोषियों को एवं बिरसा मुंडा और अब्राहम सोय जैसे मारे गए आदिवासी के मामले के दोषियों को भी अभी तक चिन्हित कर क़ानून के हवाले नहीं किया गया है.

पत्थलगड़ी आन्दोलन से जुड़े कई लोगों, पारंपरिक ग्राम प्रधान और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे अमित टोपनो, सुखराम मुंडा व रामजी मुंडा की इस दौरान हत्या हो गई थी लेकिन अभी तक स्थानीय पुलिस द्वारा दोषियों को नहीं पकड़ा गया है.

साथ ही पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान उठाए गए गंभीर मुद्दों जैसे आदिवासियों के लिए विशेष कानून व प्रावधानों (पेसा, पाँचवी अनुसूची, भूमि अधिग्रहण कानून, सीएनटी कानून आदि) का व्यापक उल्लंघन, आदिवासी दर्शन को दरकिनार करना, आदिवासियों का प्रशासन, पुलिस व्यवस्था और गैर-आदिवासियों द्वारा शोषण आदि पर राज्य सरकार द्वारा चार सालों में अपेक्षित कार्रवाई नहीं की गई है.

झारखंड सरकार से महासभा की मांगें…

  1. पत्थलगड़ी से सम्बंधित मामलों को बिना किसी देरी से वापस लिया जाए. खूंटी के मानवाधिकार हनन के मामलों में कार्यवाई की जाए और पीड़ितों को मुआवज़ा मिले.
  2. चिरियाबेरा घटना की न्यायिक जांच हो. दोषी CRPF पुलिस और प्रशासनिक कर्मियों पर हिंसा करने के लिए कार्यवाई हो और पीड़ितों को उचित मुआवज़ा दिया जाए.
  3. स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को स्पष्ट निर्देश दें कि वे किसी भी तरह से लोगों, विशेष रूप से आदिवासियों का शोषण न करें.
  4. मानव अधिकारों के उल्लंघन की सभी घटनाओं से सख्ती से निपटा जाए. नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए.
  5. मानवाधिकार हनन के मामलों को सख़्ती से निपटाया जाए. आम जनता को नक्सल-विरोधी अभियान के नाम पर बेमतलब परेशान न किया जाए.
  6. स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाय और समवेदनशील बनाया जाए.
  7. लिंचिंग से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के अनुदेशों को सही मायनो में लागू किया जाए. दोषियों को बचाने वाले पुलिस और अधिकारियों पर कार्यवाही हो, पीड़ितों को मुआवज़ा मिले और लिंचिंग के विरुद्ध कठोर क़ानून बनाया जाए.
  8. निर्जीव पड़े हुए राज्य मानवाधिकार आयोग को पुनर्जीवित किया जाए और यह जनता के लिए सुलभ हो. मानवाधिकार उल्लंघन मामलों के लिए स्वतंत्र शिकायत निवारण तंत्र बनाया जाए.

क्या है पत्थलगड़ी

पत्थलगड़ी का चलन आदिवासियों में सदियों से रहा है. देश के कई आदिवासी बहुल इलाकों में ‘पत्थलगड़ी’ की सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा रही है. आदिवासी गांव और जमीन का सीमांकन के लिए, मृत व्यक्ति की याद में, किसी की शहादत की याद में, खास घटनाओं को याद रखने के लिए पत्थर गाड़ते हैं. वे इसे जमीन की रजिस्ट्री के पेपर से भी ज्यादा अहम मानते हैं.

इसके साथ ही किसी खास निर्णय को सार्वजनिक करना, सामूहिक मान्यताओं को सार्वजनिक करने के लिए भी पत्थलगड़ी किया जाता है. यह मुंडा, संथाल, हो, खड़िया आदिवासियों में सबसे ज्यादा प्रचलित है.

झारखंड में कैसे शुरू हुआ पत्थलगड़ी

अपने जमीनी हक की मांग को बुलंद करते हुए आदिवासियों ने यह आंदोलन शुरू किया था. यह आंदोलन 2017-18 में तब शुरू हुआ, जब बड़े-बड़े पत्थर गांव के बाहर शिलापट्ट की तरह लगा दिए गए.

जैसा कि नाम से स्पष्ट है-पत्थर गाड़ने का सिलसिला शुरू हुआ जो एक आंदोलन के रूप में व्यापक होता चला गया. लिहाजा इसे पत्थलगड़ी आंदोलन का नाम दिया गया.

इस आंदोलन के तहत आदिवासियों ने बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की पांचवी अनुसूची में आदिवासियों के लिए दिए गए अधिकारों को लिखकर उन्हें जगह-जगह जमीन पर लगा दिया. इस दौरान पुलिस और आदिवासियों के बीच जमकर संघर्ष हुआ था

दरअसल, संविधान की पांचवीं अनुसूची में मिले अधिकारों के सिलसिले में झारखंड के खूंटी और पश्चिमी सिंहभूम जिले के कुछ इलाकों में पत्थलगड़ी कर इन क्षेत्रों की पारंपरिक ग्राम सभाओं के सर्वशक्तिशाली होने का ऐलान किया गया था.

कहा गया कि इन इलाकों में ग्राम सभाओं की इजाजत के बगैर किसी बाहरी शख्स का प्रवेश प्रतिबंधित है. इन इलाकों में खनन और दूसरे निर्माण कार्यों के लिए ग्राम सभाओं की इजाजत जरूरी थी. इसी को लेकर कई गांवों में पत्थलगड़ी महोत्सव आयोजित किए गए.

जून 2018 में पूर्व लोकसभा स्पीकर कड़िया मुंडा के गांव चांडडीह और पड़ोस के घाघरा गांव में आदिवासियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़पें हुईं. पुलिस फायरिंग में एक आदिवासी की मौत हो गई.

वहीं पुलिस ने कई जवानों के अपहरण का आरोप लगाया. बाद में जवान सुरक्षित लौटे. इस संबंध में कई थानों में देशद्रोह की एफआईआर दर्ज हुई थी. हालांकि हेमंत सोरेन ने सीएम बनते ही पहली कैबिनेट बैठक में 2017-18 के पत्थलगड़ी आंदोलन में शामिल लोगों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की घोषणा की.

(Credit: PTI file photo)

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