HomeAdivasi Dailyराष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में प्रमुख पद आठ महीने से खाली

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में प्रमुख पद आठ महीने से खाली

जनजातीय मामलों के मंत्रालय में पूर्व केंद्रीय मंत्री, के.सी. देव ने कहा कि आठ महीने लंबी रिक्ति हैरान कर देने वाला है. उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि सरकार समाज के सबसे वंचित वर्गों को कितना महत्व देती है.

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने अपने कार्यकाल की समाप्ति से आठ महीने पहले जून 2023 में इस्तीफा दे दिया था. सूचना के अधिकार (RTI) के जवाब के मुताबिक, नामांकन की कोई सूची नहीं होने के कारण कुर्सी आज भी खाली है.

एनसीएसटी अनुच्छेद 338 के तहत एक संवैधानिक निकाय है. इसमें पांच सदस्य होते हैं – एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य. सभी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है. 24 फरवरी को कार्यवाहक उपाध्यक्ष अनंत नायक का कार्यकाल भी समाप्त हो गया.

उपाध्यक्ष के निजी सचिव प्रसन्ना कुमार परिदा ने पुष्टि की कि एनसीएसटी में तीन अन्य सदस्यों का पद भी खाली है. इसलिए वर्तमान में एनसीएसटी में सभी पांच पद- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य- सभी रिक्त हैं.

एनसीएसटी के तहत गठित एक कार्य समूह के सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “ये पद ऐसे समय में रिक्त हैं जब एनसीएसटी विशेष रूप से सुरक्षात्मक कानूनों, वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 के कार्यान्वयन से संबंधित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार कर रहा है.”

सदस्य ने बताया कि फरवरी 2021 में चौहान के कार्यभार संभालने के तुरंत बाद एनसीएसटी ने एफआरए और पेसा एक्ट के संबंध में महत्वपूर्ण मूल्यांकन शुरू किया. आकलन में गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में दोनों कानूनों के घोर उल्लंघन की ओर इशारा किया गया.

सदस्य ने कहा कि एनसीएसटी उन रिपोर्टों पर काम कर रहा था जिनमें “हानिकारक जानकारी” दिखाई गई थी. साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार अब “अतिरिक्त सावधानी” बरत रही है क्योंकि एक कार्यात्मक एनसीएसटी का मतलब ऐसी सभी सूचनाओं का खुलासा होगा.

वहीं एक न्यूज वेबसाइट ने राष्ट्रपति सचिवालय में एक आरटीआई अनुरोध दायर कर एनसीएसटी अध्यक्ष पद के लिए प्राप्त नामांकनों की सूची मांगी और पूछा कि क्या किसी उम्मीदवार को अंतिम रूप दिया गया है. आवेदन जनजातीय मामलों के मंत्रालय को भेज दिया गया, जिसने 16 फरवरी, 2023 को जवाब दिया, जिसमें कहा गया कि दोनों मामलों में जानकारी “उपलब्ध नहीं है.”

जनजातीय मामलों के मंत्रालय में पूर्व केंद्रीय मंत्री, के.सी. देव ने कहा कि आठ महीने लंबी रिक्ति हैरान कर देने वाला है. उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि सरकार समाज के सबसे वंचित वर्गों को कितना महत्व देती है.

अध्यक्ष की नियुक्ति की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताते हुए, के.सी. देव ने कहा कि यह प्रक्रिया जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा कई समूहों के सुझावों के आधार पर शुरू की गई है. जिनमें राजनीतिक दलों के अलावा जनजातीय अधिकारों के मुद्दों पर नागरिक समाज में काम करने वाले लोग भी शामिल हैं.

फिर मंत्रालय एक उम्मीदवार को अंतिम रूप देगा और अपने निर्णय को अन्य संबंधित मंत्रालयों जैसे – गृह मंत्रालय और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय और फिर अनुमोदन के लिए कैबिनेट को सूचित करेगा. इसके बाद राष्ट्रपति अंतिम मंजूरी देंगे और आधिकारिक नियुक्ति करेंगे.

एनसीएसटी अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है. यह एक अर्ध-न्यायिक निकाय भी है जिसके पास संविधान के तहत अनुसूचित जनजातियों के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों से संबंधित मामलों की जांच करने और शिकायतों की जांच शुरू करने के लिए एक सिविल अदालत की शक्तियां हैं. ऐसा करते समय यह किसी भी व्यक्ति को बुला सकता है और शपथ के तहत उनके बयानों की जांच कर सकता है.

देव ने कहा, “जब पद की स्थिति और रैंक इस प्रकार की है, तो मुझे नहीं पता कि आप इसे खाली रखने को कैसे उचित ठहरा सकते हैं.”

पर्यावरण वकील और वनों के लिए कानूनी पहल के फाउंडर ऋतविक दत्ता ने कहा कि यह एक बड़ी चिंता है कि एनसीएसटी, जो भारत की कम से कम 8 प्रतिशत आबादी से संबंधित मुद्दों से निपटती है, वहां आठ महीने से कोई अध्यक्ष नहीं है. एनसीएसटी अध्यक्ष का पद एक दिन के लिए भी खाली नहीं होना चाहिए.

आरटीआई के तहत मिले दस्तावेजों में दिखाया गया है कि कैसे वन संरक्षण नियमों में संशोधन के लिए चौहान का विरोध और एफआरए के खराब कार्यान्वयन को दर्शाने वाले आयोग के बड़े काम के कारण सरकार और विशेष रूप से पर्यावरण मंत्रालय के साथ टकराव हुआ, जिसके परिणामस्वरूप आखिरकार चौहान को इस्तीफा देना पड़ा.

अगर संक्षेप में बात करें तो संशोधित वन संरक्षण नियमों ने वन निवासियों की पूर्व मंजूरी के बिना वन भूमि को स्थानांतरित करना आसान बना दिया है. चौहान के कार्यकाल के अंदर एनसीएसटी ने देश भर में एफआरए के कार्यान्वयन का आकलन करने का कार्यभार संभाला था.

एनसीएसटी ने ग्रेट निकोबार द्वीप पर 72,000 करोड़ रुपये की मेगा परियोजना के कारण आदिवासी समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव का आकलन करने के लिए अप्रैल 2023 में एक जांच भी शुरू की थी.

मई 2023 में अंडमान और निकोबार प्रशासन को एक फॉलो-अप लेटर में एनसीएसटी ने फॉर्मर ब्यूरोक्रेट ईएएस शर्मा के एक पत्र पर भी कार्रवाई की, जिसमें कहा गया था कि एनसीएसटी के पूर्व परामर्श के बिना केंद्र सरकार द्वारा ग्रेट निकोबार द्वीप पर शुरू की गई मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट आदिवासी समुदायों के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों का उल्लंघन करेगी.

एनसीएसटी ने मामले की जांच में अंडमान और निकोबार प्रशासन से जवाब मांगा.

के.सी. देव ने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में आदिवासी अधिकारों को धीरे-धीरे खत्म कर दिया गया है. वन संरक्षण नियमों में ढील दी गई है (एक तरह से जो वन अधिकार अधिनियम को कमजोर करता है) और वन अधिकार अधिनियम कोमा की स्थिति में है. इसलिए एनसीएसटी में मौजूदा रिक्तियां इस तरह के क्षरण का प्रतिबिंब हैं.”

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