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मोदी की गारंटी के बावजूद नहीं मिला एसटी का दर्जा, असम में आंदोलन तेज़

2014 और 2016 के चुनाव में प्राधनमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य के छ: आदिवासी समुदाय को आदिवासी दर्जा देने का वादा किया था. लेकिन 10 साल बाद भी यह वादा अधूरा है.

मंगलवार को असम(Tribes of Assam) के डिब्रूगढ़ ज़िले (Dibrugarh District) में आदिवासी छात्राओं के समूह, आसा संगठन [Association of Assam(Aasaa)] ने आदिवासी दर्जे (ST Status) की मांग के समर्थन में प्रदर्शन किया.

इन प्रदर्शनकारियों की मांग है की राज्य के 60 लाख आदिवासियों को एसटी लिस्ट (Schedule tribe List) में शामिल किया जाए. इन 60 लाख आदिवासी में विशेषकर ट्री ट्राइब शामिल है.

उनकी यह शिकायत है की बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश, ओडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल के आदिवासियों को एसटी लिस्ट में शामिल किया जा रहा है. लेकिन असम की टी ट्राइब को पिछड़े वर्ग (OBC Category) में रखा गया है.

असम के बारे में यहा दावा किया जाता है कि राज्य में ट्री ट्राइब  की जनसंख्या लगभग 60 लाख है.

टी ट्राइब नाम से पुकारे जाने वाले आदिवासी समुदाय के लोग अनुसूचित जनजाति को परिभाषित करने वाली सभी शर्तों को पूरा करते हैं.   

इसके बावजूद राज्य के आदिवासी एसटी दर्जे के लिए कई सालों से संघंर्ष कर रहे हैं.

असम में टी ट्राइब के 35 उप-समुदाय रहते है. जिनमें संथाल, मुंडा, गोंड, सौर, भील इत्यादि शामिल हैं.

साल 2014 में बीजेपी ने ताई अहोम, मोरान, सौटी, कोच राजबोंगशी इत्यादि को आदिवासी दर्जा देने की का वादा किया था. लेकिन 10 साल पहले किया गया वादा अब तक पूरा नहीं किया गया है.

असम में जिन आदिवासी समुदायों को टी ट्राइब या एक्स टी ट्राइब कहा जाता है उनमें से ज़्यादातर समुदायों को कई राज्यों में अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किया गया है.

लेकिन असम में यह काम अभी तक नहीं हो पाया है. 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर उसके बाद राज्य की विधान सभा के चुनाव में भी बीजेपी ने यह वादा किया था कि इन आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दे दिया जाएगा.

फ़िलहाल असम और केंद्र में बीजेपी की ही सरकार है. इसके बावजूद यह वादा पूरा करना बीजेपी की बस की बात नहीं है.

इसका कारण है कि बोडो और कई अन्य जनजातीय संगठन इन आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के खिलाफ़ हैं.

उन्हें डर है कि टी ट्राइब को एसटी लिस्ट में शामिल करने से असम के मूल निवासी माने जाने वाले जनजातीय समुदायों को मिलने वाली सुविधाएं और आरक्षण कम हो सकता है.

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