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मावली मेला में पहली रात को देवी देवताओं का आह्वान और नाच-गाना शुरु

अबूझमाड़ के इस आदिवासी मेले में आकर आप उनकी धार्मिक आस्थाओं के साथ साथ उनकी सांस्कृतिक विविधता और विशेषता दोनों को ही समझ सकते हैं.

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में लोक संस्कृति और देव मान्यता परंपरा की प्रतीक मावली मेले की शुरुआत हो चुकी है. बुधवार यानि 6 मार्च को यहां पर बड़ी संख्या में लोग इस मेले में भाग लेने के लिए पहुंच चुके हैं.

अबूझमाड़ विकासखंड में विशेष संरक्षित माड़िया जनजाति निवास करती है. नारायणपुर का मावली मेला बस्तर के आदिवासियों का सबसे बड़ा मेला है. यहां बस्तर संभाग के सभी क्षेत्रों का आदिवासी समाज जुटता है. आदिवासियों के विभिन्न समुदायों की संस्कृति का यह मेला समागम स्थल है. 

वहीं नारायणपुर में बहुसंख्यक मूरिया जनजाति निवास करती है.  नारायणपुर जिला में हलबा जनजाति भी रहती है. अबूझमाड़ का यह मेला आदिवासी समाज की आस्था पर्व है.

मावली मेले के दिन जिला प्रशासन ने स्थानीय अवकाश घोषित किया है. नारायणपुर का मावली मेला क्षेत्र का सबसे बड़ा लोक उत्सव है. यह एक सामूहिक आयोजन है, जिसमें सामाजिक संस्था, प्रशासन देव समिति सभी अपनी अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं.

मावली मेले में देव विग्रहों के प्रतीक स्वरूप डंगई, लाठ, डोली, छत्र की पारंपरिक पूजा अर्चना की जाती है. यह मेला आदिवासी संस्कृति को करीब से महसूस करने अवसर भी होता है. यहां पर रात भर आदिवासी स्त्री पुरुष नाचते गाते हैं. एक दूसरे की कमर में हाथ डाल कर नाचते ये आदिवासी इस समाज में सुख-दुख में साथ खड़े रहने का प्रतीक है.

नारायणपुर का मावली मेला अपनी संस्कृतियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यह माना जाता है कि मावली मेला 800 वर्ष पुराना है.यह मेला मावली परघाव की रस्म के चलते अपनी एक अलग ही पहचान रखता है. 

इस मेले में यहां की संस्कृति को देखने के लिए देश विदेश के साथ महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ के कई जिलो के लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं. 

मावली मेले में आने वालों का यहां आदिवासी संस्कृति देख कर भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता में विश्वास और गहरा होता जाता है. यहां पर जब लोग नाचते गाते हैं तो उम्र, जाति या लिंग का भेद ख़त्म हो जाता है.

अबूझमाड़ का मावली मेला बेशक यहां के आदिवासियों का एक धार्मिक आयोजन है. लेकिन इस आयोजन में माडिया, मुरिया और हल्बा जैसे आदिवासी समुदायों की संस्कृति को समझने का मौका भी देता है. यहां पर कई भाषाओं-बोलियों में बात करने वाले आदिवासी आते हैं.

इस मेले में आकर यहां के आदिवासियों की वेशभूषा को भी समझा जा सकता है.

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