मध्य प्रेदश का डिंडोरी एक आदिवासी बहुल ज़िला है. यहां पर गोंड और बैगा आदिवासी रहते हैं. बैगा आदिवासियों को पहले आदिम जनजाति यानि Primitive Tribe कहा जाता था. अब इन्हें विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति या PVTG कहा जाता है.
कुल मिला कर यह वो Tribal Group है जो Education, Health जैसे पैरामीटर पर पिछड़ा हुआ है. इनकी घटती जनसंख्या भी चिंता का कारण बताया जाता है.
सरकार और कई संस्थाएं इन आदिवासियों की संस्कृति पर मंडराते ख़तरे से भी परेशान हैं. बैगा आदिवासी संस्कृति को बचाने और बढ़ाने के लिए सरकार भी प्रयास कर रही है और कई समाजिक संगठन भी ऐसा दावा करते हैं. बैगा आदिवासी या किसी भी आदिवासी समुदाय की संस्कृति को बचाने के इन प्रयासों की तारीफ़ बनती है.
लेकिन सरकारी या ग़ैर सरकार प्रयासों से ना तो कोई संस्कृति बची है और ना ही बच सकती है, हां सरकार या संस्थाएं या फिर मीडिया संस्कृति को बचाने में सहयोग कर सकते हैं. संस्कृति को अगर कोई बचा सकता है तो खुद आदिवासी, उनके नायक.
आज ऐसे ही एक नायक से हम आपको मिलाने के लिए डिंडोरी ज़िले के जंगल में लिए जा रहे हैं. इनका नाम है अर्जुन सिंह धुर्वे….अर्जुन सिंह धुर्वे को बैगा आदिवासी समुदाय की संस्कृति को बचाने और बढ़ाने के लिए पद्मश्री सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है…..डिंडोरी गांव के एक छोटे से गांव धुरकुटा में जन्म लेने वाले अर्जुन सिंह धुर्वे आज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बैगा संस्कृति को ले जा चुके हैं.
अर्जुन सिंह धुर्वे ने बताया कि जब वे एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने दिल्ली आए तो उनकी मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से हुई थी. जब राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह धुर्वे से उनके बारे में पूछा तो उनहोंने कह दिया कि उनके गांव धुरकुटा में अभी तक बिजली नहीं पहुंची है.
इस पर राजीव गांधी ने तुरंत राज्य के मुख्यमंत्री विद्याचरण शुक्ल को आदेश दिया और अर्जुन सिंह के गांव लौटने से पहले ही गांव में बिजली के खंभे लग चुके थे.
यह पूरी बातचीत आप जोहार ज़िंदगी के इस ताज़ा ऐपिसोड में देख सकते हैं.