मणिपुर में कुकी जनजातियों के सदस्यों ने सोमवार को आरोप लगाया कि चुराचांदपुर में 100 से अधिक राहत शिविरों में रहने वाले आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए आपूर्ति किया जाने वाला राशन 15 फरवरी से रोक दिया गया है, जब ताजा हिंसा भड़क उठी थी.
इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) ने गृह मंत्री अमित शाह को सौंपे एक ज्ञापन में कहा, “डिप्टी कमिश्नर ने पिछले दो हफ्तों से राशन जारी करने से इनकार कर दिया है, जिससे 17 हज़ार से अधिक विस्थापित लोगों के सामने भुखमरी का ख़तरा पैदा हो गया है. यह भेदभाव का दूसरा रूप है, जिसके तहत डीसी उन लोगों को भूखा मारने की धमकी देकर दंडित कर रहा है जो पहले ही अपना घर खो चुके हैं.”
एक न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, चुराचांदपुर में राहत शिविरों में रहने वाले हजारों लोगों ने एक प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन में मीडिया को खाली कटोरे दिखाते हुए आरोप लगाया है कि 15 फरवरी की घटना के बाद केंद्र द्वारा आपूर्ति किया गया राशन उन तक पहुंचना बंद हो गया है.
कुछ राहत शिविरों में प्रदर्शनकारियों ने तख्तियां ले रखी थीं जिन पर लिखा था, ‘भोजन देने से इनकार करना हिंसा का सबसे खराब रूप है.’
सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया कि उसने राहत सामग्री जारी करने में देरी की थी और सहायता आपूर्ति में व्यवधान के लिए कुकी-ज़ो समूह इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) सहित चुराचांदपुर में प्रदर्शनकारियों की भूमिका की ओर इशारा किया.
सरकार ने शनिवार (24 फरवरी) को जारी बयान में कहा, ‘गृह मंत्रालय की सहायता से विस्थापित लोगों के लिए कई कल्याणकारी उपाय शुरू किए गए हैं और सरकार तब तक ऐसा करना जारी रखने का आश्वासन देती है, जब तक कि सभी विस्थापित लोगों का पर्याप्त पुनर्वास नहीं हो जाता.’
इसमें कहा गया है कि आईटीएलएफ द्वारा उपायुक्त और एसपी को चुराचांदपुर छोड़ने की धमकी से न केवल दोनों अधिकारियों, बल्कि राज्य में (हिंसा) विस्थापित लोगों के कल्याण के लिए अथक प्रयास करने वाली टीमों को भी ‘मानसिक पीड़ा’ हुई है.
आईटीएलएफ ने चुराचांदपुर के डीसी और एसपी को 15 फरवरी को एक विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस गोलीबारी में दो लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए जिला छोड़ने के लिए कहा था.
दरअसल, कुकी समुदाय से आने वाले हेड कॉन्स्टेबल के निलंबन को वापस लेने की मांग को लेकर बीते 15 फरवरी देर रात हिंसा भड़क उठी थी. भीड़ ने देर रात पुलिस अधीक्षक (एसपी) और उपायुक्त (डीसी) कार्यालयों पर धावा बोल दिया था. इस दौरान सुरक्षा बलों की गोलीबारी में कम से कम दो लोगों की मौत और 2 दर्जन से अधिक घायल हो गए थे. मृतक कुकी-ज़ो जनजाति से थे.
आईटीएलएफ ने डीसी और एसपी के चुराचांदपुर नहीं छोड़ने पर सभी सरकारी कार्यालयों को बंद करने की भी धमकी दी थी. लेकिन बाद में यह फरमान वापस ले लिया गया.
सोमवार को आईटीएलएफ ने चुराचांदपुर में इंटरनेट सेवाओं के निलंबन को पांच दिनों के लिए बढ़ाने में भी शाह से हस्तक्षेप की मांग की.
आईटीएलएफ ने कहा कि 15 फरवरी के बाद हिंसा की कोई अन्य घटना नहीं होने के बावजूद मणिपुर सरकार ने प्रतिबंध बढ़ा दिया. इसने फैसले को “मैतेई-नियंत्रित सरकार” द्वारा भेदभावपूर्ण बताया, जबकि चुराचांदपुर जिले में व्यापार और अन्य गतिविधियां सामान्य थीं.
इसमें कहा गया है कि सरकार ने इंफाल घाटी में ऐसा कोई कदम नहीं उठाया, जहां 13 फरवरी के बाद से हिंसा की कई घटनाएं हुईं. समूह ने 13 फरवरी को मेइतेई-प्रभुत्व वाले इंफाल पूर्व में एक आईआर बटालियन से हथियारों की लूट, एक बम विस्फोट और 23 फरवरी को इंफाल पश्चिम में कार्यालयों को जलाने का उल्लेख किया.
मैतेई समुदाय ने सौंपा ज्ञापन
वहीं मैतेई समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली मणिपुर इंटीग्रिटी पर समन्वय समिति (COCOMI) ने सोमवार को पीएम मोदी को एक ज्ञापन सौंपा. जिसमें कुकी विद्रोही समूहों के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन समझौते को रद्द करने की अपनी मांग दोहराई. इसमें आरोप लगाया गया कि समूहों ने समझौते के जमीनी नियमों का उल्लंघन किया है.
युद्धविराम समझौते की अवधि 29 फरवरी को समाप्त हो रही है और कुकी समूह इसके विस्तार का इंतजार कर रहे हैं.
हिंसा की शुरुआत
मणिपुर में भूमि, संसाधनों, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सकारात्मक कार्रवाई नीतियों पर असहमति को लेकर जातीय हिंसा नौ महीने से जारी है.
3 मई 2023 को मणिपुर में मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद से अब तक 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए हैं और 60 हज़ार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.
पिछले साल 3 मई को बहुसंख्यक मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बीच दोनों समुदायों के बीच यह हिंसा भड़की थी.
मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.