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मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुप्पी ‘मास्टर स्ट्रोक’ तो नहीं है

वहीं प्रधानमंत्री की ‘‘चुप्पी’’ की आलोचना करते हुए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मणिपुर में शांति की अपील ‘‘45 दिनों के बाद’’ जारी करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर निशाना साधा और पूछा कि क्या प्रधानमंत्री ने उस संगठन के जरिये अपील की है, जिसने ‘‘उन्हें तराशा’’ है.

मणिपुर के कुछ निवासियों ने रविवार को प्रधानमंत्री के रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ का बहिष्कार किया और राज्य में जारी हिंसा पर नरेंद्र मोदी की चुप्पी के विरोध में बाजारों में ट्रांजिस्टर सेटों को सड़कों पर पटक कर तोड़ दिया.

राज्य में हिंसा 3 मई से जारी है. जिसमें अब तक कम से कम 110 लोगों की जान चली गई है और 60 हज़ार लोग विस्थापित हुए हैं.

कार्यक्रम के 102वें एपिसोड के प्रसारण के दौरान इंफाल पश्चिम जिले के सिंगामेई बाजार और केकचिंग जिले के केकचिंग बाजार में रेडियो विरोध प्रदर्शन किया गया.

पीएम मोदी ने रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रम मन की बात में आपातकाल का जिक्र किया और कहा कि भारत लोकतंत्र की जननी है लेकिन मणिपुर संकट का कोई जिक्र नहीं किया.

सिंगामेई में एनएच2 के दोनों किनारों पर महिलाओं ने कतार में खड़े होकर पीएम मोदी और सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के खिलाफ नारे लगाए. उन्होंने पोस्टर प्रदर्शित किए जिन पर लिखा था – “मैं मन की बात का विरोध करता हूँ”; “शर्म करो मोदी जी. मन की बात में मणिपुर का एक भी शब्द नहीं”; “नो टू मन की बात, यस टू मणिपुर की बात” और “मिस्टर पीएम मोदी, नो मोर ड्रामा एट मन की बात.”

मणिपुर में लोगों की नाराज़गी को समझा जा सकता है. क्योंकि राज्य में करीब 49 दिनों से हिंसा चल रही है. लेकिन अभी तक प्रधानमंत्री ने इस हिंसा पर कोई बयान नहीं दिया है.

कांग्रेस ने पीएम मोदी पर साधा निशाना

लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी ‘मन की बात’ में मणिपुर संकट पर नहीं बोलने के लिए प्रधानमंत्री की आलोचना की और पूछा कि वह पूर्वोत्तर राज्य में जारी ‘‘अंतहीन हिंसा’’ के बारे में कब कुछ कहेंगे या करेंगे.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि पीएम को मन की बात में पहले मणिपुर की बात करनी चाहिए थी. कांग्रेस अध्यक्ष ने ट्वीट करते हुए लिखा, “नरेंद्र मोदी जी, आपके ‘𝐌𝐚𝐧𝐧 𝐊𝐢 𝐁𝐚𝐚𝐭’ में पहले ‘𝐌𝐚𝐧𝐢𝐩𝐮𝐫 𝐊𝐢 𝐁𝐚𝐚𝐭’ होनी चाहिए थी, लेकिन नहीं हुई. सीमावर्ती राज्य में स्थिति अनिश्चित और अत्यधिक परेशान करने वाली है.”

उन्होंने आगे कहा कि आपने एक शब्द नहीं बोला. आपने एक भी बैठक की अध्यक्षता नहीं की है. आप अभी तक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से नहीं मिले हैं. ऐसा लगता है कि आपकी सरकार मणिपुर को भारत का हिस्सा नहीं मानती है. यह अस्वीकार्य है. आपकी सरकार सोई हुई है. राजधर्म का पालन करें. शांति भंग करने वाले सभी तत्वों पर सख्ती से कार्रवाई करें. नागरिकों को विश्वास में लेकर सामान्य स्थिति बहाल करें. सभी पार्टियों के प्रतिनिधित्वों को मणिपुर जाना चाहिए.

वहीं प्रधानमंत्री की ‘‘चुप्पी’’ की आलोचना करते हुए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मणिपुर में शांति की अपील ‘‘45 दिनों के बाद’’ जारी करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर निशाना साधा और पूछा कि क्या प्रधानमंत्री ने उस संगठन के जरिये अपील की है, जिसने ‘‘उन्हें तराशा’’ है.

पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘‘तो एक और ‘मन की बात’ लेकिन ‘मणिपुर पर मौन’. आपदा प्रबंधन में भारत की जबरदस्त क्षमताओं के लिए प्रधानमंत्री ने खुद की पीठ थपथपाई. पूरी तरह से मानव निर्मित उस मानवीय आपदा का क्या, जिसका सामना मणिपुर कर रहा है.’’

जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘‘अभी भी उनकी (प्रधानमंत्री) ओर से शांति की अपील नहीं की गई है. एक गैर-लेखापरीक्षा योग्य ‘पीएम-केयर फंड’ है लेकिन क्या प्रधानमंत्री को मणिपुर की भी परवाह है, यही असली सवाल है.’’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने भी प्रधानमंत्री पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वह इतने ‘‘व्यस्त’’ हैं कि मणिपुर जाने के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं.

चिदंबरम ने ट्वीट किया, ‘‘मेरे पास एक व्यावहारिक सुझाव है – प्रधानमंत्री का विशेष विमान वाशिंगटन के रास्ते में इंफाल में एक अनिर्धारित पड़ाव ले सकता है, जिससे माननीय प्रधानमंत्री को मणिपुर का ‘दौरा’ करने का मौका मिल सके. इस तरह वह अपने सभी विरोधियों को प्रभावी रूप से चुप करा सकते हैं.’’

जयराम रमेश ने कहा कि आरएसएस ने 45 दिनों की ‘‘अंतहीन हिंसा’’ के बाद आखिरकार मणिपुर में शांति और सद्भाव की सार्वजनिक अपील जारी की है.

कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया, ‘‘आरएसएस का जाना-पहचाना दोहरा चरित्र पूरी तरह से सामने आ गया है क्योंकि इसकी विभाजनकारी विचारधारा और ध्रुवीकरण की गतिविधियां विविधता युक्त पूर्वोत्तर की प्रकृति को बदल रही हैं, मणिपुर जिसका एक दुखद उदाहरण है.’’

मोदी पर निशाना साधते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘लेकिन इसके चर्चित पूर्व प्रचारक का क्या, जो अब केंद्र और राज्य में प्रशासनिक तंत्र को नियंत्रित करते हैं?’’

वहीं आरएसएस ने मणिपुर में जारी हिंसा की रविवार को निंदा की और स्थानीय प्रशासन, पुलिस, सुरक्षा बलों तथा केंद्रीय एजेंसियों सहित सरकार से तत्काल शांति बहाल करने के लिए हरसंभव कदम उठाने की अपील की.

एक बयान में आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने सरकार से पूर्वोत्तर राज्य में ‘‘शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए आवश्यक कार्रवाई’’ के साथ-साथ हिंसा के कारण विस्थापित हुए लोगों को राहत सामग्री की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने का भी आग्रह किया.

आरएसएस ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में घृणा और हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है. बयान में कहा गया कि दोनों पक्षों को विश्वास की कमी को दूर करना चाहिए, जो वर्तमान संकट का कारण है और शांति बहाल करने के लिए बातचीत शुरू करनी चाहिए.

कांग्रेस के नेतृत्व में मणिपुर के 10 विपक्षी दलों ने शनिवार को पूर्वोत्तर राज्य में जारी हिंसा पर प्रधानमंत्री मोदी की ‘‘चुप्पी’’ को लेकर सवाल उठाया था और प्रधानमंत्री से मुलाकात का समय देने तथा शांति की अपील करने का आग्रह किया था.

प्रधानमंत्री की चुप्पी मास्टर स्ट्रोक तो नहीं है

मणिपुर पर प्रधानमंत्री बेशक चुप हैं लेकिन जब भी विपक्ष प्रधानमंत्री से सवाल करता है तो उनके प्रवक्ता विपक्ष पर टूट पड़ते हैं. बीजेपी के ट्रेंड प्रवक्ता पिछले 70 साल में मणिपुर में हुई हिंसा और उसमें मारे गए लोगों की संख्या के आंकड़े ले कर आ जाते हैं.

लेकिन इस पूरी बहस में मेरे ज़हन में एक तस्वीर उभरती है. यह तस्वीर उस समय की है जब मणिपुर में धीरे धीरे शांति आ गई है. मैं लोकसभा की प्रेस गैलेरी में बैठा हूं प्रधानमंत्री बोलने के लिए खड़े होते हैं, और विपक्ष की तरफ़ देखते हुए कहते हैं…अध्यक्ष जी, कुछ लोग मणिपुर पर मेरी चुप्पी पर सवाल कर रहे थे. लेकिन उस समय मैं मणिपुर से हिंसा को सदा सदा के लिए मिटा देने का प्लान बना रहा था.

उनकी इस बात पर उनकी पार्टी के लोग मेज़ थपथपाते हैं, और विपक्ष का शोर उस थपथपाहट की आवाज़ में दब जाता है. मीडिया शाम के प्राइम टाइम डिबेट में मोदी के मास्टर स्ट्रोक की चर्चा करता है…और देश भूल जाता है कि मणिपुर में 100 ज़्यादा लोग मारे गए, हज़ारों बच्चों का स्कूल छूट गया और सबसे बड़ी बात दो मणिपुर के दो समुदायों के बीच हमेशा के लिए अविश्वास की एक बड़ी खाई खुद गई है.

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