मिज़ोरम (Mizoram) में 7 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने वाले 174 उम्मीदवारों में से 16 महिलाएं हैं. यहां 40 सीटों पर प्रत्याशी अपना भाग्य आजमाएंगे. इस बीच चर्चा का विषय है कि क्या मिज़ोरम इस बार विधानसभा चुनाव में अपना बेहद शर्मनाक रिकॉर्ड तोड़ पाएगा. क्या इस बार कोई महिला विधायक चुनी जाएगी या फिर संख्या शून्य ही रहेगी.
दरअसल, मिज़ोरम विधानसभा में 1987 के बाद से एक भी महिला विधायक नहीं चुनी गई है. इसके बाद 2014 में वनलालावम्पुई चावंगथु (Vanlalawmpuii Chawngthu) ने ह्रांगतुर्ज़ो (Hrangturzo) सीट से उपचुनाव जीता और मंत्री बनीं.
वहीं मिज़ोरम ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 18 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था लेकिन एक भी महिला चुनाव जीतकर विधायक नहीं बन पाई थी.
मिजोरम में प्रति 1,000 पुरुषों पर 975 महिलाएं हैं. इसके बावजूद लोकसभा में शून्य सांसद भेजने और सबसे कम महिला विधायक होने का रिकॉर्ड इस राज्य के नाम है.
मिज़ोरम में इस रिकॉर्ड का कारण पितृसत्तात्मक समाज है. यहां महिलाओं को राजनीतिक सत्ता संभालने के लिए लायक नहीं माना जाता है. मिज़ोरम में लगभग 36 सालों में मंत्रिमंडल में केवल दो महिलाएं थीं.
राज्य के मंत्रिमंडल में पहली बार 1987 में लालहलिम्पुई हमार शामिल हुई थीं. फिर 27 साल बाद वनलालावम्पुई चावंगथु ने 2014 में उपचुनाव जीता और उन्हें कांग्रेस सरकार में रेशम उत्पादन, मत्स्य पालन और सहकारी विभाग मिला.
मिज़ोरम में पहला विधानसभा चुनाव 1972 में हुआ था. उस समय चार महिलाओं ने नामांकन दाखिल किया था लेकिन वे सभी चुनाव हार गईं. यहां तक कि उनकी जमानत भी जब्त हो गई थी.
मिज़ोरम की पहली महिला विधायक
मिज़ोरम को पहली महिला विधायक तब मिली जब 1978 में दूसरा विधानसभा चुनाव हुआ. एल थानमावी मिजोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के टिकट पर सेरछिप क्षेत्र से चुनाव जीत गईं. तब उनकी उम्र लगभग 34 साल थी. वह पार्टी का पहला चुनाव था.
थनमावी ने चार लोगों के खिलाफ चुनाव लड़ा और मामूली अंतर से अपने पक्ष में 1,824 वोट हासिल कर चुनाव जीता. उस साल थानमावी अकेली महिला उम्मीदवार थीं. इसके 8 साल बाद मिजोरम को पहली महिला मंत्री मिलीं.
चुनाव आयोग के मुताबिक, केंद्र शासित प्रदेश मिजोरम में आखिरी चुनाव 1984 में हुआ था. जिसमें किसी भी महिला ने चुनाव नहीं लड़ा था. इसके बाद 1986 में मिजोरम को राज्य का दर्जा दिया गया था. राज्य में 1987 में 40 निर्वाचन क्षेत्रों के साथ राज्य के रूप में अपना पहला विधानसभा चुनाव हुआ था.
मिज़ोरम में 1989 और 1993 के बाद के चुनावों में महिलाओं की भागीदारी का रिकॉर्ड खराब ही रहा. जिसमें 89 में 4और 93 में 3 महिलाओं ने भाग लिया. ये महिलाएं चुनाव हार गईं. कई तो अपनी जमानत भी दर्ज नहीं करा पाईं.
1998 में मिज़ोरम चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी. इस बार 10 महिलाओं ने नामांकन दाखिल किया मगर सभी चुनाव हार गईं. 2003 में 7 महिलाओं ने नामांकन दाखिल किया और सभी हार गईं.
2008 के विधानसभा चुनावों में भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ. इस बार 9 महिलाएं मैदान में उतरी लेकिन उनमें से कोई भी जीत नहीं सकी.
यह सिलसिला 2013 में भी जारी रहा. इस बार 6 महिलाओं में से किसी को भी सीट नहीं मिली. इतना ही नहीं उनमे से 4 की जमानत जब्त हो गई. इसके बाद 2014 के उपचुनाव में वनलालावम्पुई चावंगथु विजेता बनकर उभरीं और 3 साल बाद मंत्री बनीं. हालांकि वह 2018 के चुनाव में ह्रांगतुर्ज़ो सीट से हार गईं.
क्या कहते हैं रिकॉर्ड
इस बार चुनावी मैदान में महिला उम्मीदवारों में से तीन भाजपा से हैं और दो-दो मिज़ो नेशनल फ्रंट (MNF), ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) और कांग्रेस से हैं. बाकी सभी निर्दलीय हैं.
इन महिला उम्मीदवारों में से केवल कांग्रेस उम्मीदवार वनलालावम्पुई चावंगथु पहले विधायक रह चुकी हैं. इस चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें आइजोल-II सीट से मैदान में उतारा है.
चावंगथु ने 2014 के उपचुनाव में ह्रांगतुर्ज़ो सीट जीती और 1987 के राज्य चुनावों के बाद राज्य की पहली महिला विधायक बनीं. बाद में उन्हें तत्कालीन कांग्रेस मंत्रालय में शामिल किया गया और रेशम उत्पादन, मत्स्य पालन और सहयोग विभाग आवंटित किए गए.
हालांकि, चावंगथु 2018 का चुनाव हार गईं थीं. वो तब कांग्रेस द्वारा मैदान में उतारी गई एकमात्र महिला उम्मीदवार थीं. एमएनएफ, जिसने सरकार बनाई थी, उसने 2018 चुनाव में एक भी महिला उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा था. 2018 में चुनाव लड़ने वाली 16 महिलाओं में से दो को छोड़कर सभी को अपनी जमानत जब्त करनी पड़ी थी.
वहीं 2013 के विधानसभा चुनाव में केवल आठ महिलाएं मैदान में थीं लेकिन एक भी महिला चुनाव नहीं जीत सकीं. हालांकि, राज्य में महिला मतदाताओं की संख्या अधिक है, जो पुरुष मतदाताओं की तुलना में अधिक मतदान प्रतिशत दर्ज करती हैं.
वर्तमान में मिज़ोरम में 4 लाख 38 हज़ार 925 महिला मतदाता और 4 लाख 12 हज़ार 969 पुरुष मतदाता हैं. 2013 में 82.12 फीसदी महिलाओं ने 79.5 फीसदी पुरुषों के मुकाबले मतदान किया था. 2018 में 81.09 फीसदी महिलाओं ने वोट किया, जबकि 78.92 फीसदी पुरुष वोटर्स थे.
चुनौतियाँ
लुंगलेई पश्चिम (Lunglei West) से भाजपा की उम्मीदवार आर बियाकट्लुआंगी (R Biaktluangi) का कहना है कि वह इस निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतरने वाली पहली महिला उम्मीदवार हैं.
राज्य सरकार के एक विभाग में 42 वर्षों तक काम करने वाले 65 वर्षीय बियाकट्लुआंगी कहती हैं कि मुझे लगता है कि मैं मजबूत स्थिति में हूं. यहां के लोगों के लिए यह पहली बार है कि एक महिला उम्मीदवार है.
32 वर्षीय बेरिल वन्नेइहसांगी (Baryl Vanneihsangi), जो वर्तमान में आइजोल मिजोरम काउंसिल में पार्षद हैं. उनको जेडपीएम ने आइजोल दक्षिण-III सीट से मैदान में उतारा है. उनका कहना है कि अपने अभियान के जरिए महिला विधायकों के बारे में धारणा बदलना उनके लिए बेहद अहम है.
वन्नेइहसांगी ने कहा, “हम लोगों के बीच लड़ रहे हैं. मैं इसे एक चुनौती के रूप में लेती हूं, नुकसान के रूप में नहीं. हमारा जन्म और पालन-पोषण पितृसत्तात्मक समाज में हुआ है और इस मामले में ये सामाजिक कलंक रहा है. लोग सोचते हैं कि उन पर एक महिला विधायक कैसे शासन कर सकती है. लेकिन हम आदेश नहीं देंगे. हम उनके लिए काम करेंगे और अनसुने लोगों की आवाज उठाएंगे. अगर निर्वाचित हुई तो मैं पूरे समाज का प्रतिनिधित्व करूंगी.”
वहीं कांग्रेस की दो महिला उम्मीदवारों में से एक, मरियम ह्रांगचल (Meriam Hrangchal), जो लुंगलेई दक्षिण से चुनाव लड़ रही हैं. पहले से ही राज्य के शीर्ष छात्र संगठन मिज़ो ज़िरलाई पावल (Mizo Zirlai Pawl) की तरफ से विरोध का सामना कर रही हैं. क्योंकि उन्होंने एक गैर-मिज़ों से शादी की है.
दरअसल, कांग्रेस ने मरियम को मिज़ो ज़िरलाई पावल के इस फरमान कि किसी भी राजनीतिक दल को गैर-मिज़ो से शादी करने वाली मिज़ो महिलाओं को टिकट नहीं देना चाहिए, को दरकिनार करते हुए मैदान में उतारा है.
अब सवाल यह है कि क्या मिज़ोरम विधानसभा चुनाव 2023 में राज्य को 5वीं महिला विधायक और तीसरी महिला मंत्री मिलेगी? हालांकि, इसका जवाब तो 3 दिसंबर को ही मिलेगा, जब चुनाव के नतीजे आएंगे.