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छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के आदिवासियों को सस्ता राशन (PDS) सम्मान के साथ जीने में मददगार

रिपोर्ट से पता चला कि मध्य प्रदेश में आदिवासी परिवारों की औसत वार्षिक आय 73,900 रुपये और छत्तीसगढ़ में 53,610 रुपये थी. जो कृषि वर्ष 2018-19 के दौरान प्रति कृषि परिवार की राष्ट्रीय औसत वार्षिक आय 122,610 रुपये से काफी कम है.

भारत के मध्य में स्थित दो राज्य – मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, महत्वपूर्ण आदिवासी आबादी का घर हैं. इन दोनों राज्यों के आदिवासी अपनी आय राष्ट्रीय औसत से बहुत कम होने के बावजूद सम्मान के साथ जीने में सक्षम हैं और इसकी वजह है, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System) जैसे सरकारी हस्तक्षेप.

11 जनवरी, 2024 को एक वेबिनार में गैर-लाभकारी संस्था PRADAN द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट, आदिवासी आजीविका रिपोर्ट 2022 के मुताबिक, पीडीएस के माध्यम से खाद्य सब्सिडी ने आदिवासी परिवारों को कम आय के कारण होने वाले तनाव को कम कर दिया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य प्रदेश में 51 प्रतिशत आदिवासी, 63 प्रतिशत गैर-आदिवासी और 50 प्रतिशत विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) गांवों में पीडीएस दुकानें हैं. वहीं छत्तीसगढ़ में यह आंकड़ा 63 फीसदी आदिवासी, 88 फीसदी गैर-आदिवासी और 36 फीसदी पीवीटीजी गांवों में पीडीएस दुकानें हैं.

PRADAN के एक बयान में कहा गया है, “आदिवासी समुदायों को गरिमापूर्ण जीवन जीने में मदद करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप एक से अधिक पहलुओं में फायदेमंद साबित हुए हैं. छत्तीसगढ़ में एक आदिवासी परिवार द्वारा एक वर्ष में उपभोग किए जाने वाले भोजन और अन्य वस्तुओं की बाजार कीमत लगभग 18,000 रुपये है. इस राशि का करीब 13 प्रतिशत हिस्सा ही परिवारों द्वारा उन सामानों की खरीद पर खर्च किया जाता है. बाकी 87 फीसदी राशि सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी, परिवारों के आय तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देती है.”

मध्य प्रदेश में एक आदिवासी परिवार पीडीएस से सालाना 10,000 रुपये के बाजार मूल्य का सामान खरीदता है और उन्हें खरीदने के लिए राशि का केवल 22 प्रतिशत खर्च करता है.

सड़क कनेक्टिविटी के मामले में मध्य प्रदेश में 78 प्रतिशत आदिवासी, 79 प्रतिशत गैर-आदिवासी और 80 प्रतिशत पीवीटीजी गांव सभी मौसम के लिए सड़कों द्वारा ब्लॉक मुख्यालयों से जुड़े हुए हैं. 

वहीं छत्तीसगढ़ में 80 प्रतिशत आदिवासी, 100 प्रतिशत गैर-आदिवासी और 82 प्रतिशत पीवीटीजी गांव सभी मौसम के लिए सड़कों द्वारा ब्लॉक मुख्यालयों से जुड़े हुए हैं. 

मध्य प्रदेश में लगभग 42 प्रतिशत आदिवासी, 63 प्रतिशत गैर-आदिवासी और 80 प्रतिशत पीवीटीजी गांव सार्वजनिक परिवहन द्वारा ब्लॉक मुख्यालयों से जुड़े हुए हैं. छत्तीसगढ़ के लिए आंकड़े क्रमशः 30 प्रतिशत, 40 प्रतिशत और 9 प्रतिशत हैं.

ऑल इज नॉट वेल

PRADAN एक ऐसी ही रिपोर्ट, आदिवासी आजीविका रिपोर्ट 2021 (SAL Report 2021) लेकर आया था, जहां इसने झारखंड और ओडिशा राज्यों को कवर किया था.

एसएएल रिपोर्ट का उद्देश्य भारत के मध्य क्षेत्र की अनुसूचित जनजातियों की आजीविका की स्थिति को समझना है.

एसएएल रिपोर्ट 2022, 6 हज़ार 19 घरों के नमूने को कवर करने वाले घरेलू सर्वेक्षण पर आधारित है. इनमें से 4,745 आदिवासी थे, 393 पीवीटीजी थे और बाकी 881 उसी क्षेत्र के गैर-आदिवासी परिवार थे.

इसके साथ ही ग्रामीणों के विभिन्न वर्गों की 50 फोकस ग्रुप चर्चाएं और आदिवासी मुद्दों से निकटता से जुड़े और जानकार व्यक्तियों के 28 इंटरव्यू भी आयोजित किए गए.

रिपोर्ट से पता चला कि मध्य प्रदेश में आदिवासी परिवारों की औसत वार्षिक आय 73,900 रुपये और छत्तीसगढ़ में 53,610 रुपये थी. जो कृषि वर्ष 2018-19 के दौरान प्रति कृषि परिवार की राष्ट्रीय औसत वार्षिक आय 122,610 रुपये से काफी कम है, जैसा कि नेशनल सैंपल सर्वे रिपोर्ट संख्या 587 -77/33.1/1 में दिखाया गया है.

इसके अलावा मध्य प्रदेश में 32 प्रतिशत आदिवासी परिवार, 27 प्रतिशत गैर-आदिवासी परिवार और 61 प्रतिशत पीवीटीजी परिवार गंभीर रूप से खाद्य असुरक्षित होने की सूचना देते हैं.

वहीं छत्तीसगढ़ में 27 प्रतिशत आदिवासी परिवार, 42 प्रतिशत गैर-आदिवासी परिवार और 29 प्रतिशत पीवीटीजी परिवार गंभीर रूप से खाद्य असुरक्षित होने की सूचना देते हैं.

मध्य प्रदेश में आदिवासी परिवारों की औसत भूमि जोत 3.9 एकड़ और पीवीटीजी परिवारों की 4.4 एकड़ है. छत्तीसगढ़ के आदिवासी परिवारों की औसत भूमि जोत 3.2 एकड़ और पीवीटीजी परिवारों की 3 एकड़ है.

दिलचस्प बात यह है कि मध्य प्रदेश के पश्चिम के इलाके, जहां भील समुदाय का प्रभुत्व है (जो पड़ोसी राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में व्याप्त है) में आदिवासी और गैर-आदिवासी दोनों परिवारों के बीच औसत घरेलू आय सबसे अधिक थी. यह राज्य के अन्य क्षेत्रों की तुलना में 1.5 गुना अधिक था.  

भील क्षेत्र में आदिवासी परिवारों की औसत प्रति व्यक्ति आय 24,571 रुपये थी. मध्य प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के लिए यह 12,000 रुपये से 15,000 रुपये के बीच है.

भील क्षेत्र में सबसे अधिक आहार विविधता (आदिवासियों के लिए 81 प्रतिशत और गैर-आदिवासियों के लिए 93 प्रतिशत) थी.

लेकिन सब कुछ ठीक नहीं है. दोनों राज्यों में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण पाया गया.

रिपोर्ट में कुछ कारकों पर प्रकाश डाला गया है जो परिवारों की आजीविका को प्रभावित करते हैं. बड़ी संख्या में आदिवासी परिवारों में बुनियादी पढ़ने और लिखने के कौशल का अभाव है.

कई आदिवासी परिवार या तो भूमिहीन हैं या उनके पास छोटी जोत यानि बहुत कम खेत है. कुछ आदिवासी परिवारों के पास सिंचित भूमि है. वन संसाधनों में गिरावट का मतलब है कि दोनों राज्यों में वन उपज संग्रहण गतिविधियों से आय अपेक्षाकृत कम है.

वहीं आदिवासी महिलाओं को अपने गैर-आदिवासी समकक्षों की तुलना में अधिक स्वायत्तता प्राप्त है. लेकिन घरेलू कामकाज और आजीविका गतिविधियों का कार्यभार ज्यादातर आदिवासी महिलाओं को उठाना पड़ता है.

निर्णय लेने और प्रथागत प्रथाओं में भी लिंग भेदभाव जीवित है.

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