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द्रौपदी मुर्मू ने मिलने आए आदिवासियों से कहा- राष्ट्रपति भवन आपका भी घर है

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) राष्ट्रपति भवन में आयोजित अपनी तरह के पहले शिखर सम्मेलन में देश भर के विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) के सदस्यों से सोमवार को मिलीं.

PVTG उन आदिवासी समुदायों को कहा जाता है जो आदिवासी समुदायों में भी सबसे अलग-थलग रहे हैं.

राष्ट्रपति ने कहा , “यह परिसर प्रत्येक भारतीय नागरिक का है, कृपया इसे अपना घर मानें. मुझे बताया गया है कि आप में से कई लोगों ने पहली बार बाहर यात्रा की है. जब तक मैं यहां हूं, मैं आपके समुदायों के उन सभी लोगों को आमंत्रित करती रहूंगी जो आज तक यहां नहीं आ सके.”

इस कार्यक्रम में 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 75 पीवीटीजी के 1,500 सदस्यों ने भाग लिया. राष्ट्रपित मुर्मू ने कहा कि उनमें से हर एक अपने समुदाय का प्रतिनिधि है.

उन्होंने कहा, “मैं आप सभी से अपने समुदाय के सदस्यों के साथ अपने अनुभव साझा करने और उन्हें सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के बारे में सूचित करने का आग्रह करती हूं.”

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि आदिवासियों ने मातृभूमि और इसकी प्राकृतिक और सांस्कृतिक संपदा की रक्षा के लिए बहुत सारे बलिदान दिए हैं. उन्होंने कहा कि सतत विकास हासिल करने के लिए दूसरों को आदिवासियों से सीखना चाहिए.

इस दौरान उन्होंने पीवीटीजी के सदस्यों से शिक्षा के अत्यधिक महत्व पर जोर देते हुए उनसे शिक्षा को प्राथमिकता देने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि मैं आप सबसे यह आग्रह करती हूं कि शिक्षा को सबसे अधिक महत्व दीजिए.

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, “आज के इस समारोह में भारत-माता की सबसे पुरानी परम्पराओं के लोग भारत के लोकतन्त्र के इस प्रमुख परिसर में इकट्ठे हुए हैं. यह हमारे लोकतन्त्र की सबसे पुरानी और जीवंत जड़ों से जुड़ने का समारोह भी है.”

राष्ट्रपति भवन ने एक बयान में कहा कि राष्ट्रपति ने सभी 75 पीवीटीजी के प्रतिनिधियों से एक साथ मिलने पर खुशी व्यक्त की और स्वीकार किया कि उनमें से कई पहली बार अपने गांवों से बाहर निकले हैं.

उन्होंने पीवीटीजी समुदाय का समर्थन करने के लिए सरकार के प्रयासों जैसे एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में आरक्षित सीटों के प्रावधान और राष्ट्रीय फैलोशिप और विदेशी छात्रवृत्ति योजना पर प्रकाश डाला.

राष्ट्रपति मुर्मू ने पीवीटीजी महिलाओं को जनजातीय महिला सशक्तीकरण योजना सहित विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया.

जनजातीय उप-योजना के महत्व पर जोर देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि 41 मंत्रालय और विभाग अपने बजट का एक हिस्सा पीवीटीजी सहित जनजातीय समुदायों के कल्याण के लिए आवंटित करते हैं. उन्होंने पीवीटीजी के विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री पीवीटीजी विकास मिशन के शुभारंभ पर भी प्रसन्नता जाहिर की.

राष्ट्रपति मुर्मू ने 2047 तक सिकल सेल एनीमिया को खत्म करने के लिए मौजूदा बजट में घोषित अभियान के महत्व पर भी प्रकाश डाला.

साथ ही उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से जनजातीय समुदाय के प्रतिभाशाली लोगों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली योगदान के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों यानि पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जा रहा है. यह और भी प्रसन्नता की बात है कि पुरस्कार विजेताओं में जनजातीय बहनें भी शामिल हैं. मुझे उन भाई-बहनों को पुरस्कार देते हुए विशेष प्रसन्नता का अनुभव होता है.

राष्ट्रपति ने कहा, “यह सभी नागरिकों, विशेष रूप से पीवीटीजी सहित आदिवासी लोगों का कर्तव्य और आकांक्षा है कि वे अपनी पहचान बनाए रखते हुए और अपने अस्तित्व की रक्षा करते हुए उनका विकास सुनिश्चित करें.”

भारत में 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों की पहचान की गई है जो देश में सबसे अधिक वंचित और कमजोर आबादी में से हैं.

राष्ट्रपति से उम्मीद

राष्ट्रपति की यह बात कि राष्ट्रपति भवन में आदिवासियों से मुलाकातों का सिलसिला चलता रहेगा, स्वागतयोग्य कदम है. लेकिन राष्ट्रपति को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इन मुलाकातों में आदिवासी सरकार की योजनाओं के गुणगान के साथ साथ आदिवासियों से उनकी तकलीफों के बारे में पूछें.

इन मुलाकातों को सरकार के दिखावटी और प्रतीकात्मक कार्यक्रमों की बजाए ऐसे कार्यक्रमों में बदला जाना चाहिए जहां से सरकार को आदिवासियों के बारे में ज़मीन से फीडबैक मिल सकता है.

मसलन राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने जिन आदिवासी प्रतिनीधियों को मिलने के लिए बुलाया था उनमें से एक ग्रेट अंडमानी समुदाय के प्रतिनीधि भी थे. इस समुदाय की भाषा को बोलने वाला अब समुदाय में एक भी व्यक्ति नहीं बचा है.

ऐसे ही राष्ट्रपति भवन में आए बैगा समुदाय के प्रतिनिधियों ने हम से बातचीत में अपनी कई व्यथाएं सुनाई थीं. राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू से यह उम्मदी की जा सकती है कि वे राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए आदिवासी पहचान के साथ साथ आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए भी काम करती रहेंगी.

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