HomeAdivasi Dailyदक्षिण राजस्थान भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए कठिन चुनावी रणक्षेत्र

दक्षिण राजस्थान भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए कठिन चुनावी रणक्षेत्र

सामाजिक समीकरणों की बात करें तो दक्षिणी राजस्थान के मेवाड़-वागड़ इलाके की 28 विधानसभा क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इन 28 विधानसभा क्षेत्रों में 16 क्षेत्र अनुसूचित जनजाति और एक क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.

रेगिस्तानी राज्य का सबसे हरा-भरा हिस्सा यानि दक्षिणी राजस्थान (South Rajasthan) इस बार विपक्षी भाजपा के लिए एक कठिन रणक्षेत्र होने की संभावना है, जिसने इस क्षेत्र में पिछले चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था. हालांकि सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए भी चुनौती कम नहीं है क्योंकि पार्टी सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है.

वहीं भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP)में विभाजन के बाद आदिवासी नेताओं के बनाए गए एक नए राजनीतिक संगठन भारतीय आदिवासी पार्टी (Bharatiya Adivasi Party) ने दक्षिण राजस्थान के आदिवासी इलाकों में बीजेपी और कांग्रेस के लिए चुनौती खड़ी कर दी है.

इस नवस्थापित राजनीतिक दल से इस इलाके में भाजपा और कांग्रेस दोनों का अंकगणित बिगड़ सकता है, क्योंकि इसे स्थानीय आदिवासियों का व्यापक सर्मथन मिल रहा है.

राज्य में जिलों की संख्या बढ़ गई है लेकिन चुनाव पिछले बार की गिनती के अनुसार हो रहे हैं इसलिए दक्षिण राजस्थान में उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिले शामिल हैं.

छह जिलों में कुल 28 सीटें हैं. क्योंकि यह आदिवासी बहुल क्षेत्र है इसलिए यहाँ आरक्षित सीटों की संख्या भी सबसे अधिक है. कुल 28 सीटों में से 17 सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं.

राजस्थान में उदयपुर संभाग को सत्ता का प्रवेश द्वार माना जाता है क्योंकि आदिवासी मतदाता किसी भी पार्टी को एकमुश्त वोट देते हैं. हालांकि, पिछली बार ऐसा नहीं हुआ था क्योंकि बीजेपी को 28 में से 14 यानी आधी सीटें मिली थीं. जबकि बाकी सीटें कांग्रेस, निर्दलीय और भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के पास थीं.

बीजेपी के लिए चुनौती

पिछले कई दशकों में यह पहला चुनाव है जो इस संभाग में पार्टी के सबसे बड़े चेहरे गुलाब चंद कटारिया की अनुपस्थिति में होगा. पार्टी ने उन्हें असम का राज्यपाल बनाकर भेजा है, जबकि संभाग की दूसरी सबसे बड़ी नेता किरण माहेश्वरी का कुछ साल पहले कोविड के कारण निधन हो गया था.

पार्टी ने चित्तौड़गढ़ के सांसद सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर इन नेताओं की कमी को भरने की कोशिश की है. वह हाल ही में चित्तौड़गढ़ में पीएम नरेंद्र मोदी की मेगा रैली से खुद को साबित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं और उदयपुर संभाग में पार्टी की परिवर्तन यात्रा काफी सफल रही. लेकिन फिर भी जोशी को कटारिया या किरण माहेश्वरी जितना बड़ा बनने में समय लगेगा.

पार्टी कार्यकर्ताओं ने कहा कि कटारिया ने इस पूरे संभाग में पार्टी को अनुशासित रखा था और कोई भी उनकी बातों को नजरअंदाज नहीं कर सकता था. पार्टी के एक स्थानीय नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अब जब वह नेतृत्व करने के लिए वहां नहीं हैं तो पार्टी को अनुशासन बनाए रखना मुश्किल हो रहा है.

कांग्रेस के लिए चुनौती

दूसरी ओर सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए चुनौती भाजपा का कट्टर हिंदुत्व एजेंडा है जो पिछले साल कन्हैया लाल का सिर काटने की घटना और हिंदू त्योहारों पर प्रशासन के कुछ निषेधात्मक आदेशों के कारण भड़क गया था. इसके अलावा योजनाओं का धीमा और 11 घंटे क्रियान्वयन भी कांग्रेस के लिए चुनौती है.

पिछले चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन कर सकती थीं लेकिन आदिवासी इलाकों में काम करने वाले आदिवासी संगठनों ने उन्हें रोक दिया. इनमें से एक संगठन ने भारतीय ट्राइबल पार्टी के रूप में चुनाव लड़ा और पहली बार डूंगरपुर जिले की चार में से दो सीटें जीतीं.

हालांकि इस बार इस पार्टी में फूट पड़ गई है क्योंकि इसके दोनों विधायकों ने नया संगठन बना लिया है. लेकिन आदिवासियों के बीच उनकी विचारधारा असर डाल रही है. वे बीजेपी और कांग्रेस दोनों को चुनौती दे रहे हैं.

बीजेपी सनातन संस्कृति की बात करती है और आदिवासियों को उसका हिस्सा मानती है लेकिन इन पार्टियों की विचारधारा से जुड़े लोग सनातन संस्कृति में विश्वास नहीं रखते और खुद को प्रकृति पूजक बताते हैं. ऐसे में वे वैचारिक स्तर पर सीधे तौर पर बीजेपी को चुनौती देते हैं और उसे नुकसान भी पहुंचाते हैं.

वहीं 70 फीसदी तक कोटा बढ़ाए जाने की भी मांग है क्योंकि इलाके में उनका दबदबा है और इसके लिए आंदोलन करना कांग्रेस के लिए चुनौती है.

उदयपुर में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक कौशल मूंदड़ा ने कहा कि आदिवासी युवा इन संगठनों के साथ जा रहे हैं और यह बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा कि ये संगठन फिलहाल डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों में ज्यादा सक्रिय हैं लेकिन धीरे-धीरे पूरे इलाके में लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं.

मोदी, शाह और राहुल ने की रैलियां

आदिवासी वोटों को लुभाने के लिए दोनों पार्टियों के बड़े नेता मानगढ़ धाम में बड़ी रैलियां कर चुके हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले साल नवंबर में यहां बड़ी रैली की थी. जबकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी विश्व आदिवासी दिवस पर यहां आए थे और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बीजेपी की परिवर्तन यात्रा को हरी झंडी दिखाने आए थे.

2018 के नतीजे

साल 2018 विधानसभा चुनाव में दक्षिण राजस्थान के बांसवाड़ा में बीजेपी को 2, कांग्रेस को 2 और निर्दलीय को 1 सीट पर जीत मिली थी. वहीं डूंगरपुर में बीजेपी ने 1, कांग्रेस ने 1 और बीटीपी ने 2 सीटें अपने नाम की थी. वहीं प्रतापगढ़ में कांग्रेस ने दोनों सीटें अपने नाम की थी.

राजसमंद में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने दो-दो सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि उदयपुर में बीजेपी को 6 और कांग्रेस को 2 सीटों पर जीत मिली थी.

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