HomeAdivasi Dailyआदिवासी कार्य मंत्रालय के दावे और हक़ीकत में तालमेल क्यों नहीं है

आदिवासी कार्य मंत्रालय के दावे और हक़ीकत में तालमेल क्यों नहीं है

नरेन्द्र मोदी सरकार के 9 साल पूरा होने पर सभी मंत्रालयों को कहा गया है कि वे सरकार की उपलब्धियों को जनता मे प्रचारित करें. इस क्रम में आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी अपने मंत्रालय की योजनाओं से जुड़े कई दावे पेश किये हैं. लेकिन तथ्य यह बताते हैं कि उनकी बातों और हक़ीकत में तालमेल नहीं है.

केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा (Arjun Munda) ने जनजातीय कार्य मंत्रालय की नौ साल की उपलब्धियों को लेकर दिल्ली के इंटरनेशनल मीडिया सेंटर में प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उन्होंने कहा कि पिछले 9 वर्षों में जनजातियों के शिक्षा, आजीविका और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 200 गैर सरकारी संगठनों को लगभग 250 परियोजनाओं के लिए 900 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं.

वहीं 9 वर्षों में राज्यों को विभिन्न योजनाओं के तहत 5000 से अधिक परियोजनाओं के लिए 25,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जारी की गई है.

प्रधानमंत्री पीवीटीजी विकास मिशन पर जोर

सरकार ने विशेष रूप से कमजोर जनजातियों (PGVT) को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए नई योजना बनाई है जिसे मिशन मोड में लागू किया जाएगा. इसे लेकर साल 2023-24 के बजट में सरकार ने 15 हजार करोड़ देने का प्रावधान किया है.

सरकार इस पैसे को अगले तीन सालों में देश के 75 पीजीवीटी समुदायों को विकास की धारा से जोड़ने पर खर्च करेगी. केंद्रीय जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने इस योजना की रूपरेखा बताई.

मुंडा ने अति पिछड़े आदिवासी समूहों की कल्याणकारी योजना के बारे में बताया कि 22 हजार 544 ऐसे गांवों की पहचान की गई है जहां बुनियादी सेवाओं का भी अभाव है. मंत्री ने कहा कि इन गांवों में मूलभूत जरूरतों की सारी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएंगी.

उन्होंने कहा कि इस योजना से आदिवासी समुदाय की 28 लाख से ज्यादा की आबादी सीधे लाभान्वित होगी और इस दिशा में कदम बढ़ाए जा चुके हैं.

इसके अलावा मंत्रालय ने प्रत्येक पीवीटीजी समुदाय के लिए 1 नोडल ऑफिसर नियुक्त किया है और वे उनके आवासों/बस्तियों में जा रहे हैं और उनकी आवश्यकताओं को समझने के लिए क्षेत्र में रह रहे हैं.

दूसरी ओर इनकी जरूरतों को देखते हुए मंत्रालय उस अधिकारी के जरिए विभिन्न मंत्रालयों जैसे ग्रामीण विकास, जल संसाधन, कृषि, ऊर्जा, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास आदि से संपर्क कर इनके विकास और जरूरतों से जुड़े काम करवाने पर जोर दे रहा है.

इन सारी कवायदों का मकसद है कि इन बस्तियों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क संपर्क, पानी-बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित किया जाना. सरकार इनका एक डेटाबेस भी तैयार कर रही है.

पिछले दिनों पीवीटीजी मीट का भी आयोजन किया गया था. जिसमें पीजीवीटी समूहों का एक डेलिगेशन कई प्रमुख हस्तियों से मिला जिनमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और लोकसभा स्पीकर ओम बिरला भी शामिल थे.

मुंडा ने बताया कि हर समूह से 20 लोग इन प्रतिनिधिमंडलों का हिस्सा बने जो अपने पहनावे, अपने खानपान, अपने लोकनृत्य, लोकगीत, हस्तशिल्प के साथ राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे.

पीएम आदि आदर्श ग्राम योजना

अर्जुन मुंडा ने पीएम आदि आदर्श ग्राम योजना का भी जिक्र किया. जिसका मकसद देश के सवा लाख आदिवासी गांवों में 36 हजार गांवों को आदर्श जनजातीय गांव का रूप देना है. 500 की आबादी वाले ऐसे गांव जिनकी 50 फीसदी या उससे ज्यादा जनसंख्या आदिवासियों की है, उन्हें आदर्श जनजातीय गांव का रूप दिया जाएगा.

योजना का उद्देश्य है कि विभिन्न मंत्रालयों की जनकल्याण की जो भी योजनाएं और कार्यक्रम हैं, उन्हें इन गांवों में सौ फीसदी लागू कर इन्हें आदर्श रूप दिया जा सके. इसमें केंद्र एवं राज्य सरकारों की लगभग 58 योजनाएं शामिल हैं. इस योजना से जहां 1.02 करोड़ परिवार और 4.2 करोड़ आदिवासी आबादी प्रभावित होगी.

एकलव्य मॉडल स्कूलों में 38 हज़ार से अधिक शिक्षकों-कर्मियों की होगी नियुक्ति

अर्जुन मुंडा ने कहा कि 2023-24 के केंद्रीय बजट में ‘सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन’ की भी घोषणा की गई है. 2047 तक ‘सिकल सेल एनीमिया’ को खत्म करने के लिए एक मिशन शुरू किया जाएगा.

वहीं अगले तीन वर्षों में 3.5 लाख आदिवासी छात्रों वाले 740 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों के लिए 38,800 शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों की केंद्रीय रूप से भर्ती की जाएगी.

आदिवासी मंत्रालय द्वारा 30 लाख छात्रों को हर साल डीबीटी के जरिए स्कॉलरशिप दी जा रही है. मंत्री का कहना था कि इससे पूरी प्रक्रिया में आसानी और पारदर्शिता आई है.

इसके अलावा मुंडा ने कहा कि मंत्रालय के अधिकारियों की एक टीम के साथ उन्होंने अंडमान के पीवीटीजी समुदायों – ओंग, अंडमानी, शोम्पेन और जारवा के क्षेत्रों का दौरा किया और उनसे बातचीत की. मंत्रालय ने इन समुदायों के कल्याण के लिए केंद्र शासित प्रशासन द्वारा किए गए कामों की भी समीक्षा की.

सरकार के दावे और हक़ीक़त

यह बात सही है कि सरकार ने साल 2023-24 के बजट में एकलव्य मॉडल स्कूलों में 38000 टीचर्स और स्टाफ़ भर्ती करने का ऐलान किया है. लेकिन यह आंकड़ों की बाज़ीगरी ज़्यादा है.

दरअसल एक एकलव्य स्कूल में कम से टीचर्स और बाकी स्टाफ़ मिला कर कम से कम 52 लोगो होनें चाहिएँ. सरकार ने देश में साल 2025 तक कम से कम 740 एकलव्य स्कूल बनाने का लक्ष्य रखा है. इस लिहाज़ से इन स्कूलों में 38000 टीचर्स और स्टाफ़ होना ही चाहिए.

इस घोषणा में सरकार ने दो ज़रूरी तथ्य संसद में देश से छुपाए हैं. पहला कि सरकार ने 2018 में यह घोषणा की थी कि देश में 2022 तक हर आदिवासी बहुल ब्लॉक में एक एकलव्य स्कूल ज़रूर होगा. लेकिन साल 2023 तक भी यह लक्ष्य पूरा नहीं हो सका है.

अब सरकार ने यह लक्ष्य पूरा करने की समय सीमा 2025 बताई है.

पिछले 5 साल में सरकार 100 एकलव्य स्कूल भी चालू नहीं कर पाई है. इसके अलावा सरकार ने यह तथ्य भी छुपाया है कि आज की तारीख में एकलव्य स्कूलों में 10 हज़ार अध्यापक और स्टाफ़ की कमी है.

यानि सरकार के सामने पहला लक्ष्य एकलव्य मॉडल स्कूलों में इस कमी को दूर होना चाहिए. उसके बाद 2018 में की गई घोषणा के अनुसार जल्दी से जल्दी एकलव्य स्कूलों की स्थापना की जानी चाहिए.

15000 करोड़ की हक़ीक़त

सरकार ने 2023-24 के बजट में यह घोषणा भी की है कि विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति के आदिवासियों यानि PVTG के लिए सरकार 15000 करोड़ रूपये ख़र्च करेगी.

लेकिन यह पैसा ख़र्च करने के लिए सरकार कैसे योजना तैयार करेगी यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है. क्योंकि सरकार को यह ही नहीं पता है कि देश में PVTG की कुल कितनी आबादी है.

यह जानकारी खुद सरकार की तरफ से संसद में दी गई है.

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