HomeAdivasi Dailyकेरल: मुश्किलों से लड़कर तहसीलदार बना ये आदिवासी शख्स

केरल: मुश्किलों से लड़कर तहसीलदार बना ये आदिवासी शख्स

केरल के कासरगोड ज़िले के नेशनल हाईवे में आदिवासी व्यक्ति वी शिनु को अनुसूचित जनजाति / अनुसूचित जाति का तहसीलदार बनाया गया है. वे केरला के इडुक्की के उराली समाज से है. जिन्हें आदिवासी होने के कारण बचपन से ही कई दिकक्तों का सामना करना पड़ा.

बहुत सी मुश्किलों का सामना कर केरल के कासरगोड ज़िले के नेशनल हाईवे में आदिवासी शख्स वी शिनु तहसीलदार बने हैं. वे उराली समाज से है. आदिवासी समुदाय से होने के कारण उन्हें बचपन से ही कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी.

आदिवासी स्कूल में की थी पढ़ाई

शिनु इडुक्की में पेरियार टाइगर अभयारण्य के अंदर एक छोटे से गांव उराली से हैं. उनका बचपन बिना बिजली वाले एक फूस के घर में बीता. शिनु ख़तरनाक जंगल के रास्ते और बीच-बीच में जंगली जानवरों का सामना करते हुए स्कूल पहुंचते थे.

शिनु की शुरुआती शिक्षा एक आदिवासी स्कूल में हुई. बाद में उनके माता-पिता ने उन्हें प्राइवेट स्कूल में दाखिला दिला दिया. हालांकि, प्रबंधन ने उन्हें यह कहते हुए स्कूल छोड़ने के लिए कहा कि उन्हें दसवीं कक्षा की परीक्षाओं में 100 प्रतिशत परिणाम की उम्मीद है, जिसमें वह बाधा बन सकते हैं.

आगे की पढ़ाई के लिए वे तिरुवनंतपुरम चले गए थे. जहां उन्होंने वनस्पति विज्ञान (Botany) और जैव प्रोद्योगिकी  (Biotechnology) में ग्रेएजुशन की थी.

ग्रेएजुशन के बाद उन्होंने जैव प्रोद्योगिकी में पोस्ट ग्रेएजुशन और बायो इंफॉर्मेटिक्स (Bioinformatics) में M.Phil हासिल की थी. पढ़ाई के बीच में उन्होंने मैसूर में प्राइवेट कंपनी में काम किया था. इसके अलावा उन्होंने तिरुवनंतपुरम में कॉफ़ी शॉप में भी काम किया था.

अपनी पढ़ाई के बाद 2018 में उन्होंने पब्लिक वर्क डिपार्टमेंट में एलडीसी क्लर्क का काम किया था. इसके बाद उन्होंने केरल राज्य वित्तीय उद्यम लिमिटेड में जूनियर असिस्टेंट के रूप में काम किया. इस बीच उन्होनें अपनी पढ़ाई भी जारी रखी.

जब सितंबर 2023 में लोक सेवा आयोग ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए तहसीलदार के पद पर सीधी नियुक्ति की अधिसूचना जारी की तो वो नियुक्ति पाने वाले 6 लोगों में थे.

वी शिनु अपने गांव और अन्य आदिवासी समुदाय के लिए भी प्रेरणा है. जो जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं. वे अपने गांव के बच्चों की मदद करते है और उन्हें जरूरत पड़ने पर मार्गदर्शन भी करते हैं.  

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