HomeAdivasi Dailyराहुल गांधी ने हसदेव बचाओ के प्रतिनिधियों से की मुलाकात

राहुल गांधी ने हसदेव बचाओ के प्रतिनिधियों से की मुलाकात

170,000 हेक्टेयर में 98 फीसदी वन भूमि को कवर करने वाले हसदेव अरण्य में खनन कार्यों का विरोध आदिवासी समुदायों के पिछले अनुभवों से उपजा है. इन समुदायों का तर्क है कि खनन से उनके आवास, आजीविका और सांस्कृतिक पहचान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भारत-जोड़ो न्याय यात्रा (Bharat Jodo Nyay Yatra) ने सोमवार को एक अहम मोड़ ले लिया, जब उन्होंने छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के मोर्गा बस्ती (Morga basti) में पड़ाव डाला. जो हरिहरपुर में मुख्य विरोध स्थल से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

राहुल का यह पड़ाव विशेष महत्व रखता है क्योंकि हसदेव-अरण्य वनों (Hasdeo-Aranya forests) के संरक्षण के समर्थन में हरिहरपुर में दो वर्षों से अधिक समय से प्रदर्शन जारी है.

12 फरवरी को हसदेव वन क्षेत्र से गुजरते हुए राहुल गांधी ने हसदेव बचाओ आंदोलन (Hasdev Bachao Andolan) के प्रतिनिधियों से मुलाकात की. उन्होंने आंदोलनकारियों की मांगों को सुना और उन्हें न्याय दिलाने का आश्वासन दिया.

प्रदर्शनकारियों के साथ उनकी बातचीत के बाद कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर आरोप लगाए. साथ ही उन्होंने हाशिये पर पड़े समुदायों के लिए अपनी ऐतिहासिक वकालत पर जोर दिया और हसदेव-अरण्य वनों की कटाई के खिलाफ लड़ने का संकल्प लिया.

कांग्रेस के मुताबिक, जंगल काटने के निर्देश बहुत पहले जारी किए गए थे. हसदेव जैसे गंभीर मसले पर हमने बाद में विधानसभा में एक अशासकीय संकल्प प्रस्ताव पारित किया. केंद्र की सरकार से हमने निवेदन किया कि इस जंगल को काटने से बचाया जाए. लेकिन इसके बावजूद भी मोदी सरकार ने कथित तौर पर उद्योगपतियों के दबाव में वनों की कटाई को मंजूरी दे दी.

पार्टी ने जोर देकर कहा कि सार्वजनिक आक्रोश और कांग्रेस नेताओं की अपील के बावजूद ऐसा कोई संकेत नहीं है कि सरकार अपने फैसले को पलटने की योजना बना रही है.

कांग्रेस द्वारा उठाई गई चिंताएं हसदेव से भी आगे तक फैली हुई हैं क्योंकि उन्हें केलो बांध परियोजना के साथ भविष्य की चुनौतियों का अनुमान है. कांग्रेस टीम ने केंद्र सरकार पर औद्योगिक उद्यमों का पक्ष लेने कथित तौर पर पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय समुदायों की भलाई की उपेक्षा करने का आरोप लगाया.

पार्टी ने दावा किया कि वन दोहन को सुविधाजनक बनाने और खदानों की स्थापना सहित सरकार के कार्यों ने जनता में असंतोष पैदा किया है.

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष उमेश्वर सिंह आर्मो ने कांग्रेस नेता के दौरे के बारे में बताया, “राहुल गांधी मोर्गा बस्ती में रुके, जो हरिहरपुर में विरोध स्थल से केवल 15 किमी दूर था. क्योंकि वह वास्तविक स्थल पर नहीं जा सके इसलिए प्रदर्शनकारियों की एक टीम स्वयं उनके पास पहुँची.”

राहुल गांधी के सामने रखे गए विभिन्न मुद्दों के बारे में बताते हुए उमेश्वर ने कहा कि हमने फर्जी ग्राम सभाओं का मुद्दा नेता के सामने रखा. हमने उन्हें यह भी बताया कि हमने राज्य के राज्यपाल को कई पत्र लिखे थे और खुद पद-यात्रा (पैदल मार्च) की थी. लेकिन हमारी आवाज नहीं सुनी जा रही है, जिसके कारण हम पिछले 700 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

बैठक में उमेश्वर सिंह आर्मो के साथ बिलासपुर से प्रथमेश मिश्रा भी शामिल हुए थे. उन्होंने आरोप लगाया कि हसदेव अरण्य जंगल में बाघों की मौजूदगी है. अगर ऐसा है तो जंगल वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची 1 के अंतर्गत आ जाएगा, जो निवास स्थान के संरक्षण की मांग करता है.

इसके बाद प्रथमेश मिश्रा ने राहुल गांधी के द्वारा दिए गए आश्वासन के बारे में बताया और कहा कि उन्होंने एक वन्यजीव फोटोग्राफर की डिटेल दी है जो क्षेत्र में बाघों के साक्ष्य इकट्ठा करने में मदद करेगा.

इसके अलावा राहुल ने छत्तीसगढ़ में अपनी टीम को प्रदर्शनकारियों के साथ लगातार संपर्क में रहने को कहा है.

मिश्रा ने कहा कि राहुल ने कहा है कि पार्टी सत्ता में आने पर वह कार्रवाई करेंगे. लेकिन हमने उससे कहा कि ऐसा करना सबसे आसान काम होगा. समय की मांग है कि वह कठिन रास्ता अपनाएं और हमारे विरोध में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हों.

हसदेव-अरण्य में खनन और क्लीयरेंस का इतिहास

चल रहे विरोध प्रदर्शन का केंद्र परसा ईस्ट केंटे बासन (PEKB) ब्लॉक है, जो छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के चार गांवों में 17.6 वर्ग किमी तक फैला है और इसका स्वामित्व राज्य संचालित राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के पास है.

हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.

हसदेव अरण्य जंगल को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर 2010 में पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था.

हालांकि इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी, जिसमें बाद 2013 में खनन शुरू हो गया था.

केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने 2011-12 में विभिन्न कंपनियों को 200 से अधिक कोयला ब्लॉक आवंटित किए थे, जिनमें से कुछ हसदेव वन में भी थे. केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने वन मंजूरी भी दे दी थी.

हालांकि, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2014 में वन मंजूरी रद्द कर दी और सरकार से यह अध्ययन करने को कहा कि क्या वन्यजीवों और वनस्पतियों और जीवों के लिए कोई संरक्षण क्षेत्र बनाया जा सकता है.

सरकार ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) और भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) को अध्ययन का काम सौंपा.

2021 में डब्ल्यूआईआई ने हसदेव में कोयला खनन की अनुमति देने पर वन्यजीवों के लिए खतरे के बारे में चिंता व्यक्त की. आईसीएफआरई ने भी इसी तरह की चिंता व्यक्त की लेकिन एक संरक्षण क्षेत्र विकसित करने का विकल्प दिया जिसके बाहर खनन किया जा सकता है.

आईसीएफआरई की रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने हसदेव में कोयला खनन के लिए 2022 में नई वन मंजूरी दी.

छत्तीसगढ़ सरकार के एक प्रस्ताव के आधार पर कोयला मंत्रालय ने राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम (आरआरवीयूएन) को चार कोयला ब्लॉक आवंटित किए, जिसने खनन गतिविधियों के लिए अडानी समूह के साथ एक खदान विकास और संचालन समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.

अक्टूबर 2021 में ‘अवैध’ भूमि अधिग्रहण के विरोध में आदिवासी समुदायों के लगभग 350 लोगों द्वारा रायपुर तक 300 किलोमीटर पदयात्रा की गई थी और प्रस्तावित खदान के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया था.

वन विभाग ने मई 2022 में पीईकेबी चरण-2 कोयला खदान की शुरुआत करने के लिए पेड़ काटने की कवायद शुरू की थी, जिसका स्थानीय ग्रामीणों ने कड़ा विरोध किया था. बाद में इस कार्रवाई को रोक दिया गया था.

लेकिन फिर दिसंबर 2023 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से हसदेव अरण्य क्षेत्र में पेड़ों की कटाई शुरू हो गई.

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