HomeAdivasi Dailyमैतेई - कुकी समुदाय में फिर साथ रहने की गुंजाईश लगातार कम...

मैतेई – कुकी समुदाय में फिर साथ रहने की गुंजाईश लगातार कम हो रही है

हिंसा के नौ महीने बाद भी मणिपुर उबल रहा है. बीजेपी, जो देश भर में आदिवासी वोट बैंक साधने में जुटी है, उसने राज्य में शांति बहाल करने में विफलता के लिए विपक्षी नेताओं और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार एजेंसियों की बार-बार आलोचना के बावजूद मणिपुर मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है.

15 फरवरी को मणिपुर (Manipur) के कुकी-प्रभुत्व वाले चुराचांदपुर जिले में मिनी सचिवालय की ओर जाने वाली सड़कें सैकड़ों प्रदर्शनकारियों से जाम हो गईं, जब सुरक्षा बलों ने गोलीबारी की.

पास के एस कैनन वेंग (S Canan Veng village) गांव का रहने वाला 15 वर्षीय कुकी युवक शोर शराबे से गुजरते हुए अपने घर जा रहा था, तभी एक गोली उसे लगी, जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई. एक निराश पिता सीलाल हाओकिप ने अपने नाबालिग बेटे की मौत को “संस्थागत हत्या” करार दिया है.

गोलीबारी में एक अन्य नागरिक, 29 वर्षीय लेटलालखुओल गंगटे की जान चली गई. इसके अलावा 25 लोग घायल हो गए.

ऐसा लगता है कि इस त्रासदी ने आदिवासियों को प्रमुख मैतेई समुदाय के साथ संबंध तोड़ने के संकल्प के लिए और अधिक प्रेरित किया है.

कुकी और मैतेई समुदायों के बीच पहली बार झड़पें 3 मई, 2023 को शुरू हुईं और तब से 200 से  अधिक लोगों की जान जा चुकी है. अब मणिपुर में हिंसा और हत्याएं नॉर्मल हो गई हैं.

हाल ही में चुराचांदपुर में तैनात कुकी-ज़ो हेड कांस्टेबल, सियामलालपॉल को अचानक निलंबित कर दिया गया था. क्योंकि “हथियारबंद लोगों” के साथ उसकी सेल्फी वीडियो लेने की तस्वीरें 14 फरवरी में सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थीं.

विरोध में लगभग 300-400 कुकी-ज़ो प्रदर्शनकारियों ने चुराचांदपुर के पुलिस अधीक्षक (SP) शिवानंद सुर्वे और उपायुक्त (DC) एस धारुन कुमार के कार्यालयों पर धावा बोल दिया.

जबकि सुरक्षा बलों का दावा है कि गोलीबारी भीड़ की हिंसा के खिलाफ में थी. इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) ने मौतों के लिए एसपी और डीसी को पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया है.

आईटीएलएफ के प्रवक्ता गिन्ज़ा वुएलज़ोंग ने बताया कि एक सेल्फी के लिए एक आदिवासी अधिकारी को निलंबित करना जबकि मैतेई अधिकारियों की सशस्त्र उग्रवादियों के साथ ‘खुले तौर पर दोस्ती’ को नज़रअंदाज करना कुकी-ज़ो लोगों को अपमानित करने के राज्य के “आदिवासी विरोधी” एजेंडे को दर्शाता है.

नाराज़ कार्यकर्ता कहते हैं कि सियामलालपॉल द्वारा क्लिक की गई वायरल तस्वीर में ‘उपद्रवी’ ग्राम रक्षा बल के स्वयंसेवक थे, न कि “किसी भी सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) समूहों के खतरनाक सदस्य, जैसा कि मीडिया में बताया जा रहा है.”

मई में शुरु हुई हिंसा के नौ महीने बाद भी मणिपुर उबल रहा है. बीजेपी, जो देश भर में आदिवासी वोट बैंक साधने में जुटी है, मणिपुर मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है.

संसद में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और अतंरराष्ट्रीय संगठनों ने भारत सरकार की इस मामले में काफ़ी आलोचना की है. इसके बावजूद बीजेपी ने मणिपुर में शांति कायम करने की दिशा में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया है.

मणिपुरी और मिज़ो आदिवासी समूहों के एक समूह ज़ो यूनाइटेड के संयोजक अल्बर्ट एल रेंथलेई कहते हैं कि मणिपुर में आदिवासियों के साथ गठबंधन करके, भाजपा एक प्रमुख, ‘सामान्य श्रेणी’ समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के पीछे अपना वजन डालती दिख रही है यह एक विकृत प्रकार का जनजातीयवाद है.

रेंथलेई को यह अजीब लगता है कि मैतेई, जिन्होंने खुद को ‘उन्नत’ लोग होने का दावा किया है और कुकी जनजातियों को हाओ और लवाई माचा (असभ्य) जैसे अपमानजनक उपनामों से अपमानित किया है. अब वह खुद को पिछड़े के रूप में वर्गीकृत करना चाहते हैं.

“मैतेई, जो अब तक खुद को ‘उन्नत’ लोग मानते थे, अब “पिछड़े” के रूप में वर्गीकृत होना चाहते हैं.”

रेंथलेई कहते हैं कि पिछड़ी जातियों या जनजातियों ने इस स्थिति को नहीं चुना है. अनुसूचित जनजाति को दिए गए लाभ मुफ़्त उपहार नहीं हैं बल्कि सकारात्मक कार्रवाई है जिसका उद्देश्य दशकों से हो रहे अन्याय को उलटना है.

मैतेई लोगों ने आज एसटी दर्जे से वंचित होने का आरोप लगाया है, लेकिन जब पहले पिछड़ा वर्ग आयोग ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अनुसूचित जनजाति (संशोधन) सूची में शामिल करने के लिए जनजातियों की एक सूची का अनुरोध किया था तो मैतेई लोगों ने खुद को इसमें शामिल नहीं करने का फैसला किया था.

कई मैतेई आज मानते हैं कि एसटी वर्गीकरण उनकी “पैतृक भूमि, परंपराओं, संस्कृति और भाषा” की रक्षा करने का एकमात्र तरीका है. लेकिन इतने वर्षों के बाद अब पाला क्यों बदला जा रहा है?

मणिपुर भूमि राजस्व और भूमि सुधार अधिनियम, 1960, गैर-आदिवासियों को “पहाड़ी क्षेत्रों” में जमीन खरीदने या रखने से रोकता है. फिर भी कुछ मैतेई इतिहासकारों का दावा है कि पुराने साम्राज्य में इम्फाल पूर्व, इम्फाल पश्चिम, थौबल, बिष्णुपुर और काकचिंग के पांच वर्तमान जिले शामिल थे.

कहा जाता है कि घाटी की बढ़ती आबादी को समायोजित करने के लिए जनजातीय भूमि का अधिग्रहण आवश्यक है, जो कि मणिपुर के सिर्फ 10 फीसदी हिस्से में सिमट कर रह गई है.

मैतेई और एसटी दर्जे की मांग

भूटान में रॉयल थिम्पू कॉलेज के प्रोफेसर, लीशीपेम खामरांग का तर्क है कि एसटी दर्जे की मैतेई की मांग आंशिक रूप से सांस्कृतिक संरक्षण की आवश्यकता से भी प्रेरित हो सकती है.

खामरंग कहते हैं, “मैतेई संगठनों द्वारा प्रसारित विभिन्न एजेंडों और प्रचारों को ध्यान में रखते हुए, एसटी दर्जे की मांग मैतेई लोगों की अपनी खोई हुई सांस्कृतिक श्रेष्ठता, भाषा और पहचान को बचाने के इरादे की अभिव्यक्ति है.”

मणिपुर में अव्यक्त जातीय संबंधों और शत्रुता की खोज करने वाले एक पेपर में प्रोफेसर ने बताया कि कैसे 18 वीं शताब्दी में हिंदू धर्मांतरण ने मणिपुर को आकार दिया जब राजा ग़रीब नवाज़ (पामहीबा) ने हिंदू धर्म को आधिकारिक धर्म बनाया. यहां तक कि अपने राज्य का मैतेई नाम ‘कंगलेइपाक’ बदलकर संस्कृतकृत ‘मणिपुर’ कर दिया.

इस “सदियों पुराने पारंपरिक धर्म और मैतेई की सामाजिक व्यवस्था का विनाश” के बाद व्यवस्थित संस्कृतिकरण और मूल निवासियों के रीति-रिवाजों का ब्राह्मणीकरण हुआ. उदाहरण के लिए मैतेई सलाई (कुलों) को हिंदू गोत्र (वंश) प्रणाली में समाहित कर लिया गया, प्रत्येक सलाई को एक गोत्र के रूप में पहचाना जाता था.

शोधकर्ता सेनजम पूर्णिमा देवी कहती हैं कि राजा के वंश (क्षत्रिय घोषित) की तुलना रामायण के श्री रामचन्द्र के सूर्य वंश या सौर वंश से की गई थी.

तीरंदाजी के वैरा तेनकाप जैसे मैतेई त्योहार भगवान राम की पूजा में विकसित हुए और कोंगबा लीथोंग फाटपा त्योहार विष्णु संक्रांति बन गए. पैंथोइबी जैसे मैतेई देवताओं की तुलना दुर्गा से की गई जबकि नोंगपोक निंगथौ शिव बन गए.

मैतेई समुदाय के अंदर हिंदू धर्म और सनमहिज्म का मिश्रण आज भी मौजूद है. देवी लिखती हैं कि सनमाही की पूजा लगभग हर मैतेई घर के पारंपरिक दक्षिण-पश्चिम कोने में देवी इमोइनु, फ़ौओबी, पंथोईबी और असंख्य देवताओं के साथ की जाती है. इन देवताओं की पूजा घरों के अंदर की जाती है.

बाहरी स्थान निजी या सामुदायिक मंदिरों को समर्पित हैं जहां मैतेई लोग राम-सीता, हनुमान और कृष्ण-राधा जैसे वैष्णव देवताओं की पूजा करते हैं.

पिछले कुछ दशकों में मैतेई पुनरुत्थानवाद में वृद्धि हुई है. 1970 के दशक के अंत तक यांगमासो शाइज़ा, कीशमथोंग लैशराम मनाओबी और कार्यकर्ता चिंगशुबम अकाबा जैसे प्रमुख राजनेता मैतेई पहचान की राजनीति में सबसे आगे आए.

वहीं पिछले वर्ष के दौरान कट्टरपंथी मैतेई समूहों ने पुनरुत्थानवाद में नई जान फूंक दी है. अरामबाई तेंगगोल जैसे समूह, जिनकी कमान मायावी कोरौंगनबा खुमान के हाथ में है और जो कुकियों के खिलाफ हिंसा के प्रमुख अपराधी हैं, राजनीतिक प्रमुखता में उभरे हैं.

मैतेई सांसद और मणिपुर के नामधारी राजा – लीशेम्बा सनाजाओबा, तेंगगोल के प्रति सहानुभूति रखते हैं. खुमान की उनसे और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से उनके आवास पर मुलाकात की तस्वीरें पिछले अगस्त में सामने आई थीं.

लेकिन शायद मणिपुरी राजनीति में अरामबाई तेंगगोल के बढ़ते पदचिह्न का सबसे शक्तिशाली दृश्य गणतंत्र दिवस से दो दिन पहले आया जब लगभग 37 विधायक और तीन सांसद समूह के प्रमुख द्वारा भेजे गए “सम्मन” के जवाब में मध्यकालीन युग के कांगला किले (जो मैतेई गौरव का प्रतीक था) में बैठक के लिए गए.

बैठक में सांसदों को कथित तौर पर “राज्य की अखंडता” की रक्षा के लिए शपथ लेने के लिए मजबूर किया गया और 15 दिनों के भीतर समूह की मांगों को पूरा करने का वादा किया गया. संयोग से कुछ कुकी-ज़ोमी जनजातियों को एसटी श्रेणी से हटाना समूह की प्रमुख मांगों में से एक है.

हालांकि, इस बैठक में सीएम बीरेन सिंह उपस्थित नहीं हुए लेकिन कथित तौर पर उन्होंने दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए हैं.

रेंथलेई पूछते हैं कि सरकार ऐसे असंवैधानिक आयोजन की अनुमति कैसे दे सकती है? अब मणिपुरी सरकार कौन चला रहा है, मैतेई नेता या मैतेई उग्रवादी?

वहीं हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात करने वाले रेंथलई, वुएलज़ोंग और अन्य आदिवासी नेताओं ने पहाड़ी जिलों के लिए एक अलग प्रशासन की अपनी मांग दोहराई है.

रेंथलेई कहते हैं कि हमें अब कुकी और मैतेई के सह-अस्तित्व का कोई रास्ता नहीं दिखता. इस हिंसा में दोनों पक्षों को नुकसान हुआ है. अलग-अलग रास्ते पर जाना ही शांति लाने का एकमात्र तरीका है.

राज्य के राजनीतिक और आर्थिक केंद्र से कटे कुकी समुदाय हिंसा के बाद अपने जीवन के पुनर्निर्माण के लिए संघर्ष कर रहे हैं और सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं. संघर्ष में 50 हज़ार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं और राहत शिविरों में रह रहे हैं जो खचाखच भरे हुए हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments